वापसी ( रिश्तों की)  आखिरी भाग-5 –  रचना कंडवाल

अब तक आपने पढ़ा कि बरखा सुनिधि को‌ उसके पापा के बारे में बताती है जिसे सुनकर सुनिधि दंग रह जाती है। उसके मन में अपनी मॉम के लिए नफरत भर जाती है।

वह रियलाइज करती है कि उसके सास-ससुर और पति विपुल उसे कितना प्यार करते हैं। जिसे वह सास की टोका-टाकी समझती है वो महज एक परवाह है। वो उसको अपने अनुभव से कुछ सिखाने की कोशिश है। वो अपने घर वापिस चली आती है। अब आगे–

सुनिधि अपने घर वापस लौट कर बहुत खुश थी।

अगले दिन उसने शॉपिंग का प्रोग्राम बना लिया। वो एक बहाना मात्र था अपनी सासू मां को स्पेशल फील करवाने का इससे पहले वो उनसे काम से काम रखती थी।

मम्मी आप भी चलें उसने अपनी सास को कहा। अरे तुम चली जाओ मेरे घुटनों में दर्द है।

पर उसने जिद करके उन्हें मना लिया। दोनों मॉल ग‌ए घूमे फिरे उनकी पसंद का प्लेन दोसा विद नारियल चटनी खिलाया। उसने सासू मां को जबरन जिद करके सूट सलवार दिलाया। जब घर लौटे तो वो अपनी सासू‌ मां के चेहरे पर एक चमक देख रही थी। उसे लग रहा था कि रिश्ते निभाना इतना भी कठिन नहीं है बस थोड़ा सा प्यार चाहिए और कुछ नहीं।


शाम को जब सासू मां ससुर जी को सूट सलवार पहन कर दिखाने लगीं तो वो मुस्कराते हुए बोले।

अरे बेटा! अब बुढ़ापे में इस बुढ़िया को क्या ‌फैशन परेड में भेजोगी ??? 

पापा बूढ़े तो सभी रिश्तेदार हों जाएंगे मम्मी को देख कर।

सब ठहाके मार कर हंस पड़े।

सुनिधि किसी से कुछ नहीं कह रही थी पर विचारों का तूफान उसके भीतर उमड़ रहा था।

अपनी मॉम से बातचीत तो उसने लगभग बंद कर दी थी।

बरखा कभी फोन करती तो वह बस शार्ट में जवाब देती।

बरखा अपना दर्द किससे कहती वह चुपचाप अकेले में रो कर दिल हल्का कर लेती थी।

 उसने बहुत जगह से अपने पापा के बारे में जानकारी हासिल कर ली थी।

एक दिन उसने बरखा को फोन किया। मॉम मैं पापा से मिलने लखनऊ जा रही हूं। वो यूएस से लौट आए हैं।

बरखा चुपचाप थी।

कुछ कहोगी नहीं??

यहां आ सकती हो?? कुछ देना है तुम्हें

जब वो आई तो बरखा ने उसे एक पैकेट पकड़ाया।

ये स्वेटर तुम्हारी दादी ने बुना था तुम्हारे लिए??

इसे ले जाओ।

और कुछ??

नहीं कुछ नहीं । क्योंकि और कुछ नहीं है मेरे पास अब कुछ नहीं है। उसकी उदास आंखों में आंसू आ गए।


उसने घर आ कर पैकेट खोला बहुत खूबसूरत हल्के पीले रंग का स्वेटर था।वो गालों से लगा कर उसकी खूशबू उसकी छुअन महसूस करने लगी। अपने विचारों में डूब कर सोचने लगी कि काश! वक्त फिर से पीछे चला जाता वो इतनी छोटी हो जाती कि इस स्वेटर को पहन पाती।

अगले दिन उसने डाइनिंग टेबल पर अपने सास ससुर से बात की। पापा जी मैं अपने पापा से मिलने लखनऊ जाना चाहती हूं। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि उसके मम्मी पापा का तलाक हो चुका है। मैं सोच रही हूं कि पापा और दादी के पास एक हफ्ते के लिए चली जाऊं।

तो जाओ बेटा कोई परेशानी नहीं है मिल आओ। उसकी सासू मां ने कहा।

विपुल बहू के साथ तुम जाओ।

वो सुनिधि की तरफ देख रहा था। सुनिधि खामोश थी।

एकांत पाते ही सुनिधि ने उससे कहा,” विपुल मैं पापा से मिलने अकेले जाना चाहती हूं।” कुछ वक्त पापा और दादी मां के साथ अकेले गुजारना चाहती हूं। आप बुरा तो नहीं मानेंगे न। सब कुछ ठीक रहा तो वापसी में मैं आपको बुला लूंगी।

ठीक है तुम टैंशन मत‌ लो मैं मम्मी पापा से कह दूंगा कि मुझे ऑफिस से परमीशन नहीं मिल रही है एक अर्जेंट मीटिंग होनी है।

थैंक्यू सो मच मेरी बात समझने के लिए सुनिधि मुस्कराते हुए बोली। “ऐसे ही खुश रहा करो माई लव”

कल मार्निंग की फ्लाइट बुक कर देता हूं।

अगले दिन वह लखनऊ पहुंच गई। रास्ते में सोच रही थी अगर पापा ने उससे बात नहीं की या दादी उसे भूल ग‌ई होंगी तो…….

