वादा राखी का – बेला पुनीवाला

 डॉली का घर आज सुबह से सजाया जा रहा था, जैसे दिवाली पे घर सजाते है। डॉली के माँ-पापा और डॉली की भाभी, सब लोग आज बहुत ही खुश थे। डॉली ने अपनी माँ को चिढ़ाते हुए कहा, ” वाह, मम्मी क्या बात है, आज रसोई से सुबह से ही बहुत ही अच्छी-अच्छी खुशबु आ रही है। वाह ! रस-मलाई, फ्रूट-सलाड, कचोरियाँ, समोसे, पनीर की सब्जी, छोले-भटूरे, पराठा, पापड़, अचार, पूरी, साथ में पुरण पूरी भी… आज से दो दिन पहले जब मैंने बोला था, कि मुझे समोसे खाने का बड़ा मन कर रहा है, तब तो आपने कहा, कि आज मैं बहुत थक गई हूँ, फ़िर कभी बना लुंँगी और देखो, आज भैया के आने की ख़ुशी में इतने सारे पकवान… बहुत अच्छे… माँ ने इतराते हुए कहा, ” मेरा लाडला बेटा, दो साल बाद घर आ रहा है, तो उसके आने की ख़ुशी क्या तुझे नहीं है ? ” डॉली ने कहा, ” मैं तो मज़ाक कर रही थी, माँ। ” तभी डॉली की भाभी अपने कमरे से तैयार होकर बाहर आती है, उसे देखकर डॉली उसे भी चिढ़ाने लगी, ” अरे वाह, भाभी आज तो आप क़यामत ढा रही है, भैया कहीं आपको देखते ही बेहोश ना हो जाए ? ” भाभी शरमाते हुए कहती है, ” चल हट पगली, हमेशा मुझे छेड़ती रहती है। ” डॉली ने मन ही मन गौर किया, कि आज सच में भाभी के चेहरे पे एक अजीब सी चमक थी। डॉली के पापा सुबह जल्दी ही मंदिर जाके आते है और साथ में घर का ज़रूरी सामान भी लेकर आते है। डॉली भी वैसे आज बहुत खुश थी, क्योंकि आज दो साल बाद भैया घर वापस आ रहे है, तो सब की ख़ुशी दो गुनी तो होगी ना। वह भी राखी के दिन। 

      उस तरफ़ डॉली का बड़ा भाई विजय अपने देश के लिए लड़ रहा था, वहांँ युद्ध में उस वक़्त गोलियांँ दोनों तरफ़ से आमने-सामने लगातार चल रही थी, विजय अपनी जान की परवाह किए बिना वहांँ से बच्चों और औरतों को सेफ जगह पे भी ले जा रहा था, ताकि उन्हें कहीं दुश्मन की गोलियांँ ना लग जाए। 

       दूसरी तरफ़ विजय ने किसी भी तरह आज राखी के दिन घर आने का वादा अपनी बहन, पत्नी और माँ-पापा से किया था। इसलिए घर में सब विजय के विजय होकर लौटने के इंतज़ार में ही थे। डॉली के पापा सुबह से महा मृत्युंजय का जाप कर रहे थे, सब के मन में एक अजीब सी ख़ुशी और डर भी था। इसलिए डॉली सब को खुश रखने की कोशिश में थी और उसे भरोसा था अपने भाई पे और उनके किए वादे पे, कि आज वह ज़रूर आएँगे। डॉली भाभी को बार-बार चिढ़ा रही थी, मम्मी को सत्ता रही थी, मगर अंदर ही अंदर डॉली का खुद का मन भी रो रहा था और अपनी भाई को पुकार रहा था, कि आज तो चाहे कुछ भी हो जाए, आप को आना ही है और अपना वादा निभाना ही है। 



       देखते ही देखते सुबह से शाम और शाम से रात हुई, मगर विजय भैया की आने की कोई खबर नहीं थी। ( ये उस वक़त की बात ही जब मोबाइल नहीं हुआ करते थे।)  रात के तक़रीबन १० बजने वाले थे, घर में किसी ने सुबह से ठीक से खाना भी नहीं खाया था, सब की नज़रें दरवाज़े पे थी, कि कब विजय घर आ जाए। 

