यत्र तत्र सर्वत्र – मनीषा देबनाथ

अमन एक इंजीनियर होने के साथ-साथ एक अच्छा लेखक भी था। लेकिन एक इंजीनियर होने के बावजूद अमन को ज्योतिष, वास्तु, तंत्र मंत्र के विषयों में जानना और लिखना उसे बहुत शौक था।
रात के दो बजे थे। अमन एक जन्मपत्री का अध्ययन कर रहा था। वह संसार की सुध-बुध खोये एक अनजान लड़की की कुण्डली में खोया था। वह जातक के भविष्य से साक्षात्कार करने का प्रयास कर रहा था। तभी अचानक अमन के बीच पर वह किसी औरत का स्पर्श अनुभव करता है…

“डार्लिंग!…”

अमन घबराकर वह एकदम से उछल पड़ता है। उसने जब मुडकर देखा, तो वह उसकी पत्नि वीरा थी, वह उसके पीछे खड़ी मुस्करा रही थी। और फिर…

“अरे! तुम, इतनी रात गये ऐसे क्यों जाग रहे हो मुझे तो आज तक समझ में नहीं आया कि एक इंजीनियर होकर आपको इन सब बातों में भरोसा कैसे होता है… खैर, सब ठीक तो है ना? तुम्हारी वह बच्चियां तो बिल्कुल तो ठीक है ना?”

अमन कुछ समझ नहीं पाता कि वीरा कौन से बच्चियों की बात कर रही है क्योंकि अमन और वीरा की तो अभी तक कोई संतान ही नहीं थी। अमन फिर भी बिना घबराए वीरा को जवाब देता है…

“हां, प्यारी बीवी सब ठीक है!”

“पर तुम अभी तक क्यों जाग रही हो क्या सोना नहीं है, आपको? सारी-सारी रात पढ़ने-लिखने में लगे रहते हो, अपनी पत्नी की भी चिंता है, आपको?” 

वीरा एकदम से झल्लाकर कर बोली।

“अरे! भाई इतना आंख क्यों दिखा रही हो, मैं एक जन्मपत्री का अध्ययन कर रहा था! कोई बात नहीं मैं बाद में देख लूंगा चलो सोने चलते हैं!” 

अमन ने अपनी अस्त-व्यस्त किताबों को व्यवस्थित करते हुये कहा।

अमन और वीरा दोनों ही गहरी नींद में सो गए, ऐसा वीरा को लगा था लेकिन अमन की आंखों में नींद ही नहीं थी। वह दरअसल, अपनी पत्नी वीरा के स्वभाव में अस्वभाविक परिवर्तन से चिंतित था। जबकि उसकी चिंता के अनेक कारण थे। क्योंकि पत्नी वीरा अचानक से उसके मन की बात को साफ पढ़ने लगी थी, जबकि पहले ऐसा नहीं था। यह नहीं वीरा के शरीर से एक अजीब सी 




गंध आने लगी थी, वह गंध अमन की पत्नी वीरा की नहीं थी लेकिन कोई अनजान लड़की की ही थी। जबकि वीरा अपने रोजाना जीवन में जीन वस्तुओं का उपयोग करती थी उनमें तो कोई परिवर्तन नहीं था। अचानक से पहले से ज्यादा कामुक हो गई थी, जो शादी से अब तक सर्वाधिक था। उसके चेहरे पर अजीब सी मुर्दानगी छाई रहती थी, ऐसा लगता था कि वह सम्मोहित है।

अगले दिन अमन रात्रि में अपनी डायरी लिखकर उसके पिछले पृष्ठों को पढ़ने लगा तो उसका ध्यान करीब दस दिन पहले की घटना पर केंद्रीत हो गया, वह उस दिन के पृष्ठ पढ़कर सारा हिल गया।

