भतीजे की शादी – कुमुद चतुर्वेदी

 आज कमला बुआ का दिल बल्लियों उछल रहा था,जबसे उन्होंने भतीजे की शादी का निमंत्रण पत्र पढ़ा था। डाक से आया निमंत्रण पत्र उनकी बहू जूही जब से उनको देकर गई है तब से अपने हाथों में लेकर प्यार से जाने कितनी ही बार सहलाकर चूम चुकी हैं।उनको लगता है पत्र की जगह उसका नन्हाँ सा गोलू  भतीजा ही उनकी गोद में बैठा है और वे उसे पुचकार व सहला रही हैं।जाने कितनी देर वे यूँ ही बैठी रहतीं यदि उनके बेटे रंजीत ने उनको आवाज न लगाई होती।

        रंजीत की आवाज सुन वे चौंकीं और सामने उसे खड़ा देख अचानक ही  उनके हाथों से निमंत्रण पत्र नीचे गिरा देख रंजीत ही  बोला..”माँ क्या सोच रही हो? एक तो वैसे भी इस महिने दोनों बच्चों की परीक्षा फीस भरनी पड़ी अब यह शादी कैसे जाना होगा?शादी में भी खर्चा होगा, सबके लिये नये कपड़े बगैरह खरीदने होंगे।वहाँ भी देने के लिये कपड़े और बहू केे लिये गिफ्ट लेनी होगी।मैं तो समझ नहीं पा रहा कैसे करूँ यह सब।”यह सुन कमला भी सोच में पड़ गई फिर बोली..”मैं कुछ सोचती हूँ,तुम चिन्ता मत करो।कोई न कोई रास्ता भी  निकलेगा ही।अभी तो शादी में दस दिन भी  हैं।”यह सुन रंजीत तो “ठीक है”कह चला गया पर कमला सोच में डूब गई।क्या किया जाये अब?

        तभी कुछ सोचकर वह उठी और बैंक की पैंशन वाली पासबुक खोल देखने लगी पर उसमें तो बस पाँच सौ रु. ही थे।फिर उसने अल्मारी के लॉकर में से एक डिब्बा निकाला और पलंग पर बैठकर डिब्बे को माथे से लगाकर आँखें बंद कर कुछ बुदबुदाईं और तब धीरे से डिब्बे को खोल उसमें रखी सीता हार निकाल अपनी हथेली पर फैला अपलक देखती रही।उनके सामने अतीत चलचित्र की भाँति आँखों के आगे घूम रहा था।

      दस साल की अल्हड़ कमला बाइस साल के रामरतन के साथ अग्नि के फेरे ले रही है।उसे रहरहकर नींद के झौंके आ रहे हैं पर उसकी भाभी उसे झिंझोड़कर जगा देतीं और वह जागकर चलने लगती अपने पति के पीछे पीछे।

अब फेरों के बाद माँग भराई की रस्म में वह फिर सोने लगी तब अम्माँ ने उसे पकड़कर माँग भरवाई।जैसे तैसे शादी सम्पन्न हुई और वह पलंग पर घोड़े बेच सोई।सुबह उसे  जल्दी उठा जब भाभी ने नया चमकीला लहँगा पहनाया तो वह खुशी से नाच ही उठी।नये गहने पहन वह आइने के सामने खड़ी हो स्वयं को किस्मत वाली जान बहुत खुश थी और विदाई के समय तो रोई भी नहीं।माँ,भाभी और सबको रोते देख चुप करा कहती..”अरे मैं आज जाकर कल ही लौट आउँगी फिर रोना कैसा?” 




उसकी यह बातें सुन सब उसे गले से लगा फिर रोने लगते।

जब ससुराल आई तो सास और दादी सास का लम्बा घूँघट देख चकराई क्योंकि अम्माँ ने समझाया था सास और दादी सास का कहना मानना,घूँघट रखना।अब वह भी बैठी थी लम्बे से घूँघट में जहाँ उसकी मुँहदिखाई की रस्म हो रही थी।सबसे पहले दादी सास ने सीता हार उसके गले में पहनाया और कमला उनके पैरों पड़ी तो छाती से चिपका ढ़ेरों आशीर्वाद दे डाले,साथ ही हिदायत भी दी कि यह हार हमारे परिवार की धरोहर है इसे तुम अपनी बहू या पतोहू को मरने से पहले सौंपना।

