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 ‘ वो भी तो लाडली है ‘ – विभा गुप्ता 

    ” तो आप क्या कहते हैं चाचाजी, नंदा को विदा करने की इजाज़त दे रहें हैं?” नरेश ने श्यामलाल से पूछा।

     ” हर्गिज़ नहीं, इकलौते बेटे की शादी में मेरे कितने अरमान थें, तुमने सब मिट्टी में मिला दिया।रिश्तेदारों और दोस्तों में तुमने मेरी नाक कटा दी और अब एक मोटर साईकिल देने का वादा करके मुकर रहे हो।जब तक अपना वादा पूरा नहीं करोगे, नंदा की विदाई की अनुमति मैं नहीं दूँगा।” श्यामलाल सिगार का धुआँ उड़ाते हुए लापरवाही से बोले।

          श्यामलाल की ‘ना ‘ से नरेश का मन दुखी हो गया।विवाह के बाद उसकी बहन नंदा का पहला सावन था,वह अपनी सखी-सहेलियों से मिलने और बातें करने के न जाने कितने सपने संजोये बैठी थी, उसकी विधवा माँ भी तो बेटी से मिलने के लिए तरस रही थी।श्यामलाल के मना करने से इन दोनों का दिल टूट जायेगा,यह सोचकर नरेश ने एक बार फिर से श्यामलाल से विनती की, ” मैंने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की थी कि बारात के स्वागत में कोई कमी न रहे,फिर भी कोई कमी रह गई हो तो मुझे क्षमा कर दीजिये।लेकिन मेरी गलती की सज़ा मेरी मासूम बहन को तो मत दीजिये।उसकी सपने टूट जायेंगे,आखिर आप भी तो एक बेटी के पिता हैं।” कहते हुए ने नरेश ने हाथ जोड़ लिए। 

          नरेश की बात पर श्यामलाल गुस्से से भड़क उठे।चीखते हुए बोले, “अपनी तुलना मुझसे करते हो, तुम्हारी ये हिम्मत! मैंने अपनी बेटी का विवाह उस शानो-शौकत से किया था कि लोगों की आँखें फटी की फटी रह गयी थी।और दान-दहेज इतना कि उनका घर भर गया था।विनय अपनी बहन को लेने गया है,आता ही होगा,तब देख लेना।” कहकर वे धीरे-से बुदबुदाये, हुँह..बड़ा आया मेरे से बराबरी करने वाला।नरेश समझ गया कि उसे अकेले ही वापस जाना पड़ेगा।



            पति की तेज आवाज़ सुनकर श्यामलाल की पत्नी प्रेमा देवी बाहर आईं। पति के तेवर देखकर वे सारा माज़रा समझ गयीं।स्वभाव से नरम और दयालु प्रेमा देवी से नरेश का दुख देखा नहीं गया।वे नरेश से बोली, ” बेटा,मेरे लिए तो जैसे विनय वैसे तुम हो।अपने पति को तो समझा नहीं सकती,तुम ही मेरी बात मान लो।ये एक लाख रुपये हैं ,तुम विनय के पिता को देकर नंदा की विदाई करा लो।” कहते हुए उन्होंने नरेश के हाथ रुपये का एक बड़ा पैकेट रख दिया।नरेश ने वह पैकेट वापस उन्हें देते हुए बोला, ” माँजी, जिस घर में आप जैसी देवी रहती हों,उस घर की बहू को कोई दुख हो ही नहीं सकता।इस बार न सही, अगले सावन, मैं नंदा की विदाई करा लूँगा।

” उसने अपनी आँखों के नम कोरों को पोंछते हुए नंदा से विदा ली और बाहर जाने के लिए उद्यत हुआ कि तभी दरवाज़े पर गाड़ी का हार्न सुनाई दिया।श्यामलाल खुशी से अपने दोनों हाथ उठाकर पत्नी को आवाज़ देने लगे, “अजी कहाँ हो, मेरी दीपा बिटिया आ गई है।जल्दी से आरती की थाली लाओ।” ” इसकी कोई आवश्यकता नहीं है बाबूजी।” विनय ने गाड़ी की चाभी टेबल पर रखते हुए कहा।

      ” क्यों नहीं, आखिर मेरी बिटिया ससुराल से पहली बार मायके आई है।कहाँ है, दिखाई क्यों नहीं दे रही?” बेटी को न देखकर श्यामलाल चिंतित हो उठे। “बाबूजी, वो नहीं आई है।उसके ससुर का कहना है कि आपने दहेज़ कम दिया था, इसीलिए….।” कहते हुए विनय का स्वर भीग गया।सुनकर श्यामलाल गुस्से से बोले, ” कितने  लालची हैं! इतना लेने के बाद भी उनका जी नहीं भरा।हाय रे! कैसे निर्दयी को मैंने अपनी बेटी दे दी।” बेटी को न देख पाने से उनका मन दुख से आहत हो उठा, पत्नी से बोले, ” दीपा की माँ, उन लोगों ने एक बार भी नहीं सोचा कि एक पिता के दिल पर क्या बीतेगी?”