क्योंकि अमन ने इंजीनियरिंग के साथ-साथ तंत्र मंत्र की विद्या भी सीखी हुई थी यह अक्सर अजीब सी बात है कि एक पढ़े लिखे नौजवान को इन सब अंधविश्वास पर कैसे भरोसा होता था लेकिन अमन ने बचपन में कुछ ऐसी घटनाएं नजरों से देखी हुई थी कि जिन पर भरोसा करना नामुमकिन था जिसके बाद अमन साइंस  के साथ-साथ काली दुनिया का रहस्य भी जानने लगा था। परंतु वह उसका प्रयोग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही करता था।

उस दिन अमन के साथ कुछ अजीब सा हुआ जब उसने अपनी पत्नी के अत्यधिक आग्रह पर अपनी पत्नी की मृत सहेली पुष्पा की ‘आत्मा‘ से सम्पर्क किया, परन्तु ‘‘कटोरी‘‘ (प्रेतों से बातचीत का माध्यम) की उछल कूद देखकर उसकी पत्नी वीरा काफी घबरा गई, और बेहोश हो गयी, उसी दिन से अमन ने अपनी पत्नी में यह परिवर्तन महसूस किये थे। इसका तात्पर्य था उसकी पत्नी के शरीर में उसकी मित्र पुष्पा की ‘आत्मा‘ का अधिकार था। यह बात जानकर अमन अत्यधिक परेशान हो उठा।

“आप भूत-प्रेतों में कब से विश्वास करने लगे डार्लिग?” अचानक उसकी ‘कथित‘ पत्नी वीरा उसकी पीठ का स्पर्श करते हुये बोली।

अबकी बार अमन उसके अचानक स्पर्श से डरा नहीं था। बल्कि सावधान हो गया था, क्योंकि उसकी ‘कथित‘ पत्नी उसके मन में उमड़ने वाली हर बात को पढ़ सकती थी।

“नहीं! नहीं! वैसे ही कुछ पढ़ रहा था…” 

अमन ने अपने मन को ‘विचारशून्य‘ करते हुये कहा, वह बड़ी चालाकी से एक फीकी हंसी हंसते हुये बोला! क्योंकि वह जानता था कि ‘प्रेत आत्मा‘ उसके मन को तो पढ़ सकती है, लेकिन अगर वह कोई अलग भाषा नहीं जानती तो वह उर्दू में लिखी हुई उसकी डायरी को नहीं पढ़ सकती थी।




अगले दिन से अमन ने अपने मन को ‘विचारशून्य’ बनाकर योजना बनानी शुरू की। यह अमन के लिए बहुत ही मुश्किल था कि उसे अपने मन में कुछ न रखकर आगे अपनी योजना बनानी थी लेकिन अपनी पत्नी के लिए वह कठिन से कठिन परिस्थितियों से गुजरने के लिए बिल्कुल तैयार था।

शारदीय नवरात्र आने वाले थे, उसने इस ‘आत्मा‘ से निपटने के लिए योजना बनानी शुरू कर दी।

नवरात्रि में उसने ‘‘गायत्री-महामंत्र‘‘ का ‘‘लघु-अनुष्ठान‘‘ करना प्रारम्भ कर दिया। कथित पत्नि के बार-बार विघ्न डालने पर भी अमन ने अपने ‘जप‘ जारी रखें और दसवें दिन हवन करने की तैयारी शुरू कर दी। और जिसका डर था वही हुआ वीरा बेचैन होेकर कमरे से बाहर आ गई उसका चेहरा भयानक लग रहा था। आंखे लाल हो गयी थी। पवित्र भगवान की अग्नि में पड़ती हर एक आहुति उसे तीर के समान लग रही थी। उसने अमन से बार-बार कहा, की हवन बन्द कर दें मेरा दम घुट रहा है। पर अमन ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और उसका हाथ पकड़कर अपने पास बैेठा लिया। परन्तु उसकी पत्नी तेजी से घर से बाहर की ओर भागी, परन्तु ताला बन्द होने के कारण, वह लाल आंखे व बाल बिखरे हुए रौद्र रूप में वापस अमन की ओर बढ़ी।

“हवन को तुरन्त बन्द कर दो! मैं तुम्हारी बीवी हूं कोई आत्मा नहीं! अमन को लगा की उसकी पत्नी की आवाज बदल चुकी थी।

अमन निश्चल होकर हवन करता रहा और शान्त आवाज में बोला-

“हे! पवित्र आत्मा! मेरी पत्नी का शरीर छोड़ दो!”