       कुछ देर के इंतज़ार के बाद घर के दरवाज़े की घंटी बजती है। डॉली भाग के जाती है और दरवाज़ा खोलती है, दरवाज़ा खोलते ही देखा, तो तीन फौजी अपनी वर्दी में  दरवाज़े के बाहर खड़े थे। मगर उनके साथ विजय भैया ही नहीं थे। डॉली आगे पीछे नज़र करते हुए सिर्फ़ अपने भैया को ही ढूँढ रही थी। उन तीन फौजी को देख़ घर में सब के दिल की धड़कन तेज़ होने लगी। तभी उन में से एक फौजी ने भैया की बैग आगे करते हुए कहा, कि ये विजय की बैग और… इतना सुनते ही, उसी वक़्त पीछे खड़ी विजय की माँ वही रखीं कुर्सी पे जैसे गिर के अपना दिल थाम बैठ जाती है,

विजय की पत्नी जिस खम्भे के पास खड़ी थी, उसी खमभें को उसने अपने दोनों हाथों से ज़ोर से पकड़ लिया, विजय के पापा ने अपने दोनों हाथ जोड़कर आँसू के साथ भगवान् से एक बार और प्रार्थना की, विजय की बहन तो वही पे खड़ी-खड़ी अपनी आँखें बंद कर चकराके गिरने ही वाली थी, कि तभी उन तीनों फौजी के पीछे से विजय ने बाहर निकल कर ज़ोर से आवाज़ लगाई, सरप्राइज…. ! और अपनी बहन को गिरते हुए सँभाल लिया। विजय को अपनी आँखों के सामने देख सब की आंँखें ख़ुशी से भर आई। डॉली तो विजय से छोटी बच्ची की तरह रोके, लिपट कर, नाराज़ होकर, झगड़ पड़ी और कहने लगी, ” ऐसा भी कोई मज़ाक करता है भला, मेरी तो जान ही निकल गई थी, जाओ अब मैं आप को राखी नहीं बाँधूँगी। ” डॉली अपना मुँह फुलाकर पलटकर खड़ी रह गई, विजय ने अपनी बहन डॉली से मज़ाक करते हुए कहा, कि  “अच्चा, तो मैं फ़िर से यहाँ से चला।



” तभी विजय की माँ ने आके ज़ोर से विजय के कान खींचे और कहा, अब तक तेरी शैतानी  करने की आदत नहीं गई, क्यों ? ” विजय अपनी माँ से आशीर्वाद लेकर उसके गले लग जाता है और अपनी माँ को मनाते हुए कहता है, ” अब, माफ़ कर दे माँ, मैं तो बस यूँहीं !

मज़ाक कर रहा था। ” तभी विजय की पत्नी भी रोते हुए आगे आकर विजय से लिपट जाती है, विजय के पापा भगवान् से शुक्रियादा कर रहे थे और उनके मंदिर में विजय के लौट ने की ख़ुशी में फ़िर से दिया करने लगे। विजय ने अपने पापा के पास जाकर उनके पैर छूकर  उनका आशीर्वाद लिया और उनके गले लग गया।पापा ने विजय को ढ़ेर सारा आशीर्वाद दिया और कहा, बस सुबह से तेरे ही आने का इंतज़ार था। विजय ने अपनी बहन की ओर प्यार भरी नज़र से देखते हुए कहा, ” कैसे ना आता भला ? आज के दिन मैंने बहन से राखी का वादा जो किया था, वह भी तो निभाना था। “

     डॉली ने हँस्ते हुए विजय और उनके साथ आए तीनों फौजी दोस्तों को भी उनकी सलामती के लिए राखी बाँधी और मुँह मीठा कराया। भाई ने अपनी बहन को उसकी रक्षा करने का वचन दिया। उसके बाद हँसी मज़ाक करते हुए सब ने साथ मिलकर खाना खाया। इतना सारा अपनी पसंद का खाना देखकर विजय बहुत खुश हो गया, उसकी आँखें भी ख़ुशी से भर आती है और आज उसने सच में दबा के खाना खाया और सब ने रात भर बैठ के बहुत सी बातें की, विजय बिच-बिच में आज युद्ध में क्या-क्या हुआ ये सब भी कहता गया, तब सब के दिल की धड़कन दो पल के लिए फिर से रुक जाती है। 

      तो दोस्तों, आज के दिन मैं सिर्फ अपने भाई के लिए नहीं बल्कि हर बहन के भाई के लिए और हर उस देश के जवान के लिए प्रार्थना करती हूँ, जो अपना सब कुछ छोड़ के देश की सेवा में जिन्होंने अपना सब कुछ समर्पण किया है, कि वे जहाँ भी रहे स्वस्थ और तंदुरस्त रहे, उनको कभी किसी की बुरी नज़र ना लगे वे देश के हर युद्ध में जीत के आए और वे दिन दुगनी, रात चौगुनी तरक्की करे….  

#रक्षा

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!