           ” यही तो मैं भी आपको कब से समझा रही थी।”  ” क्या?” पत्नी की बात पर श्यामलाल ने पूछा। प्रेमा देवी बोली, ” जैसे आपको अपनी बेटी प्यारी है,उसके न आने पर आप दुखी हैं और अपने समधी को आपने लालची कहा, वैसे ही हमारी बहू नंदा भी तो अपने घर की लाडली है।उसके तो पिता भी नहीं है,नंदा के न जाने पर उसकी माँ को कितना दुख होगा, क्या आपने सोचा? उसका भाई कितनी उम्मीदें लेकर आपके द्वार पर आया था, आपने उसे निराश कर दिया।ईश्वर की कृपा से आप एक क्या, दस मोटर साईकिलें खरीद सकते हैं।केवल सोसायटी में अपनी नाक रखने के लिए अपनों को तकलीफ पहुँचाना क्या सही है?।”

          ” तुम ठीक कहती हो दीपा की माँ, खुद के कलेजे पर चोट लगती है,तभी दर्द का एहसास होता है।अच्छा अब चलो, बहू की विदाई की तैयारी करो,मैं विनय को गाड़ी निकालने के लिए कहता हूँ।” कहकर श्यामलाल विनय को आवाज़ देने लगे।तभी नरेश श्यामलाल के पैर छूते हुए कहा, “अच्छा चाचाजी, आज्ञा दीजिए,आपको दिया हुआ वादा पूरा करके ही…..।”  “नहीं-नहीं बेटा, मुझे और शर्मिंदा न करो।”  नरेश की बात पूरी होने से पहले ही श्यामलाल बोल पड़े।उन्होंने नरेश से मुस्कुराते हुए कहा,  “अब नंदा भी अपनी सहेलियों के संग झूला झूलेगी।और हाँ, नंदा की यह पहली तीज़ है।तीज़ से एक दिन पहले विनय भी सिंजारा लेकर वहाँ पहुँच जायेगा।” 

           “जी चाचाजी ” कहकर नरेश नंदा को लेकर गाड़ी में बैठ गया।नरेश के जाने के दस मिनट बाद ही श्यामलाल के घर पर एक गाड़ी आई।गाड़ी से दीपा को बाहर निकलते देख श्यामलाल चकित रह गये,उन्हें कुछ समझ नहीं आया।फिर बेटी से बोले, ” पाँच मिनट पहले आती तो भाभी से भी…।” “रास्ते में हम मिल लिये बाबूजी।” पिता की बात पूरी होने से पहले ही दीपा बोल पड़ी। ” क्या मतलब?” सुनकर श्यामलाल आश्चर्यचकित हो गए।दीपा बोली, ” बाबूजी, नरेश भैया ने आपकी हर मानी है, फिर भी आप हमेशा उन्हें बेइज्ज़त ही करते थें।भाभी को बहुत दुख होता था।वे कुछ नहीं कहती थी,बस रोकर मन हल्का कर लेती थीं।अब जब आपने उनकी विदाई भी रोक दी तब…।” वह मुस्कुराई और बोली,” हम सबने यह प्लान बनाया।बाबूजी, जैसे मैं आपकी लाडली हूँ, वैसे ही वो भी तो अपनी माँ की लाडली है ना।” श्यामलाल बोले, “हाँ मेरी बिटिया, आज तूने मेरी आँखें खोल दी।” 

           ” क्यों श्यामलाल जी, मुँह मीठा नहीं करायेंगे, सुना है, आपके शहर की घेवर बहुत प्रसिद्ध है।” गाड़ी से उतरते हुए दीपा के श्वसुर ने कहा तो उन्हें अचानक देखकर सभी चौंक पड़े। ” हाँ-हाँ क्यों नहीं ” कहते हुए श्यामलाल हँस पड़े।घर का उदास वातावरण अब ठहाकों में तब्दील हो चुका था।

                    — विभा गुप्ता 

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