जीवन संध्या की छाया – प्राची लेखिका : Short Stories in hindi

सरला जी जाड़े में घर के आंगन में धूप सेंक रही थी। तभी उनके दरवाजे पर सरकारी गाड़ी आकर रूकती है।

वह घबरा जाती है कि पता नहीं क्या बात हो गई?

तभी गाड़ी से एक लड़की जिसका चेहरा उन्हें कुछ जाना पहचाना सा लग रहा था। उतर कर उनके पास आती है। माँ जी नमस्ते कहकर पाँव छूती है। सरला जी समझ नहीं पाती,यह कौन है?

वह लड़की कहती है,” माँ जी मैं आरती। आपने मुझे पहचाना नहीं”।

सरला जी अतीत की स्मृतियों में खो जाती हैं।आज से लगभग 15 वर्ष पुरानी बात होगी।आरती उनके यहांँ काम करने वाली नौकरानी माला की लड़की थी, जो उनकी बेटी पूजा के साथ की थी। पूजा और आरती साथ-साथ खेलती थी। पूजा शहर के नामी कान्वेंट स्कूल में पढ़ती थी। आरती झुग्गियों के पास ही एक छोटे से स्कूल में जाती थी।आरती को पढ़ने की बहुत लगन थी। वह पूजा की किताबों को बड़े चाव से देखा करती थी। 

एक दिन पूजा ने अपने पापा से जिद की,कि आरती का एडमिशन भी एक अच्छे स्कूल में करा दिया जाए। पहले तो पूजा के पापा ने आनाकानी की,पर पूजा के आगे एक ना चली। शर्मा जी ने आरती का प्रवेश शहर के एक अच्छे हिंदी मीडियम स्कूल में करवा दिया। किताबें, बैग,फीस, यूनिफॉर्म का भी इंतजाम कर दिया। अब आरती अच्छी तरह पढ़ने लगी। पूजा भी पढ़ाई में उसकी मदद कर दिया करती थी।पूरा साल पढ़ने के बाद आरती अपनी क्लास में अब्बल आई। इसलिए आरती के साथ शर्मा जी को भी सम्मानित किया गया। फिर शर्मा जी ने आरती की पढ़ाई का जिम्मा ले लिया।

वक्त आगे बढ़ता चला गया।आरती भी अच्छी तरह पढ़ कर कॉलेज में प्रवेश कर गई। पढ़ाई में आरती इतनी होशियार थी कि कॉलेज से उसको स्कॉलरशिप मिलने लगी।

शर्मा जी का तबादला दूसरे शहर हो गया। हमें वह शहर छोड़ना पड़ा। पूजा भी आगे की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चली गई। हमारा आरती से संपर्क भी कट गया।

पढ़ाई के दौरान पूजा किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ प्रेम के चक्कर में पड़ गई। हमें बताएं बिना लिव-इन रिलेशन में रहने लग गयी। शर्मा जी को जब यह पता चला तो वह यह सदमा बर्दाश्त ना कर पाए और उनका शरीर फालिस मार गया। रिश्तेदारों ने भी हमसे मुंह मोड़ लिया। शर्मा जी भी लोगों के ताने-उलाहना बर्दाश्त नहीं कर पाए और एक दिन दुनियाँ छोड़कर चले गए।

 पूजा का शुरू में तो सब सही चला फिर हकीकत सामने आने लगी। प्यार मारकूट में बदल गया। गाली-गलौज, हाथापाई नियति बन गई। वह व्यक्ति हमेशा वहशीपन पर उतर जाता और एक दिन पूजा बलि चढ़ जाती है।उनकी इकलौती बेटी दुनियाँ छोड़ जाती है। जिस प्यार के चक्कर में पूजा ने अपने माता-पिता और समाज की बिल्कुल भी परवाह नहीं की। वही प्रेम उसके गले की फांस बन जाता है 

 आज आरती को सामने पाकर सरला जी की आंखें डबडबा जाती हैं। वह उसे सीने से लगा लेती है। आरती कहती हैं, “माँ जी मुंह मीठा कीजिए।अब आपकी बेटी आरती इस शहर की नई डीएम हैं”।

 सरला जी बहुत प्रसन्न होती हैं अपना हाथ आरती के सर पर रखती हैं।उन्हें लगता है आज उन्हें आरती के रूप में पूजा मिल गई। आरती कहती हैं,”माँ जी अगर आपने उस समय मेरी पढ़ाई में मदद नहीं की होती तो आज मैं इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाती। आज मैं जो कुछ भी हूँ, आपके परिवार के एहसान की वजह से ही हूँ”।

आरती कहती हैं,”जल्दी से सामान बांध लो।अब मैं आपको अकेला बिल्कुल भी नहीं छोडूंगी। अब आप मेरे साथ ही रहेंगी”।

सरला जी की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगते हैं।

 आरती में रत्ती भर भी घमंड नहीं था। इतने बड़े होने पर होने के बावजूद भी वह उनके साथ इतना प्रेम भरा व्यवहार कर रही थी। ऊंचा ओहदा पाकर भी आरती कितनी व्यवहारिक थी।

अनजाने में की गई छोटी सी मदद इतनी बड़ी साबित होगी यह तो उन्होंने सोचा भी ना था। आरती के रूप में बोया गया छोटा सा पौधा उनकी जीवन संध्या की छाया बन जाएगा।

#घमंड

स्वरचित मौलिक

    प्राची लेखिका

बुलंदशहर उत्तर प्रदेश

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