तिरस्कार कब तक – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

दुर्गा प्रसाद शहर के जाने-माने वकील थे। उनकी एकलौती बहन कमला की शादी एक बड़े पद पर आसीन व्यक्ति रमाकांत जी के साथ  बड़ी धूमधाम से हुई थी

।बहन की शादी में देर हो जाने की वजह से उनकी उम्र ज्यादा हो गई थी। जिसकी वजह से रमाकांत जो विधुर थे उनके साथ विवाह हुआ था उनकी पहली पत्नी का देहांत हो चुका था  कमला जी दूसरी पत्नी थी। पहली पत्नी से दो लड़के थे, रमाकांत जी को। कमला जी इतनी ज्यादा सीधी-सादी थीं कि उनकी गिनती बुद्धु में हो जाती थी। कहते हैं ना मन के सच्चे लोग छल कपट से दूर ऐसी थीं कमला जी।

परिवार में खुशियां आईं थीं एक बेटी का जन्म हुआ था।

कुछ महीनों के बाद भांजी को देखने जब दुर्गा प्रसाद जी पहुंचे तो हैरान रह गए बहन की स्थिति को देखकर। रसोई घर एक महिला जो सूती साड़ी पहने हैं और साड़ी भी एक बालिश्त ऊपर चढ़ी की पूरी नीचे तक भी नहीं है। नौकरानी की तरह काम किए जा रही है। उन्होंने कमला की सास से कहा कि “ये कौन है? “

उनको दूसरे कमरे ले जातीं हुईं सास  बोली कि,” मेरे तो भाग्य ही फूट गए जो आपकी बहन को बहू बनाकर लाई। कुछ तौर – तरीका ही नहीं है उसके अंदर।”

दुर्गा प्रसाद जी के होश उड़ गए वो बोले कि,” क्या बात कर रहीं हैं आप वो तो इतनी सीधी – साधी है कि किसी को जबाब भी नहीं देना आता और रही बात काम की तो घर में तो सारा काम मां के साथ करती थी।”

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थोड़ी देर में जब कमला आई तो दुर्गा प्रसाद जी उसकी हालत देखकर पूरी तरह से टूट गए कि ये क्या कर दिया उन्होंने अपनी बहन के साथ।किस घर में शादी कर दिया

एक तो दो बच्चों का बाप ऊपर से कोई कद्र नहीं इसे औरतों की। कमला गंदी सी साड़ी में अपने आपको लपेट कर अपनी बाहों को छिपाने की कोशिश कर रही थी, तभी भाई की नजर बहन के हाथों पर पड़ी जो साफ – साफ लग रहा था कि किसी ने किसी चीज से जलाया हो।

दुर्गा प्रसाद जी ने हाल पूछा तो विलख कर रो पड़ी कमला कि मां जी ने गलती होने पर चुल्हे की लकडी़ से जलाया है।यहां तो कोई नहीं था जिससे अपना दुख बांटतीं।साफ – साफ पता चल रहा था कि जमाई बाबू को भी कोई फ़िक्र नहीं थी पत्नी की वहां सिर्फ कमला के सास की चलती थी।

दुर्गा प्रसाद जी ने कमला को कहा कि,” अपने सामान बांधों अब मैं तुमको यहां एक पल भी नहीं रहनें दूंगा।”

“भइया गुड़िया के पापा को आ जाने दीजिए ” कमला जी बोली।

मेरी शाम की गाड़ी है और चलो।अब रमाकांत को भी इस बात का जबाब देना होगा कि उसने तुम्हारा क्यों नहीं ख्याल रखा” दुर्गा प्रसाद जी अब एक मिनट भी उस घर में रुकना नहीं चाहते थे। उन्होंने बहन के घर का पानी भी नहीं पीआ।

सास को कमला जब बताने गई कि वो मायके जा रही हैं तो बिफर पड़ी कि “तुमने अपने ससुराल की चुगली की अपने भाई से?”तेज गति आईं और दुर्गा प्रसाद जी पर भड़क गई।

दुर्गा प्रसाद जी ने कहा कि,” मैं अपनी बहन को यहां नहीं छोड़ सकता और जब रमाकांत आए तो बोलिएगा की मेरे घर आकर बात करे।

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कमला की सास ने कमला का सारा सामान छीन लिया यहां तक की छोटी सी गुड़िया के पांव के चप्पल तक उतार लिया।

दुर्गा प्रसाद जी अब गुस्से से आग-बबूला हो गए थे बोले “इतना तिरस्कार किया है आपने मेरी बहन का। ‘तिरस्कार कब तक ‘ मैं आप सभी को बर्बाद कर दूंगा।”अब तो आपको भी इसकी सजा मिलेगी” कहकर उसी हालत में बहन और भांजी गुड़िया को लेकर स्टेशन आए।पास के बाजार से दोनों के लिए ढंग के कपड़े खरीदे और भरपेट भोजन कराया। कमला को देख कर लग रहा था कि ना जाने कब से भूखी-प्यासी है।

कमला ” तुम्हें खाना मिलता था?”

