पछतावा – पुष्पा पाण्डेय | best family story

ये सोशल मीडिया भी कमाल की  है। कभी- कभी बरसों बिछड़े लोगों को सामने ला खड़ा कर देती है। अचानक फेसबुक पर एक तस्वीर देखकर जैसे नासूर बने घाव के पीर से कराह उठी। हाँ निःसंदेह यह तस्वीर आरती की ही है। वही आरती जो प्रन्दह साल पहले अपनी चाची के साथ छुट्टी के दिन मेरे घर आया करती थी। वह भले ही एक कामवाली के घर पैदा हुई थी, लेकिन किसी ऊँचे घराने की लड़कियों से कम नहीं थी। काफी खूबसूरत सलीक़ेदार प्रखर बुद्धि की थी। उसकी चाची कमला उसे बेटी की तरह मानती थी। उसकी अपनी कोई औलाद नहीं थी। पति भी बीच सफर में छोड़कर चला गया था। कमला संयुक्त परिवार में रहती थी। वह आरती को स्कूल भेजती थी। उसकी हर जरूरत को कमला पूरी करती  थी। पढाई में भी अच्छी थी। तब आरती नवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसकी चाची कमला काम बहुत अच्छे से करती थी। स्वभाव की भी बहुत अच्छी थी। वह दस साल से मेरे घर काम कर रही थी।

एक दुर्घटना ने उन सबों से मुझे हमेशा के लिए दूर कर दिया। आवेश ने मुझे गुनाहगार बना दिया। एक माँ जब अपने बच्चे पर कोई कष्ट आते देखती है तो उसे उचित-अनुचित का भान ही नहीं रहता है। उसे सिर्फ अपना बच्चा दिखता है। बच्चे के लिए माँ हमेशा से स्वार्थी रही है और शायद हमेशा रहेगी। 

            कमला के साथ मेरा वह तत्कालिक व्यवहार किसी भी तरह से सही नहीं था। मैं अपने डेढ साल के बेटे को उसकी देख- रेख में छोड़कर स्नान करने चली गयी। क्या हुआ? कैसे हुआ? पता नहीं। मेरा बेटा सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ करीब बीस सीढ़ी नीचे चला गया। सिर से लहू टपकने लगा और बच्चा बेहोश हो गया। चिल्लाने की आवाज सुन अति शीघ्र बाहर निकली और बच्चे की स्थिति देख आपे से बाहर हो गयी। जाने क्या- क्या न सुना दिया। यहाँ तक कि उसकी ममता पर भी प्रहार किया।




” तुम पर बच्चा छोड़ना ही नहीं चाहिए था। तुम बच्चे को सम्भालना क्या जानो? बांझ जो ठहरी।”

उसके बाद तो मैं अस्पताल भागी। एक सप्ताह बाद अस्पताल में रही। जब- तक मैं अस्पताल में थी तब-तक वह घर का काम करती रही और खाना भी बनाकर पति को खिला मेरे लिए भेजती थी। अस्पताल से आने के दूसरे दिन आरती आई और घर का काम निपटा कर यह कहती हुई गयी कि-

“चाची अपने मायके गयी है। कब आयेगी पता नहीं। आप किसी और को रख लिजिए। “

यह सुनकर भी गुस्सा आया। अभी बच्चे की देखभाल करनी है और इसी समय इसको मायके जाना था। मैंने चुपचाप पगार दे दिया।

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कुछ दिन बाद पड़ोसियों से पता चला कि वह मेरे अस्पताल जाने के बाद बहुत रो रही थी। ये सुनकर, उसके कार्य- कलाप का सिंहावलोकन करते हुए मुझे अपनी गलती का भरपूर एहसास हुआ। कई बार उसे बुलावा भेजी। हमेशा यही जबाब मिलता था कि वह अभी नहीं आई है। आरती भी अपनी परीक्षा का हवाला देती रही। इस तरह एक महीना निकल गया। अब मैं स्वयं उसकी खोली में जाकर उससे मिलने को सोचने लगी। 

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दूसरे दिन ही पति के स्थानान्तरण की खबर आई  और अब कमला की तलाश छोड़ सामान समेटने में लग गयी और आनन- फानन में मैं वो शहर छोड़ दूसरे शहर में आ गयी। 

वहाँ जाने के बाद भी सम्पर्क करने की कोशिश करती रही। तब कमला के पास फोन नहीं था। जो  घाव मैंने कमला को दिया था, उस घाव की पीर मुझे होती थी। काफी पछतावे के साथ एक टीस लिए जिन्दगी में आगे बढ़ती गयी।




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फेसबुक में आरती अपनी तस्वीर चाची के साथ लगायी थी। उस दिन उसकी चाची की बरसी थी। बहुत कोशिश के बाद आरती से फोन पर सम्पर्क हुआ, लेकिन तब- तक बहुत देर हो चुकी थी। आरती से पता चला कि वह मायके सिर्फ पन्द्रह दिन के लिए गयी थी

वास्तव में वह मेरे काम से बचने के लिए ही बहाना बनाती रही। कारण आरती को भी नहीं मालूम था। इसका मतलब की कमला अपना दर्द अपनी पीड़ा अपने तक ही सीमित रखी। तो क्या दूसरों की नजर में मुझे गलत साबित करना नहीं चाहती थी? उसने मेरा इतना ख्याल रखा कि जब- तक अस्पताल में रही तब- तक मेरी सहूलियत के लिए काम करती रही। खाना भी बनाती थी। अस्पताल से आने पर भी आरती को भेजा, ताकि मुझे अधिक परेशानी न हो। कमला मेरे लिए इतना सोचती रही और मैं………..

आज मैं अपने ही नजरों में गिर गयी। मुझसे कहीं बहुत ऊपर थी कमला। मैं इस अपनी पीड़ा को अपने पति से भी नहीं कह सकती।

मैंने आरती को भी कुछ नहीं बताया। जब कमला इस राज को राज रखी तो अब राज खोलने से शायद उसकी आत्मा दुखी होगी, लेकिन मैं किस दौर से गुजरी ये मैं ही जानती हूँ। अब तो इस पछतावे के साथ ही मेरी जिन्दगी का अंत होगा। ऊपर कमला से मुलाकात होगी तो माफी मांग लूँगी, लेकिन कमला तो स्वर्ग में होगी।

#पछतावा

स्वरचित

पुष्पा पाण्डेय 

राँची,झारखंड। 

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