ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे ? (भाग 2) – बेला पुनिवाला 

 मनोज का मैसेज पढ़ते ही माया की जान में जान आई, कि चलो मनोज ठीक तो है ! लेकिन दूसरे ही पल माया के दिल में ये ख्याल आया, कि ” ऐसी भी क्या जल्दी जाने की, मैं अपने बच्चों की बजह से ही तो लेट हुई थी, क्या मनोज मेरा इतना भी इंतज़ार ना कर पाए ? क्या मुन्ना और मुन्नी सिर्फ और सिर्फ मेरे बच्चे है ? बच्चों की ज़िम्मेदारी सिर्फ मेरी ही ज़िम्मेदारी है ? क्या बच्चों की ओर उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं ? शादी से पहले तो कितनी बातें बनाते थे ! तू जिस गली ना हो, उस गली से हम गुज़रेंगे भी नहीं ? और भी ना जाने क्या क्या ? अब क्या हुआ ? तेरे सारे वादें जूठे। “

      सोचते हुए माया ऊपर अपने कमरें में जाकर अपने आप को आईने में देर तक, बस एक तक तकती ही रह गई। तभी माया के मोबाइल में फिर से मैसेज आया, उसने नोटिफिकेशन में देखा, तो मनोज ने अपने दोस्त के साथ की फोटो इंस्टाग्राम पे पोस्ट की थी, जिस में वह अपने दोस्तों के साथ बहुत ही खुश नज़र आ रहा था और इस तरफ माया का दिल दर्द से रो रहा था, क्योंकि ये आज की बात नहीं, मनोज को अब दर्द देने की आदत सी हो गई थी और माया की दर्द सहने की हिम्मत दिन-ब-दिन टूटती जा रही थी। आज माया की आँखों में अब नींद कहाँ ?

माया पूरी रात अपने दोनों बच्चों को देखते हुए, मनोज का इंतज़ार करती रही, कि ” आज तो मैं मनोज से पूछ के ही रहूंँगी, कि ” बच्चों की तरफ उसकी कोई ज़िम्मदेरी है भी या नहीं ? वह मुझे यहाँ यूँ अकेले छोड़ कर कैसे जा सकते है ? ” वैसे आज तक माया ने मनोज से नाहीं कोई सवाल किया और नाहीं कभी मनोज के साथ ऊँची आवाज़ में बात की। चाहे मनोज जितना भी गुस्सा हो या चिल्लाए। माया अपने अंदर कई सवालों की पोटली बनाए जा रही थी। इन्हीं सब कसमकस के बीच कब सुबह हो गई, माया को पता ही नहीं चला और 

        सुबह होते-होते माया के मोबाइल में मनोज का फ़िर से एक और मैसेज आया, जिस में लिखा था, कि ” माया, मैं तुम से ठक गया हूँ, अब मुझे तुमसे डिवोर्स चाहिए।  “



    ऐसा मैसेज पढ़ते ही, माया के पैरो तले से ज़मीन ही खिसक गई। वह सोचने लगी ” इतनी सी देरी के लिए इतनी बड़ी सज़ा ? या मैं इतनी बुरी हूँ ? या मैं सूंदर नहीं हूँ ? या मैंने अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई ? बच्चों से प्यार करना और उनकी देखरेख करना, उनको पढ़ाना-लिखाना, उनकी हर छोटे से छोटी ज़रूरत का ख्याल रखना, क्या ये मेरी गलती है ? या फिर आज तक मैं चुप रही और मैंने मनोज से अपने हक़ के लिए कभी कुछ नहीं माँगा, ना कहा, या ये मेरी गलती है ? डिवोर्स ? मुझ से ? आखिर क्यों ? ” 

       डिवोर्स की बात ने माया को सब से बड़ा दर्द पहुंँचाया था। माया अपने बिस्तर से खड़ी होकर आईने के सामने खड़ी रहती है, अब तक माया ने अपने कपडे भी नहीं बदले थे, जो उसने शादी में जाने के लिए पहने हुए थे। माया की आँखो के सामने उसका गुज़रा हुआ पल आने लगता है, कुछ साल पहले 

      जैसे, कि ” माया के पापा माया को समझा रहे थे, कि ” बेटा, पहले अपनी पढाई पूरी कर दो, बाद में आराम से शादी के बारे में सोचेंगे, तेरे लिए तेरी मनपसंद के लड़कों की मैं लाइन लगा दूंँगा। हाँ, मगर मनोज मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा। “

    मगर उस वक़्त मायाने अपने पापा की बात को नज़रअंदाज़ किया और मायाने मनोज के साथ भाग के चुपके से शादी कर ली। माया के पापा ने ऐसा सोचा भी नहीं था, कि उसकी बेटी ऐसा करेगी। इस तरफ पहले-पहले तो सब ठीक रहा, मगर बाद में मनोज पे और माया पे ज़िम्मेदारी बढ़ने लगी। माया घर के कामो में और बच्चे सँभालने में व्यस्त रहने लगी और मनोज को फ़िर से अपना दिल बहलाने के लिए लड़की की जरूरत पड़ने लगी,

मनोज देर रात तक अपनी गर्ल फ्रेंड से फ़ोन पे बातें करता, माया दरवाज़े के पीछे छुप के सब सुन लिया करती, मगर मनोज से कभी इस बार में सवाल न कर पाई, बात और बढ़ने लगी, अब तो वह रात को घर से चला जाता और सुबह आता, या तो कभी-कभी सुबह जल्दी निकल जाता और रात को देर से आता। मनोज का माया पे जैसे ध्यान ही नहीं, कि ” माया घर में क्या कर रही है और कैसी होगी ? ” माया बार-बार मनोज को फ़ोन किया करती मगर तब भी मनोज माया के १० कॉल में से एक कॉल का ही जवाब देता और इस बीच अगर कभी बच्चें कोई गलती करे तो भी मनोज माया को ही सुनाता, “

आखिर आज तक तूने बच्चों को सिखाया ही क्या है ? पूरा दिन तुम आखिर घर में करती ही क्या हो ? मुफ़त की रोटियांँ ही तो तोड़ती हो और तो और तुम्हारे लाड-प्यार में दोनों बच्चें बिगड़ गए है, देखो, कैसे सब के सामने शैतानी करते रहते है और अब तो मेरे सामने मुँह पे जवाब भी देना सिख गए है, ये सब तुमने ही तो सिखाया है ना, दोनों को ?” माया ग़म में डूबी रह जाती, कि क्या सच में इस में भी मेरी ही गलती है ? मैंने बच्चों को कुछ नहीं सिखाया ? और माया हर बार की तरह चुप रह जाती, उसके पास मनोज के सवाल का उस वक़्त कोई जवाब नहीं होता था। “

            माया की पढाई भी इस प्यार के चक्कर में अधूरी रह गई। माया पहले से ही बहुत शांत स्वाभाव की थी, उसने किसी से झगड़ा करना या किसी से ऊँची आवाज़ में बात करना सीखा ही नहीं था, छोटी-छोटी बात पे मनोज गुस्सा हो जाता, तब भी माया चुप रह जाती। ऐसी और भी कई बातें जो माया के दिल को दर्द पहुँचाती रही। 

 अगला भाग 

 ये कैसा दर्द दिया पिया तूने मोहे ? (भाग 3) – बेला पुनिवाला 

स्व-रचित 

एवम 

मौलिक कहानी 

#दर्द 

बेला पुनिवाला 

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