टैक्सी करके पापा के घर पहुंच ग‌ई।  बहुत खूबसूरत कोठी थी। आम का बहुत बड़ा बाग था। कोठी का नाम आश्रय था।

मेन गेट पर पहुंच कर उसने दरबान को कहा कि मुझे अरिंदम मजूमदार से मिलना हैं।

साहब घर पर किसी से नहीं मिलते।आप ऑफिस में जा कर मिलिए।

वो उससे बहस कर ही रही थी। आप फोन करके पूछिए कि क्या मैं उनसे घर पर मिल सकती हूं।

जब वो नहीं मानी तो उसने फोन पर अंदर कुछ बात की।  अंदर से एक वृद्ध महिला आईं बहुत खूबसूरत, खादी सिल्क की साड़ी पहने हुए,सुनहरे फ्रेम का चश्मा उनके गरिमामय व्यक्तित्व में चार चांद लगा रहा था। लगता है ये दादी मां हैं।

कौन है महेंद्र??? ये मैडम घर पर साहब से मिलना

चाहती हैं।

जैसे ही उन्होंने उसे देखा वो अचंभित हो गईं।

दादी मां, सुनिधि की आंखों में आंसू भर आए। दादी को तो जैसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।

वो तो बस हैरत से देख रही थी।

बिट्टू अचानक से उनके मुंह से निकला। फिर तो आंखें जैसे बरस पड़ीं।


महेंद्र सामान अंदर ले आओ।

दरबान मुंह खोले उन दोनों को देख रहा था।

मेरी बिट्टू! लाड़ से उन्होंने उसके हाथ पकड़ कर उसका माथा चूम लिया।

चल अंदर चल।

बरसों बाद आज दादी और पापा याद आ ग‌ए।

पता है मैंने अरू को कह रखा था कि अपनी बिट्टू को देखे बिना मैं ये दुनिया नहीं छोडूंगी।

दादी मां आप दो सौ साल जिओगे।‌

दोनो दादी पोती ने एक दूसरे के आंसू पोंछ दिए।

उन्होंने फटाफट से फोन उठा कर अरिंदम को मिला दिया।

अरू जल्दी से घर आ‌ कर देख तुझसे मिलने कौन आया है???

मां ऐसा कौन है जिसने तुम्हारी आवाज में इतनी खुशी भर दी। जल्दी से आजा बस सवाल मत कर।

चलो मैं आता हूं।

बिट्टू मेरी बच्ची दादी उसे बहुत ध्यान से देख देख कर इतरा रही थी।

अच्छा बता क्या खाएगी?? कितनी दुबली हो गई। इत्ता सा मुंह निकल आया है।

दादी मां फिश करी बनाओ न सरसों की ग्रेवी वाली।

मॉम कहती हैं कि तुम्हारी दादी मां जैसी फिश करी पूरी दुनिया में कोई और नहीं बना सकता। दादी जैसे अपसैट हो गई। उन्होंने बात बदल दी।

सुनिधि समझ‌ रही थी कि दादी मां को उसकी मॉम का जिक्र भी पसंद नहीं है।

अरिंदम जैसे ही घर पहुंचे। दादी मां ने सुनिधि को अपने पीछे छिपा लिया।

ऐसा कौन है मां??? जिसके लिए मुझे ऐसे जबरदस्ती बुला लिया।

मैं नहीं बताऊंगी तू खुद देख। अरिंदम की‌ नजर उस पर पड़ते ही वो चौंक गए।

देख हमारी बिट्टू कितनी बड़ी हो गई है??? वो अवाक थे कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे थोड़ी देर के लिए सब कुछ ब्लैंक हो गया था।

वो झट से उनके गले लग कर जोर से रो पड़ी।

पापा! उन्होंने उसे अपनी बाहों में भर लिया उसके सिर पर हाथ फेरने लगे। दोनों बाप-बेटी जार जार रो रहे थे।

पापा आंसू मेरे लिए रहने दीजिए। आप रोते हुए बिल्कुल अच्छे नहीं लग रहे हैं।

“पगली” उन्होंने उसका माथा चूम लिया।‌

बरसों से जमा दुःख है  इसे बह जाने दो। उसकी दादी उसकी पीठ को सहला रही थी।

दादी ने उसके लिए फिश करी बनाई।

खाने के लिए बैठे तो सुनिधि जैसे बच्ची बन गई। चलो अपने हाथ से खिलाओ। दादी मां उसे खिलाते हुए अपने आंसू नहीं रोक पाई बोलने लगी पता है तुम्हारे दादा जी कहते थे कि बिट्टू हर रोज सपने में आती है मेरे हाथ से खाना खाने।

