विधवा नहीं सधवा – प्रीति सक्सेना

मैं सुधा!! एक नई नवेली दुल्हन  !!

पर मैं न तो शरमा रही हूं न ही लाज से मेरी आंखें बोझिल हो रही हैं, मैं सोच में डूबी हूं…. क्यों डूबी हूं ? क्या वजह है मेरे सोचने की? उसके लिए मुझे दो वर्ष पीछे की स्मृतियों में जाना पड़ेगा और अपने अतीत को बाहर लाना पड़ेगा!!

अजय के साथ मैं खुशी से अपना शादीशुदा जीवन व्यतीत कर रही थी, एक बेटा भी हमारे प्यार की निशानी बनकर हमारे बीच आ चुका था !! फैक्ट्री की मामूली सी नौकरी थी पति की, कुछ मैं सिलाई करके कमा लेती और दाल रोटी खाकर हम खुश रहते!!

कहते हैं ज्यादा खुशी को भी नज़र लग जाती है सच ही होगा …. क्योंकि मेरे घर को भी नज़र लगी और मेरा आबाद घर बरबाद हो गया!!

माहामारी लील गई मेरे सुहाग को…….. मैं अभागी अपने  अजय को आख़िरी बार देख भी न पाई, बेटे के होते हुए भी मुखाग्नि न जाने किसने दी!!

स्तब्ध शून्य सी मैं बैठी रह गई, बीमारी में न कोई मेरे घर आया न किसी ने सांत्वना का हाथ ही मेरे सिर पर रखा!! कोई आता खाना रखकर दरवाज़ा खटखटा कर चला जाता, कोई फ़ोन करके बताता… खाना बाहर रखा है उठा लो!!

ऐसी विपदा की घड़ी में जहां हमदर्दी और दिलासे की सबसे बड़ी जरूरत होती है….. मेरे पास कोई नहीं था, तरस रही थी तड़प रही थी कोई तो आ जाय मेरे पास.. मैं उससे लिपटकर खूब जोर जोर से चीखूं चिल्लाऊं , जी भर के रो लूं  अपना दिल हल्का करूं पर वाह री मेरी फूटी क़िस्मत, कैसे बुरे समय में तूने मुझे इतना बड़ा दुख दिया कि मेरे पास रोने को कोई कंधा ही नहीं!! ससुराल में कोई नहीं, मायके में.. गरीब मां भाई किससे उम्मीद करूं!!

क्या तेरहवीं क्या पूजा…. कुछ नहीं, सिर्फ आंसू थे मेरे पास….. उन्हीं से अजय को आख़िरी श्रद्धांजलि देकर  विदाई दे दी !!

समय निकला, जीवन अपने ढर्रे पर आने लगा सभी का, बेटे को प्राइवेट स्कूल से निकाला, फीस कहां से भरती ? पांच साल का बिट्टू मेरा टुकुर टुकुर अपनी क्लास को देखता रहा, मचलता रहा, मैं अपने आंसुओं को ज़ब्त करती रही !!




स्कूल के टीचर दिनेश सर सामने से निकले…..  बिट्टू को मचलता देखा तो पास आकर बोले 

”  जाने दीजिए उसी की क्लास है वो.” !!

” नहीं सर!! अब वहां नहीं पढ़ेगा मेरा बेटा” !!  

 ” वजह? क्या हुआ “?

सारी बातें बता दी” बताइए सर !! कैसे फीस भर पाऊंगी स्कूल की और बस की? कहते कहते थमे हुए आंसू अपना संयम छोड़कर बह निकले!! 

कुछ देर तक तो दिनेश सर कुछ सोचते रहे फिर बोले…..

” आप शाम को मेरे घर आ सकती हैं प्लीज” !!

” जी आ जाऊंगी”

” मेरी मां भी हैं घर पर आइए, कुछ उपाय ढूंढते हैं ” एक कागज़ पर पता और फ़ोन नंबर लिखकर मुझे दिया और अपनी क्लास लेने चले गए!!

डूबते को तिनके का सहारा सा मिला, कागज़ को ध्यान से पर्स में रखा और घर आ गई!!

शाम ठीक साढ़े पांच बजे दिनेश जी के घर की घंटी बजा दी… दरवाजा एक वृद्धा ने खोला , प्यार से स्वागत किया और बैठाया, तभी अन्दर से दो साल की छोटी सी गुड़िया जैसी बेटी को लेकर दिनेश सर आए…. बिट्टू को देखकर गुडिया उसकी तरफ भागकर गई और तुतलाकर न जानें किस भाषा में बातें करने लगी!!

” मां! ये सुधा जी हैं… मैं इन्हें जानता तो नहीं, पर इनका बेटा हमारे ही स्कूल में पढ़ता है “!!




