ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे ? (भाग 3) – बेला पुनिवाला 

लेकिन आज तो माया का दिल एक दम से टूट ही गया, उसके इतनी कोशिश के बावजूद भी मनोज उस से दूर ही रहता। माया के अंदर  जैसे युद्ध चल रहा था, इतने सालो में उसने मनोज के लिए क्या कुछ नहीं किया ? एक के बाद एक सब याद आने लगा, जो दर्द माया ने इतने साल सहा। 

           मैंने तो सोचा था,

“तेरे साथ चलते-चलते ज़िंदगी की राह आसान हो जाएगी। ” मैंने तो तुम से बिना किसी शर्त बेपनाह प्यार किया, मगर ” ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे। ” अभी तो माया का दर्द कम भी नहीं हुआ था, कि मनोज ने आज तो बदतमीज़ी की सारी हदे पार कर दी। आज तो मनोज अपने साथ एक लड़की को घर लेकर आया और माया और बच्चों के सामने ही उसी के बिस्तर पे बैठ जाता है, माया उसी वक़्त अपने दोनों बच्चों को लेकर अपना सामान लिए घर छोड़कर अपने पापा के घर चली जाती है। 

       माया ने अपने पापा के घर का दरवाज़ा खटखटाया। माया के पापा ने दरवाज़ा खोला, सामने दो बच्चों और सामन के साथ अपनी बेटी की ऐसी हालत देखकर माया के पापा ने अंदाज़ा लगा लिया, कि माया सच में तकलीफ में है, इसलिए उन्होंने माया को घर के अंदर आने दिया।                         माया ने अपने पापा के पैर पकड़ लिए और कहाँ, ” पापा, मुझे माफ़ कर दो, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई है, आप सच ही कहते थे, कि मनोज अच्छा लड़का नहीं है, लेकिन मैं उस वक़्त उसके प्यार में अंधी हो गई थी, जो आप के लाख समझाने पर भी मैं नहीं मानी, मैंने आपका बहुत दिल दुखाया है। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिए, पापा। 

     माया के पापा ने अपनी बेटी माया को गले से लगा लिया और कहा, ” पहले तो तुम रोना बंद करो, तुम्हें पता है, ना कि मैं तुम्हारी आँखों में आंँसू नहीं देख सकता, इसी बात पे कई बार तुम्हारी माँ से भी झगड़ा हो जाता था। और रही माफ़ करने की बात, तो माफ़ तो मैंने तुम्हें कब का कर दिया था, मगर तुम उसके बाद कभी आई ही नहीं और नाही हमें मिलने की तुमने कभी कोशिश की। तो हमने सोचा, तुम मनोज के साथ खुश होगी। मगर इतने साल बाद आज अचानक क्या हुआ ? “

        माया ने कहा, ” क्या कुछ नहीं हुआ ? आप को मैं अपनी तकलीफ नहीं बताना चाहती थी और कहती भी तो क्या मुँह लेकर, मैंने आपकी मर्ज़ी के खिलाफ जो शादी की थी।  तो मैंने सोचा, कि जो भी करना है, अब बस मुझे ही करना है, इसलिए मैंने मनोज को समझाने और सुधारने की अपनी और से बहुत कोशिश की, मग़र अब बस, अब पानी सर से ऊपर पहुँच गया है, अब उसकी बदतमीज़ी मैं और नहीं सेह सकती। इसलिए आप के पास चली आई और जाती भी तो कहाँ ? आप दोनों के अलावा मेरा इस दुनिया में है ही कौन ? बस कुछ ही दिन पापा, उसके बाद में अपने और अपने बच्चों के लिए रहने का इंतेज़ाम कर ही लूँगी। “

      माया के पापा ने कहा, ” ऐसा क्यों कहती हो ? ये अब भी तुम्हारा अपना ही तो घर है। बहुत अच्छा किया बेटी, जो तू यहाँ चली आई। आखिर हम तुम्हारे माँ-बाप है और माँ-बाप अपने बच्चों का साथ कभी नहीं छोड़ते, माँ-बाप का दिल बहुत बड़ा होता है, वह किसी भी हाल में अपने बच्चों को माफ़ कर ही देते है। अब तुम्हें फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं, तुम अब से हमारे साथ ही रहोगी और रही बात तुम्हारे और मनोज के रिश्तें की तो जहाँ तक मैं तुम्हें जानता हूँ, वहांँ तक तुम ऐसी कोई गलती कर ही नहीं सकती, जिस से की मनोज गुस्सा हो, गलती ज़रूर उसी नालायक़ की ही होगी।  