” भइया जब दो बोरा गेहूं ऊपर चढ़ा देती या घर का पूरा काम खत्म करती तब अम्मा दो रोटी,दाल और आचार देती थी, कभी कभी सब्जी भी देती थी क्योंकि सब्जी कम पड़ जाती थी ना। हमें अंदाज ही नहीं था इतने बड़े परिवार में कितना खाना बनाना है। मायके में तो तीन – चार लोग ही हैं ना।”

मायके पहुंची तो दस दिन बाद एक खत आया कमला के नाम की चुपचाप वापस आ जाओ, नहीं तो उम्र भर मायके में ही सड़ना। रमाकांत का खत था जिसे लेकर भाई के पास गईं कमला कि भइया वो हमें हमेशा के लिए छोड़ देंगे।

दुर्गा प्रसाद जी को लगा जिस इंसान को अपनी पत्नी और बेटी की इतनी भी परवाह नहीं की वो मुझसे कुछ बात करता,उस आदमी के पास अपनी बहन को भेजने का मतलब उसकी जिंदगी तबाह करना होगा।

उन्होंने कमला को बुलाया और कहा कि,” देखो बहन अगर तुम वहां जाना चाहतीं हो तो अच्छी तरह से सोच समझ लो क्योंकि अभी तो मैं तुम्हें उस नर्क से निकाल कर लाया हूं अगली बार मैं कुछ नहीं करूंगा।”

कमला जी भी बहुत घबराई हुई थी सास और पति के व्यवहार से , उन्होंने भी मना कर दिया की वो नहीं जाना चाहतीं हैं।

कई वर्षों के बाद कमला के पति एक बड़ी बीमारी से ग्रस्त हो गए और उन्होंने अपने अंतिम समय में अपनी बेटी से मिलने की इच्छा जाहिर की तब बेटी अपने पिता से पहली बार मिली।जब वो घर से निकली थी नासमझ थी। रमाकांत हांथ जोड़ कर माफी मांगी की मैंने तुम लोगों के साथ बहुत गलत किया था मां की बातों में आकर।हो सके तो अपने लाचार बाप को माफ कर देना बेटी क्यों तभी मैं चैन से मर सकूंगा।

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गुड़िया को पिता से बिल्कुल लगाव नहीं था। उसने कहा पापा आप मेरे से ज्यादा मेरी मां के गुनहगार हैं। मैंने उनको अक्सर रातों में सिसकते देखा है और शायद इसी लिए आपको भगवान ने ये सजा दी है। मैं तो आना भी नहीं चाहती थी पर मां ने ही जिद्द किया कि मैं आपसे मिलूं।

आप सबने मिलकर मेरी मां का जितना तिरस्कार किया है उसके लिए मैं आप सभी को कभी भी माफ नहीं करूंगी।

गुड़िया अस्पताल से निकल आई। कुछ दिनों बाद खबर आई कि रमाकांत जी नहीं रहे उनका देहांत हो गया था लेकिन अपने परिवार के लिए तो वो कबका मर चुके थे।

गुड़िया भी बड़ी वकील बन गई थी और अपनी मां को अपने साथ ही रखती थी। छोटी – बड़ी हर चीज का ख्याल रखती की मां को किसी तरह की तकलीफ़ ना होने पाए।

मन के घाव पर मरहम तो लगा नहीं सकते वो तो जब तक सांसें चलेंगी वैसे ही रहेगा लेकिन प्यार और देखभाल से अच्छा जीवन जरुर व्यतीत किया जा सकता है। वक्त के साथ-साथ सभी अपने जीवन में आगे बढ़ चुके थे क्योंकि वक्त ऐसा मरहम है कि धीरे-धीरे घाव को भर ही देता है। कमला जी सम्मान के साथ अपने घर में बेटी के साथ वक्त गुजार रहीं थीं।

                               प्रतिमा श्रीवास्तव

                               नोएडा यूपी

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