टूटे सपने – कमलेश राणा

साहिल और पराग दोनों बचपन से ही साथ पढ़े थे दोनों की दोस्ती इतनी पक्की थी कि लोग मिसाल देते। मज़ाल है कोई उनके बारे में एक शब्द तो कह जाये दूसरे के सामने तुरंत मरने- मारने पर उतारू हो जाते पर उनकी दोस्ती निभना भी आश्चर्य की ही बात थी क्योंकि दोनों का स्वभाव एक- दूसरे के एकदम विपरीत था। 

साहिल दिल का साफ और बड़े बाप का बेटा था फिर भी घमंड उसको छू तक नहीं गया था। सादा जीवन उच्च विचार उसके जीवन का मूल मंत्र था। जितना जरूरत होती उतना ही बोलता और अपने काम से काम रखता लेकिन होशियार बहुत था। 

दूसरी तरफ पराग मस्त मौला और शौकीन था वह जिंदगी को भरपूर जीने में विश्वास रखता था। हाजिर जवाबी उसकी खूबी थी वह जल्द से जल्द आकाश की ऊंचाइयों को छू लेना चाहता था अपनी मेहनत के दम पर अपनी तकदीर बनाने का हौसला था उसमें। 

पढ़ाई पूरी होने के बाद अर्थोपार्जन के लिए जिंदगी के कर्मक्षेत्र में अब खुद को आजमाना था उन्हें। यह जीवन का सबसे कठिन दौर होता है जब एक युवक सच में खुद को एक जिम्मेदार पुरुष के रूप में साबित करने के लिए नई राह चुनता है जो कई बार अनिश्चित भविष्य की ओर भी ले जाती है खासतौर से अगर वह कोई नया व्यवसाय शुरू करता है तो सफलता संदेहास्पद होती है कहो तो उसे आकाश की ऊंचाईयों तक ले जाये और कहो तो ऐसी असफलता की धूल चटा दे कि वह जीवन भर न उबर पाये। 

एक दिन दोनों इसी पर विचार कर रहे थे कि साहिल के पिता ने सुझाव दिया कि मेरी एक जमीन शहर की नई बन रही कॉलोनी में आ गई है कई साल पहले वहाँ कुछ भी नहीं था जब मैंने इसे लिया था क्यों न तुम वहाँ सोसाइटी का निर्माण कर लो। उस इलाके में फ्लैट भी काफी महंगे बिकेंगे। 

लेकिन अंकल मेरे पास तो इतना पैसा नहीं है कि मैं इतनी बड़ी सोसाइटी खड़ी कर सकूँ भले ही जमीन आपकी है तो क्या हुआ उसको बनाने में भी तो करोड़ों का खर्चा आयेगा और मेरी तो साख भी ऐसी नहीं है कि कोई बैंक मुझे कर्ज़ दे दे। 

तुम काम शुरू करो मेहनत तो तुम कर ही सकते हो न। पैसे का प्रबंध मैं कर दूंगा जैसे- जैसे फ्लैट बिकते जाएं तुम मेरा पैसा वापस करते रहना। 

लेकिन अंकल आपका इतना अहसान लेना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। 

अरे इसमें अहसान की क्या बात है यह तो मैं अपने बेटे साहिल के लिए कर रहा हूँ एक बाप होने के नाते यह मेरा फर्ज़ बनता है कि अपने बेटे को जीवन में सुस्थापित करूँ जो भी प्रॉफिट होगा वह तुम दोनों का आधा- आधा रहेगा। 

कई दिन की भाग- दौड़ के बाद आखिर निर्माण कार्य शुरू हो गया वह जगह इतनी अच्छी थी कि लोगों में फ्लैट बुकिंग के लिए होड़ सी लग गई सारे फ्लैट हाथों हाथ बिकने लगे। रुपये- पैसे के हिसाब किताब की सारी जिम्मेदारी पराग के हाथों में थी इतने पैसे की कल्पना तो उसने जीवन में कभी नहीं की थी वह खुले हाथों से अपने शौक पूरे करने पर पैसा लुटाता तो साहिल उसे टोक देता। 

पराग यह पैसा अभी हमारा नहीं है इसे बैंक को वापस करना है अभी हम पूरी तरह से कर्ज़ में डूबे हुए हैं पहले एक बार उससे फ्री हो जाएं तो फिर मौज करेंगे। 

क्या यार साहिल बुड्ढों जैसी बातें करता है तू। ये जवानी ये रंगीनियाँ चार दिन की हैं जी लो जी भर के कल किसने देखा है मेरे दोस्त। 

साहिल को अपने पिता के भरोसे की चिंता थी वह जितना पराग को टोकता वह उतना ही चिढ़ जाता। धीरे- धीरे दोनों के बीच दूरियाँ आने लगीं अब पराग ने साहिल से मिलना और बात करना बिल्कुल ही बंद कर दिया वह खर्च और आमदनी के बारे में भी उसे कुछ नहीं बताता। 

इसी दौरान एक हुक्का बार में पराग की दोस्ती हरेंद्र नाम के एक हिस्ट्री शीटर डॉन से हो गई। हरेंद्र को तो ऐसे ही व्यक्ति की तलाश थी जिस पर भरपूर पैसा हो और पराग को ऐसे व्यक्ति की जिसके नाम से लोग कांपते हों और वह उसके नाम से अपने काम पूरे कर सके। हरेंद्र की बड़े- बड़े नेताओं और अधिकारियों से पहचान थी जिसका फायदा अब पराग को मिल रहा था।

हरेंद्र एक तड़ीपार बदमाश था जिसकी गतिविधियों पर पुलिस की नज़र थी। एक दिन मर्डर के सिलसिले में जब पुलिस उसे पकड़ने आई तो उसने फायरिंग शुरू कर दी और भागकर उसी बिल्डिंग में छिप गया लगातार गोलियां चलती रहीं और अंत में वही बिल्डिंग उसकी मौत की साक्षी बनी। 

इस घटना के बाद लोगों में भय व्याप्त हो गया कि उसका भूत वहाँ किसी को रुकने नहीं देता। कोई भी वहाँ रहने को तैयार नहीं था धीरे- धीरे वह बिल्डिंग खंडहर में तब्दील होने लगी और साथ ही पराग के सपने और उसका घमंड भी चकनाचूर हो गये। 

यदि वह सही रास्ते पर चलता तो आज उसके पास एक वफादार दोस्त, धन- दौलत और इज्जत सब कुछ होता अब वह लुटा पिटा सा डिप्रेशन में है। 

#घमंड

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

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