वो जब याद आये तो बहुत याद आये – नूतन गर्ग

किरन के पापा जो उसके सबसे करीब रहे। उनके साथ बिताए आखिरी लम्हे, जो वह कभी भुला नही पाएगी। आज़ भी जब वो मंजर उसकी आंखों के सामने से गुजरता है, तब उसकी आंखों से पानी की बूंदें गालों पर ऐसे पड़ जाती हैं जैसे मोती की बूंदें।

वे तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, पर! उनकी यादें हमेशा उसके साथ ताज़ा रहेंगी।

जब भी वह परेशान होती तब वह अपनी सहेली मीना से बातें करने लगती थी, उसका मन हल्का हो जाता। मीना उसकी बचपन की पक्की सहेली जो ठहरी। दोनों ने शायद ही कभी कोई बात आपस में छिपाई हो।

किरन ने मीना को  फोन मिलाया और अपने पापा को याद करते हुए अपने मन में चल रही उथल-पुथल को कहना शुरू कर दिया…

‘बात उस समय की है जब मेरे पापा कैसंर के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके थे। अब उनके और मेरे पास कहने-करने को कुछ बाकी नहीं बचा था। सब भगवान भरोसे हो चला था।

मुझे अच्छी तरह याद है कि वे कैसे मेरे पहुंचने पर इतने खुश हो ग‌ए थे, क्योंकि उनका इलाज मेरे पास रहकर ही हुआ था। उन्हें मुझ पर और मेरे पति पर बहुत भरोसा था। मैं उस समय जालंधर में थी, तो लुधियाना में जो कैंसर का अस्पताल है, उसमें ही इलाज हुआ था। भैय्या उन दिनों बहुत दूर पोस्टेड थे। वैसे भी मुझे पापा का काम करते हुए अच्छा लगता।’

‘छोड़! यह सब तो काफी लम्बा हो जाएगा!’


‘नहीं रे अपने मन की सब बातें कह दे मुझसे। मन हल्का हो जाएगा।’ मीना ने ज़ोर देते हुए कहा।

‘जब तू कह रही है तो आगे सुन… आखिरी समय पर पापा लगातार बस एक ही बात कह रहे थे कि मुझे यहॉं से अपने घर ले चल। यहॉं गर्मी बहुत लगती है, तुम्हारे घर में मैं ठीक हो गया था। यहॉं आकर फिर बीमार हो गया।

उस समय मेरी आंखो से अश्रुधारा बहने के लिए अपने पैर पसारती जा रही थी। मैं एक अबोध बालिका की तरह बस वहीं खड़ी रहने पर मज़बूर थी। कुछ भी नहीं कर पा रही थी। बस उन्हें यही आश्वासन दे पा रही थी कि मैं ले चलूंगी आपको अपने साथ और इलाज भी करा दूंगी।

मेरे इतना कहते ही, जैसे पापा को कुछ आराम महसूस हो गया और उन्होंने अपनी क‌ई दिनों की नींद पूरी की। ऐसा मम्मी कह रहीं थीं। पापा के सोते ही उस दिन मम्मी ने भी अपनी नींद पूरी की। दोनों को ऐसे सोते देख हम सब बहन-भाइयों की आंखें भर आईं।

शाम के चार बज रहे थे। पापा अचानक उठे और कहने लगे, आज़ अपने सब बच्चों को देख मन बहुत खुश है। पर मुझे गर्मी बहुत लग रही है। मुझे पास बुलाकर कहा बेटे तू मुझे साथ ले चलेगी न! मैंने हां में सर हिला दिया और हाथ से भी पंखा करने लगी।

तभी पापा ने मुझे देखा और मेरा हाथ ज़ोर से पकड़ लिया न छोड़ने वाली स्थिति में। परंतु धीरे-धीरे उनकी पकड़ ढीली हो चली थी, जिससे मैं समझ गई थी कि अब वे इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं और हमारे सर पर से उनका हाथ भी उठ चुका है। मम्मी और हम सबके पास अब सिर्फ उनकी यादें ही शेष रह गईं थीं।


मैं आज़ भी जब कभी इस वाकया को याद करती हूं तो बस एक ही बात मेरे ज़हन में घूमती है कि काश! मैं उनको हमेशा अपने पास रख पाती!

मीना तुझे पता है वो जब भी याद आते हैं, बहुत याद आते हैं। मन करता है उनकी गोदी में सर रखकर अपनी सारी आगे-पीछे की आपबीती सुना दूं।’ कहते-कहते फफक-फफक कर रोने लगती है…

हां यार! पापा की याद जब आती है तो बहुत आती है। मैं भी कल पापा से मिलने जाऊॅंगी, तू भी आ जा, उनको हमसे मिलकर अच्छा लगेगा। कोरोना की वजह से क‌ई महीनों से मिल नहीं पाई हूं उनसे।’ दूसरी ओर से मीना ने भी रूंधते गले से जवाब दिया…

दोनों ओर से फोन पर ‘सिसकने’ की आवाजें आने लगती हैं…।

मौलिक रचना

नूतन गर्ग (दिल्ली)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!