तुम्हें दादी का भी दिल रखना है – चाँदनी झा

क्या हुआ रिधिमा बेटा?? सोनिया ने काफी देर से उदास रिधिमा से पूछा। कुछ नहीं मम्मा, जाने दो। कोई तो बात मेरी बेटी को परेशान कर रही है? मम्मा वो..वो,,,वो। क्या बात है बताओ? आपने मुझसे कभी नहीं कहा कि मेंसुरेशन होने के बाद? तुम्हें अचार नहीं छूना है, रसोईघर में नहीं जाना है। पुरुषों के बीच नहीं बैठना है। पेड़-पौधे नहीं छूना है। भागदौड़ नहीं करनी है। बस आपने तो बताया कि साफ सफाई रखनी है। और यह हमारे शरीर की नेचुरल प्रक्रिया है। जो हमारे अस्तित्व का एहसास कराती है। यह सिर्फ स्त्रियों में होता है। जो उसे मां बनने के लिए तैयार करती है। यह हमारी शारीरिक प्रक्रिया है, इससे डरना, घबराना या छुपाने की कोई जरूरत नहीं है।

हां तो सही तो बताया मैंने। बेटा आपने भी जीव विज्ञान में पढ़ा ही होगा। लेकिन, लेकिन! कल मैं पापा के साथ दादी से मिलने गई थी। तो दादी से मैंने बताया, कि आज मेरा मेंस आया हुआ है। तो दादी, तो दादी ने बैठा लिया और मुझे कई सारी हिदायतें दे डाली। मुझे पापा के साथ नहीं आना चाहिए था। घर में आराम करना चाहिए था। खुले बाल नहीं रखने चाहिए थे। काजल नही लगाना था।

मुझे जोर से हँसना नहीं चाहिए, बस कुछ दिन घरों में रहकर, बाल धोकर ही बाहर निकलना है।

मुझे दादी ने अपनी रसोई में भी नहीं जाने दिया। पूजा घर तो दूर की बात है, कई बर्तनों को नहीं छूने दिया। पापा के साथ खाने नहीं दिया। कहा, तुम्हारी मम्मी ने कुछ नहीं बताया??

मां यह ऐसा क्यों? और दादी ने बताया कि, यह समाज के लिए, संस्कार के लिए, परिवार के लिए जरूरी होता है। हमें मासिक धर्म में यह सब परहेज करना ही चाहिए। तभी हम स्वस्थ, और स्वच्छ रहते हैं। दादी ने तो यहां तक कहा की…. तुम्हारा बिछावन भी अलग होना चाहिए। और खाने पीने की भी कई हिदायतें दे डाली। मम्मा मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप सही हो? या दादी सही है?  मुझे दादी के बात से गुस्सा आ रहा था। मुझे अछूत कह रही थी दादी। मैं अछूत हूँ क्या?? आँखो में आँसू आ गए रिधिमा के।


सोनिया अपनी बढ़ती बेटी के उलझे हुए सवालों के, उधेड़बुन को समझ रही थी। उसने अपनी बेटी को चूमते हुए कहा, बेटा मैं भी सही हूं, और आपकी दादी भी सही है। यह कैसे हो सकता है मां? बेटा दादी ने जो सुना है, सीखा है, समझा है वह तो आपको बतायेंगी ही। और मैं जो पढ़ रही हूं, जान रही हूं, देख रही हूं, वह तो मैं आपको बताऊंगी। तो मुझे क्या करना चाहिए? मैं समझ नहीं पा रही हूं।और मुझे यह दुविधा उलझा रही है मां। जबकि दादी की भी बातें सही है? और आप जानती थी, तो मुझे क्यों नहीं बताया था? क्योंकि, बेटा अब आप इतनी समझदार हो गई हैं, कि जो उचित है, जो सही है, आप वही करेंगी। आपके रसोई घर जाने से, आपके अचार छूने से कोई भी परेशानी नहीं होने वाली है। आप खुल कर मुस्कुराएं, जोर-जयर से हँसे, हाँ बाल धोना कोई गलत बात नहीं है।

लेकिन कई परहेज, और शर्म-झिझक यह पुरानी बातें हैं, पहले की मान्यता है। मुझे तो लगता है बेटा पहले स्त्रियों का समाज में जो अस्तित्व था। उन्हें पुरुषों से हमेशा पीछे रखा जाता था। उनके लिए आराम का कोई समय नहीं होता था। उनकी परेशानियों को कोई परेशानी नहीं समझ समझा जाता था। इस कारण से उन्हें इन मासिक धर्म के 5 दिन आराम करने का समय मिल जाता था। साथ ही जब आराम करेंगे तो, रसोईघर, आचार, या बागवानी जाने की बात ही नहीं है। उन्हें एकांत में आराम करने दिया जाता होगा। जहां उनके पास कोई आता-जाता न हो। ताकि वह आराम महसूस कर सकें।

और धीरे-धीरे यह सामाजिक मान्यता बन गई। लेकिन आज के आधुनिक और वैज्ञानिक युग में, स्त्रियां किसी भी मामले में पुरुषों से पीछे नहीं है। तो फिर स्त्रियों के अस्तित्व पर, हमें खुल कर बात करनी ही चाहिए समाज में। और मासिक धर्म के बाद, हमें जिस काम में परेशानी नहीं हो उस काम  को नहीं छोड़ना चाहिए। मासिक धर्म के बाद हमारे शारीरिक परिवर्तन और बदलाव को समझना चाहिए। और अपनी बढ़ती बेटियों को इसके लिए तैयार करना चाहिए। उसमें जो चिड़चिड़ापन और पोषण की कमी होती है। उसे पूरा करने के लिए आयरन हरी सब्जियां और उसे खुला वातावरण देना चाहिए। ताकि वह अपने बदलाव को स्वस्थ माहौल में स्वीकार कर सके। और हमारी बच्चियां स्वस्थ रहकर, स्वस्थ भविष्य का निर्माण कर सकें। मैंने सारी बातों से आपको अवगत कराया ही है, मेरी बच्ची।

लेकिन बेटा दादी जो अपने पूर्वजों से सुनती आ रही है। जो उन्होंने किया है, वह तो अपने बच्चे को बतायेंगी ही। लेकिन आप तो समझदार हो, दादी का भी दिल रखना है आपको। ताकि उन्हें भी खुशी मिले कि, मैं अपने बच्चे को अपने संस्कार दे पा रही हूं। आपको उन्हें कहना है, ठीक है दादी। लेकिन मेरा बच्चा जो उचित है, अब आपको वही करना है। इसमें मन छोटा करने या, मुरझाने की कोई बात नहीं है। हम अचानक से चली आ रही, प्रथा और मान्यताओं को तुरंत नहीं बदल सकते हैं। हां उस पर बेहतर कर, अपनी समीक्षा या अपना विचार रख सकते हैं। आप अपनी बच्ची को इससे होने वाली परेशानी या, इसकी हकीकत बतायेंगी। जो आप महसूस करती हैं, तो मम्मा मैं अछूत नहीं हूं ना? नहीं मेरी बच्ची, तुम अछूत नहीं हो। तुम तो पूर्ण नारी बनने के लिए तैयार हो। और हर महीने तुम आने वाले इस समस्या को हंसते खेलते सह लेती हो। यही तो एक शक्तिशाली नारी का उदाहरण है। रिधिमा की परेशानी दूर हो गई, और सोनिया भी खुश थी, कि मेरी बेटी जिम्मेदार, और समझदार हो रही है।

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