वैशाली ,माँ पापा ने भी कह दिया हैँ ,बहू को ले जा अपने साथ – मीनाक्षी सिंह 

एक तरफ पापड़ सुख रहे हैं ,दूसरी तरफ दाई ,अभी हाल ही जन्में लल्ला  को घी से मालिश कर रही हैँ ! ससुर जी एेनक् लगाये घर के बाद नीम के पेड़ के नीचे कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे हैँ ! गांव के  आस पास के 7-8 बुजूर्ग पुरूष भी दिनानाथजी (ससुर जी ) को घेरकर बैठे हुए हैँ ! तभी वैशाली ,,घर की बहू चाय बनाकर लायी क्यूंकी सासू माँ छत पर पापड़ सुखा रही है और लल्ला को देख रही हैँ ! वैशाली को देख ससुर जी गेट पर आकर उसके हाथ से चाय लेकर फिर कुरसी पर बैठ गए ! एकलौते बेटे नीरज की शादी दो साल पहले ही तो हुई हैँ ,किस्मत ने साथ दिया ,फौज में भर्ती  हो गया ! फिर तो विवाह होने में कौन सा समय लगता हैँ ,रिश्ते वालों की लाइन लग गयी ! नीरज और घर वालों को पसंद आयी ,सांवली  सूरत ,तीखे नैंन नक्श वाली बिना माँ की लड़की वैशाली ! दिनानाथजी ,बहुत ही सज्जन पुरूष थे,गांव के  प्रतिष्ठित लोगों में उनकी गिनती थी ,एकलौता बेटा शादी भी अच्छे ढंग से करना चाहते थे ! पर वैशाली के पिता दिल के तो अमीर थे पर पैसों की उन पर बहुत तंगी थी ! वो तो विश्वास भी नहीं कर पा रहे थे कि दिनानाथ जी ने अपने एकलौते बेटे के लिए उनकी अभागिन  बेटी को पसंद किया हैँ ! पर कहते हैँ ना किस्मत जहां होती हैँ इंसान वहीं जाता हैँ ! दिनानाथजी ने समाज में दिखावे के लिए वैशाली के पिता को रूपये दिये कि इनसे सब कुछ लेकर अच्छे से ब्याह कर दो ,बस किसी को इस बात की भनक ना लगने पायें ! धूमधाम  से विवाह सम्पन्न  हो गया ,वैशाली ससुराल आ गयी ! नीरज भी अपनी पत्नी की बहुत इज्जत करता था और उनका  आपसी प्रेम एक साल में बेटे के रुप में पल्लवित हुआ ! घर  में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी ! खूब गाने बजाने हुए ,पूरे गांव में चून की दावत दी गयी !




 लल्ला अब पांच माह का हो गया था ! नीरज को नौकरी पर अपनी पत्नी और बेटे की बहुत याद आती जब वो अपने आस पास सभी लोगों को परिवारसहित घुमता हुआ देखता ! वैशाली से कई बार कहाँ उसने ,तुम साथ चलो ना ! माँ पिता जी ने भी  कह रखा हैँ बहू जा सकती हैँ तेरे साथ! पर  वैशाली हर बार यहीं कहती कि तुम्हे पता है जी पापाजी ,सुबह आँख बंद कर आते हैँ और लल्ला को उठा ले ज़ाते हैँ ! उसे देखकर ही आँखें खोलते हैँ ! उसके बिना माँजी  पापाजी अधूरे  हो ज़ायेंगे !लल्ला से ही उनकी सुबह शाम होती हैँ ! मांजी की भी उमर हो गयी हैँ उन पर घर का काम नहीं होगा ! मुझ अभागन को माँ बाप का प्यार मिलने दो ! जिसके लिए जीवनभर तरस  गयी ,पिताजी बाहर रहकर मजदूरी करते और माँ को तो कभी देखा ही नहीं ! हमारी तो पूरी उम्र पड़ी हैँ जी ,अभी मुझे इन्ही के पास रहने दो ! बेचारा नीरज पत्नी के आगे हार जाता !

यह क्या अचानक से बाहर से शोर की आवाज सुनायी दी कि दिनानाथजी गिर गए ! अन्दर से वैशाली बेसन से सने हाथों से ही  दौड़ती हुई आयी ! ऊपर से सासुमां (कमला ) भी लल्ला को गोद  में लिए ,दीवार का सहारा लेते हुए जल्दी जल्दी नीचे उतरने लगी ! 