यह बात कमला ने गाँठ बाँध ली थी और सीता हार को अपनी अल्मारी के लॉकर में सँभालकर रख दिया था।जीवन में कितनी भी विपत्ति आई पर कमला ने हार नहीं निकाला परंतु आज उसका मन पता नहीं क्यों भतीजे की शादी में जाने को उतावला क्यों हो रहा था उसकी  आँखों के सामने बार बार भतीजे की बचपन की सूरत आ जाती थी जब वह बुआ बुआ कहता उसकी गोद से उतरता ही न था।बुआ केही हाथ से  खाना,बुआ के पास ही सोना।बुआ जब विदा हो ससुराल आई तो वह कैसा रोरोकर हलकान हो गया था।यह सब कमला को आज भी याद है।उसके बाद जब भी कमला मायके गई  भतीजा राहुल उसके साथ ही खाता और सोता। अम्माँ,बाबू के गुजर जाने पर उसका मायके जाना कम हो गया और इधर वह भी अपनी गृहस्थी में ऐसी उलझी कि बेटे की शादी के बाद से तो करीब दस,बारह साल तो हो ही गये हैं उसे मायका देखे बिना।यही सब सोचते कब उसकी आँख लग गई पता ही नहीं चला।

        बहू जूही की आवाज से कमला की आँखें खुलीं और वह बाहर आई तो देखा रंजीत और कमला दोनों शादी के खर्चे की लिस्ट बना रहे हैं।कमला को बैठने का इशारा कर रंजीत बोला..”अम्माँ देखो करीब पन्द्रह,बीस हजार का तो सामान ही आयेगा,बहू को गिफ्ट भी कोई सोने का जेवर ही देना होगा।इसके अतिरिक्त किराया,सब बहन,बेटियों को भेंट आदि में भी खर्चा,सब मिलाकर पचास हजार से कम न होगा।अब हमारी तो समझ में नहीं आ रहा कहाँ और कैसे पैसे का इंतजाम करूँ?”यह सुन कमला पहले तो चुप रही फिर बोली..”देखो बेटा जाना तो पड़ेगा शादी में,नहीं तो बड़ी बदनामी और जगहँसाई होगी।मैं जहाँ तक बनेगा पैसों का इंतजाम करती हूँ।”यह कहकर वह कमरे में लौट आई।




         थोड़ी देर तो वे पलंग पर बैठी सोचती रहीं पर फिर हिम्मत करके उठीं और किवाड़ों की चटकनी चढ़ा पलंग के नीचे से पुराना टीन का बक्सा धीरे से खींचकर खोला।बक्से में सबसे नीचे बिछे कपड़े के नीचे हाथ डाल पोटली निकाली और खोलकर उसमें से कुछ पेपर निकाल कर बक्सा बंदकर फिर से खिसका दिया।अब वे पलंग पर बैठीं और पेपर निकाले जो उनकी गाँव की जमीन के थे और जिसके लिये वे रंजीत से कई बार लड़ाई भी कर चुकी थीं क्योंकि रंजीत चाहता था जमीन बेचकर वे शहर में फ्लैट ले लें परंतु वे पेपर देने से मना करती रहीं कि मेरे जीते जी तो नहीं बिकेगी बाप,दादा की आखिरी निशानी है।पर अब मन मार  कर वे पेपर रंजीत को देने जा रही थीं।

        रंजीत और जूही ने अम्माँ के हाथों में पेपर देखे तो खुश हो गये,कमला ने कहा..  “जमीन बेचना नहीं है बस गिरवी रख पचास हजार लेकर शादी का सामान ले आओ और शादी से लौटकर जल्दी से जल्दी जमीन छुड़ाने की कोशिश करना। मैं भी शादी में चलने की तैयारी करती हूँ” कहकर कमला ने  पेपर रंजीत को दिये तो रंजीत बोला “ठीक है”।वे कमरे में लौट आई पर अब भी उसका मन भरोसा नहीं कर पा रहा था कि रंजीत उसकी बात मानेगा।

           शादी में जाने का दिन आखिर आ ही गया और सुबह से रंजीत,बहू और बच्चे अपना सूटकेस तैयार कर आँगन में रख चुके थे।इधर कमला भी अपना बैग तैयार कर ,नई रेशमी साड़ी पहन पलंग पर बैठी शादी में गाये जाने वाले बन्ना और सेहरा आदि गीतों को मन ही मन याद कर रही थी कि कौन कौन से गाने वह गायेगी।तभी रंजीत आकर बोला..”अम्माँ अंदर से कुंडी लगा लो हम जा रहे हैं,परसों लौट आयेंगे।सर्दी बहुत है तुम यहीं रुक आराम करो”कह वह बाहर निकल गया जब तक कमला कुछ बोलती।कमला कुछ कह ही न पाई बस देखती ही रह गई।

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………. यह मेरी स्वरचित और अप्रकाशित रचना है.

           ……….. कुमुद चतुर्वेदी

                    …………. सोनीपत (हरियाणा)

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