अमन यहां तक नहीं रुका अमन ने अपनी कोशिश जारी रखी और अपने तंत्र मंत्र की विद्या उसने अपनी पत्नी पर जारी रखी। आगे यह होता है कि पत्नी वीरा के ऊपर अमन कुशा से पवित्र गंगाजल के छींटे लगाता है लेकिन उसकी पत्नी कमरे के धुए के कारण बेहोश हो जाती है। क्योंकि कमरे में हवन किया जाता है और तो और कमरें के सारे दरवाजे और खिड़कियां बंद होती है।

इतने में वीरा के माता-पिता वहां आ पहुंचते है। और देखते हैं कि उनके दामाद ने उनकी बेटी को कमरे में बंद कर मंत्र जाप और हवन कर रहे है। घबराते हुए वीरा के माता पिता ने अपने दामाद अमन को आवाज लगाई लेकिन अमन सुनने से रहा वह तो पत्नी को आत्मा से मुक्त करवाने में ही लगा रहा…




जब अमन ने किसी की बात न सुनी तब वीरा के माता-पिता ने आसपास के कुछ लोगों को बुलाकर दरवाजा तोड़ दिया और अंदर गए तो देखते है कि वीरा बेहोश पड़ी है।

वीरा के माता-पिता वहां की परिस्थितियों को कुछ समझ नहीं पाते और अमन के घर वालों को तुरंत बुलाते है।

तब जाकर अमन की असलियत उनके सामने आती है कि, अमन दिमागी हालत से ठीक नहीं था वह बचपन में दादी से भूत प्रेत आत्मा की कहानियां पढ़ता था और उन कहानियों में अक्सर खो जाता था। जिस वजह से आज भी वह अपने आसपास के लोगों के अंदर किसी आत्मा को महसूस करता है और उन पर अपना तंत्र मंत्र आजमाने का प्रयास करता है। उनके परिवार ने वीरा के माता-पिता से यह बात छुपाई क्योंकि उन्हें अपने बेटे की शादी एक अच्छी लड़की से करवानी थी।

लेकिन आज जब अमन की सच्चाई बाहर आती है तो वीरा के माता-पिता वीरा को अपने साथ लेकर चले जाने की बात करते है। लेकिन वीरा अमन को छोड़कर जाने की बात से इंकार कर देती है क्योंकि वीरा को अमन से लगाव हो गया था। उसने अपने माता-पिता को समझाया और कहा कि मैं कोशिश करूंगी कि अमन बिल्कुल ठीक हो जाए मैं उसे अपने प्यार और विश्वास से बिल्कुल साधारण इंसान बना दूंगी। क्यों की वीरा जानती थी की अमन अंदर से बहुत ही अच्छा इंसान है बस उसकी जो दिमागी बीमारी थी वो दवाई और प्यार से ठीक भी हो सकती थी।

आज 10 साल बाद जब अमन बिल्कुल ठीक हो जाता है तो वह अपनी पत्नी वीरा का बार बार शुक्रिया करता है और पत्नी से माफी मांगता है।

यह एक काल्पनिक कहानी है… लेकिन कहानी के अंत में वीरा ने जो हिम्मत दिखाई और अपने प्यार में जो भरोसा दिखाया वह वाकई काबिले तारीफ है उसने अमन को ना छोड़ उसे ठीक करने का फैसला कर एक पत्नी और एक इंसानियत का फर्ज निभाया।

धन्यवाद,

मनीषा देबनाथ

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