वैशाली ने देखा – दिनानाथजी जमीन पर बेसुध पड़े थे  ,सब लोग उन्हे उठाकर गाड़ी में लिटाने का प्रयास कर रहे थे ! वैशाली ने अपने आंसूओं को संभाला ! जल्दी से अंदर गयी ,जितने पैसे घर में थे ,लिए ! एटीएम जो नीरज ने उसके लिए बनवाया था!  एक बोतल में दूध ,एक में पानी ,दो चार लल्ला की नेकर ! माँजी का चश्मा ! माँजी और लल्ला को ले वो भी गाड़ी में बैठ गयी ! सब गांव वाले दिलासा  दे रहे ! सही हो जायेंगे ,मास्साब ( दिनानाथजी ) ! ऊपर वाले का भरोसा रखो भाभी जी ,बहू ! वैशाली पूरे रास्ते दिनानाथजी के हाथ पैर मलती रही ! उनके दांत के बीच में ऊंगली फंसाती रही ! कमला जी ने  एक बार कहा नीरज को फ़ोन कर दे बहू ! पर वैशाली ने कहा – मैं हूँ ना मम्मी जी ,वो बॉर्डर पर हैँ ,घबरा ज़ायेंगे पापाजी की तबियत का एकदम से सुनकर ! एक हाथ से कमला जी को पकड़े रही वैशाली ! अस्पताल भी गांव से बहुत दूर था ! बस बंशी वाले का ध्यान कर वैशाली पापाजी जी सलामती की दुआ मांगती रही ! 




गाड़ी अस्पताल पर रुकी ! तुरंत दिनानाथजी को ओटी में पहुँचाया गया क्यूंकी उन्हे हार्टअटैक आया था ! डॉक्टर से वैशाली ने  पूँछा – पापाजी ,ठीक तो हैँ ?? 

डॉक्टर – आपने लाने में थोड़ी देर कर दी ! हम पूरी कोशिश करेंगे पर कोई बड़ा डॉक्टर इस छोटे से कस्बे में नहीं हैँ ! आप लोग इन्हे दिल्ली ले जायें तो ज्यादा बेहतर हैँ ! वैशाली ने इतना सुन तुरंत अपने चाचाजी जो दिल्ली में डॉक्टर थे उन्हे फ़ोन लगाया ! ईश्वर की कृपा से चाचाजी इस समय अम्मा को देखने गांव आयें हुए थे ! वो आधे घंटे में अस्पताल  पहुँच गए ! ऑपेरेशन शुरू हुआ दिनानाथजी का ,ईश्वर की कृपा से वो बच गए ! बस हिदायत दी गयी कि एक महीने तक बिस्तर पर आराम करने देना हैँ इन्हे और खान पान का परहेज भी ! वैशाली ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी ! दिन रात दिनानाथजी की सेवा की ! वो तंदरुस्त हो गए ! नीरज भी वैशाली को अब ले जाने की ज़िद ना करता !

 कुछ सालों में वैशाली के एक बेटी हुई ! कमला जी की तबियत भी दिन पर दिन खराब रहने लगी ! अब उनका सब काम बिस्तर पर ही करना होता ! किसी ने  ऐसी परिस्थिती में साथ नहीं दिया ! वैशाली ही सारे काम करती कमला जी के  ! कमला जी गुस्से में कई बार वैशाली पर गुस्सा भी हो जाती पर वैशाली चू भी ना करती ! 

दिनानाथजी कहते – बहू ,पता नहीं किस जन्म के अच्छे कर्मों का फल हैँ जो तुझ जैसी बहू मिली ! कोई सगी बेटी भी इतना ना करती ज़ितना तूने इस परिवार के लिए किया हैँ ! वैशाली बस इतना कहती – बस ,पापाजी आशिर्वाद दिजिये कि मैं पूरे जीवन आप लोगों की सेवा कर सकूँ ! आप लोगों ने भी तो मुझे अपनी बेटी ही माना ! 

आज दिनानाथजी और कमलाजी इस दुनिया में नहीं हैँ ! वैशाली नीरज के साथ उसकी नौकरी वाली जगह पर आ गयी हैँ ! कभी कभी गांव ज़ाते हैँ ! सास ससुर के आशिर्वाद से वैशाली नीरज के दोनों बच्चें सेना में अधिकारी बन गए हैँ ! विवाह हो गए हैँ उनके  ! वैशाली के अच्छे कर्मों का ही फल हैँ कि उसकी बहू अधिकारी की बहू होने के बाद भी अपने सास ससुर की सेवा गांव में रहकर कर रही हैँ ! 

स्वरचित 

मौलिक अप्रकाशित 

मीनाक्षी सिंह 

आगरा

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