मुंह खोल कर कहती है दादू देखो! आज मैंने छिपकली खा ली मेरे मुंह में छिपकली की पूंछ है। मैं आपको खिला दूंगी।

खाना खाने के बाद वो जमीन पर पसर कर पर बैठ गई।  अरिंदम सोफे पर बैठ ग‌ए थे।वो अपने मोबाइल पर फोटो दिखाने लगी। पापा देखिए मेरे स्कूल का फेस्ट आपने मुझे ट्राफी दी थी।

ये आपका दामाद ये मेरे सास ससुर हैं। मेरी फैमली बहुत अच्छी है। मम्मी पापा मुझसे बहुत प्यार करते हैं। वो बताते हुए पापा का चेहरा देख रही थी उनकी आंखों में सूकून नजर आ रहा था।

दादी अपना चश्मा लगा कर फोटो बड़ी कर के देखने लगी। हमारा दामाद तुमसे ज्यादा सुंदर है बिट्टू।

हां मॉम भी यही कहती है कि विपुल बिल्कुल तुम्हारे पापा जैसा है। उसे कभी दुःख मत देना।

उसके पापा ध्यान से सुन रहे थे। पर उन्होंने कुछ नहीं कहा।

चलो आराम करते हैं बिट्टू दादी उसे अपने रूम में लेकर चली गईं।

शाम को दादी जब पूजा करने ग‌ई तो सुनिधि पापा के पास बैठ गई। पापा आपसे एक बात पूछूं,” आप मॉम से बहुत नफरत करते हैं???


कुछ देर चुप रहने के बाद अरिंदम गंभीर आवाज में बोले,

नफरत और मुहब्बत सब कुछ वहीं छोड़ चुका हूं बिट्टू

जहां कोर्ट के बाहर आखिरी मुलाकात हुई थी।

तुम्हारे दादू तुम्हें देखने की इच्छा लिए इस दुनिया से रुखसत हो ग‌ए। मुझे और तुम्हारी दादी को तो उम्मीद ही नहीं थी कि हम तुमसे कभी मिल सकेंगे।

मैं तुमसे मिलने की कोशिश करना चाहता था पर लगता था कि पता नहीं तुम्हें हमारे बारे में क्या बताया गया हो?? तुमने अगर मिलने से मना कर दिया तो??? या फिर तुम्हारी नानी और मां  कुछ नया बखेड़ा खड़ा कर दें??

पता है पापा मैं मॉम वाली गलती अपनी लाइफ में करने वाली थी। पर ऐसा करने से मॉम ने ही मुझे रोका। उन्होंने मुझे सब कुछ बताया। मॉम को अपनी गलती का अहसास तो बहुत पहले हो चुका था। पर वो कहती हैं कि मुझे मेरे किए का भुगतान करना ही होगा।

उसने पलट कर देखा तो उसकी दादी खड़ी थी शायद वो सब कुछ सुन चुकी थीं। पापा खामोश थे।

पापा! सब कुछ खत्म हो जाता है। पर आप जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते।  मैं तो आपकी जिम्मेदारी हूं न मुझसे तो मुंह नहीं मोड़ेंगे  ?? ऐसा कह कर उसने उनके कंधे पर सिर रख दिया।

दादी भी पास आकर बैठ गई थी।

पापा उसके बालों पर हाथ फेरते हुए बोले बुद्धू तुम मेरी जिम्मेदारी नहीं मेरा सब कुछ हो। 

पापा और दादी मां आपको एक बात बतानी है। जो मैंने अभी तक किसी से शेयर नहीं की।

मतलब किसी से भी नहीं।

आप नाना बनने वाले हैं पापा और दादी आप तो और बड़ी हो जाओगी पूरे खानदान में सबसे बड़ी बुढ़िया वो खिल खिला पड़ी।  समझी मेरी बड़ी नानी उसने उनके गाल खींच लिए।

दोनों के चेहरे चमक उठे थे।

दादी मां और पापा कोई जोर-जबरदस्ती नहीं सिर्फ रिक्वेस्ट कर रही हूं।

किसी और के लिए न सही मेरे होने

वाले बच्चे के लिए माफ कर दीजिए मॉम को।

पापा कभी कभी माफी सबसे बड़ा मरहम होता है। इन घावों को अब ठीक होने दें।

पापा ने कस कर उसके दोनों हाथ थाम लिए थे।

उनकी मजबूत पकड़ में उसे अपने सभी रिश्तों की वापसी का अहसास हो रहा था।

©  रचना कंडवाल

समाप्त

वापसी ( रिश्तों की) – भाग 4

वापसी ( रिश्तों की) भाग–4 – रचना कंडवाल

4 thoughts on “वापसी ( रिश्तों की)  आखिरी भाग-5 –  रचना कंडवाल”

  1. A beautiful story. There are tears in my eyes but happy ending of this family story. Congratulations to you for writing such a beautiful story.

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  2. बड़ा ही मार्मिक चित्रण तथा समाज के नई पीढ़ी को संस्कारवान और पारिवारिक पृष्ठभूमि की ओर अग्रसर करना ताकि रिश्ते जिंदा रह सके।

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