” सुधा जी!! मैंने आपकी परेशानी का एक हल निकाला है, जिससे बिट्टू का स्कूल और पढ़ाई विधिवत उसी स्कूल से चलती रहेगी!!  मेरी पत्नि , गुड़िया को जन्म देते ही इस संसार को छोड़ गई!!मां से काम होता नहीं, गुड़िया को भी संभालना बहुत मुश्किल हो जाता है, आप बाजू वाले कमरे में शिफ्ट हो जाएं…. मां को और गुड़िया दोनों को सहायता हो जाएगी, बच्चे की फीस मैं देख लूंगा, आपको उसके लिए सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी!! अगर आपको मंजूर हो तो…. कल इतवार है, कल ही आपको यहां शिफ्ट कर देते हैं। “!!

अचानक सारी समस्याओं का समाधान होते देख कुछ समझ नहीं आया, क्या बोलूं….. कुछ कह भी नहीं पाई…. मां ने हाथ थाम लिए   “हां  कह दे बेटा! मुझे सहारा हो जायेगा, पराए लोग कब क्या कर जाएं भरोसा नहीं, इसीलिए किसी को सहायता के लिऐ रखा नहीं, दिनेश तुम्हें स्कूल से पहचानता है और तुम भली भी लगी हमें…. हो सके तो हां कह दो”!!

मेरे पास कोई और रास्ता था नहीं, गरीब मां, गांव में भाई के पास आश्रित थी, उससे क्या सहारा लेती!!

ईश्वर का आदेश और मर्जी जानकर मैंने.. दूसरे दिन किराए का कमरा खाली कर दिया, और दिनेश जी के घर में एक कमरे में अपनी दुनिया समेट ली!! एक टेबल की व्यवस्था कर एक कोने में अपनी छोटी सी रसोई बना ली, दूसरे कोने में सिलाई मशीन रख ली, मांजी ने कहा था, आस पड़ोस के लोगों को कपडे सिलवाने का बोलेंगी!!

अब मेरी , एक नई दिनचर्या की शुरूआत हुई, सुबह दिनेश जी के घर जाकर सबका नाश्ता, दिनेश जी और बिट्टू का टिफिन बना देती, बरतन झाड़ू पोछा के लिए एक महिला आती थी, दोपहर में … मैं सबके लिए खाना बनाकर अपने कमरे में आ जाती, कपड़े मिलने शुरु हो गए तो सिलाई करती रहती!!

बिट्टू दिनेश जी के साथ बाइक में आने जानें लगा था, बस एक मोटा खर्चा भी बचने लगा!!

मेरे आंसू भी अब सूखने लगे थे, जीवन धीमी गति से चलने लगा था!! उधर मांजी और दिनेश भी खुश थे व्यवस्थित रुप से खाना नाश्ता मिलने लगा , गुड़िया को भी सही देखभाल मिलने लगी, बिन मां की बच्ची भी खिल उठी!!

होली जलना थी उस दिन… मां की तबियत ढीली थी…. जरूरी सामान लाना था घर का, मुझे भी सिलाई के धागे और कुछ लेस गोटा लेना था, मां के जोर देने पर मैं…दिनेश जी के साथ मोटर साइकिल पर बाजार चली गई….. सामान लेकर जैसे ही लौटी….. कुछ पड़ोसी धीमे से हंसते हुए बोले….. भाभीजी के साथ शॉपिंग…? मैं तो जैसे जमीन में गड़ गई, दिनेश जी बुरी तरह अपमानित से हो गए….. अचानक मां आईं और बोली.!!

” बहुत अच्छा और सही रिश्ता बना दिया तुम लोगों ने, जो बात हम सबके मन में आई भी नहीं तुम सबने सोच लिया… आभार व्यक्त करती हूं तुम सभी का… अन्दर गई और सिंदूरदान उठा लाई और दिनेश जी से बोली…. ले बेटा भर सुधा की मांग और बना अपनी पत्नि, मेरी बहू और गुड़िया की मां…. मैंने.. डबडबाई आंखों से मां को देखा तो सीने से लगाकर बोली

” मैं जानती हूं न तुम्हारे मन में पाप है न मेरे बेटे ने कभी तुम्हें नज़र उठाकर देखा…. पर जो लोग आज़ तुम पर उंगली उठा रहे हैं कल तो वो जीना दूभर कर देंगे तुम्हारा…… इसलिए , अपने बेटे और उसके भविष्य के लिऐ इस रिश्ते को एक नाम दे दो “!!

दिनेश ने मेरी सूनी मांग सुर्ख लाल सिंदूर से भर दी,  मेरी आंखों से आंसू छलक गए ,  जिसे अधिकार से दिनेश  जी ने अपने हाथ से पोंछ दिए!! होली के ही दिन घर में मां ने शादी करवा दी हमारी!!

अचानक आहट से मैं जैसे तंद्रा से जागी, देखा तो दिनेश थे… दोनों के चेहरे पर खुशी और पूर्णता थी!! आज दो अधूरे पूरे हो गए!!

 हर रिश्ता गलत नहीं होता, दुनिया को एक ही चश्मे से देखना नहीं चाहिए हमें, विपदा में पड़े लोगों का साथ अवश्य दें, यही सबसे बड़ी इन्सानियत होती है!!

#पांचवी_वर्षगांठ

कहानी no 2

प्रीति सक्सेना

इंदौर

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