       माया के पापा ने माया को अपनी पढाई पूरी करने को कहा, डिस्टन्स लर्निंग से माया ने अपनी पढाई पूरी कर ली। उसे अब अच्छी जॉब भी मिल गई, माया की माँ बच्चों का ख्याल रख लेती। उस दरमियाँ माया के पापा ने मनोज  को माया को डिवोर्स देने की नोटिस भेज दी, मगर वह डिवोर्स देने के लिए इतनी जल्दी नहीं माना, क्योंकी दो बच्चों के साथ डिवोर्स देने में माया के पापा ने उससे बच्चों की पढाई के पैसे और माया का खर्चा उठाने को कहा, तब मनोज डर गया और माया को फ़ोन कर के परेशान करने लगा, माया से अपनी गलती की माफ़ी भी माँगने लगा,

मगर माया के पापा को पता था, कि ये सब वह पैसे बचाने के लिए कर रहा है, इसलिए इस बार माया के पापा ने माया को समझा दिया, कि मनोज सुधरने वालों में से नहीं है, उसे सुधरना होता तो वह कब का सुधर गया होता, अब तुम ही सोच लो, कि अब तुम्हें क्या करना है, फ़िर से उसी के साथ रहना है, या अपनी ज़िंदगी अपने हिसाब से जीना है ? ” आज भी जैसा तुम चाहोगी, वैसा ही होगा। 

       इस बार अब माया को अपने पापा की बात सच लगी, इसलिए वह अपने फैसले पे लगी रही। देर से ही सही लेकिन आख़िर मनोज को डिवोर्स पेपर्स पे दस्तख़त करने ही पड़े, वह भी माया की सारी शर्त मानते हुए। 

        वैसे तो माया पहले से ही बहुत सुंदर, सुशील और संस्कारी लड़की थी, इसलिए आज भी उस के लिए अच्छे रिश्तें आते रहे, लेकिन अब माया का भरोसा प्यार से उठ चूका था, इसलिए उसने अपनी बाकि की ज़िंदगी अपने बच्चों की परवरिश करने में और अपने माँ-पापा की सेवा में गुज़ारना पसंद किया।  

    अब मनोज माया की ज़िंदगी से पूरी तरह चला गया था, मगर फ़िर भी अकेले में माया को अक्सर अपना बिता हुआ पल ना चाहने पर भी आँखों के सामने आ ही जाता और कुछ आँसू आँखों से पानी की तरह बह जाते। वो कहते है ना, कि ” हर एक की ज़िंदगी में कुछ बातें ऐसी होती है, जिसे वह भूलना चाहे तो भी भुला नहीं पाते। “

       

       तो दोस्तों, ये सिर्फ एक माया की कहानी नहीं है, आज भी दुनिया में कई ऐसी औरतें है, जो शायद ऐसे दर्द से हर रोज़ गुज़रती है। हर दर्द सेहती ही, चुप रहती है, अपने घर वालों की हांँ में हाँ मिलाती रहती है, चाहने पर भी कुछ कह नहीं पाती। अपना अपमान उसे पल-पल याद आता रहता है, मगर फ़िर भी बच्चों और परिवार वाले और माँ-बाप की बजह से वह चुप रह जाती है। हर ग़म हर दर्द सेह जाती है। मगर आखिर कब तक ? 

स्व-रचित 

एवम 

मौलिक कहानी 

#दर्द 

बेला पुनिवाला 

2 thoughts on “ ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे ? (भाग 3) – बेला पुनिवाला ”

  1. bilkul hia na samjh me aane wali story kuch mayne hia nahi niklte ish story ke,abse pahle baccho ke saath me party me kyo nahi le gaye,dusri baat,love marrige koi gunah nahi hai ki ladka kuch bhi kare ,use roka toka na jaye,tisri baat,usne tlak ke liye kaha ladki use sunkar ghar chodkar aa gayi,ye kon si baat ho gayi,wanhi rqhkar datkar mukabla karti,talak lekar apni akele duniya bsa lane se jindgi nahi katti katne ko dodti hai.

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