तिरस्कार कब तक – भारती यादव ‘मेधा’ : Moral Stories in Hindi

फूल मालाओं से लदी हुई  रागिनी को आज लड्डुओं से तौला जा रहा था, उसकी तारीफों के पुल बांधे जा रहे थे, उसके साथ फोटो खिंचवाने के लिए लोगों में धक्का मुक्की तक हो रही थी और रागिनी के भीगे हुए आँखों के कोर,शांत भाव से यह सब देख  रहे थे और मन कह रहा था देख रागिनी,यही वो गलियां हैं और यही वो लोग हैं जहाँ कुछ समय पहले तक तुम्हारा वजूद तिरस्कार का पात्र था और अब इस समय वही गलियां और लोग तुम्हारी उपस्थिति से सम्मानित महसूस कर रहे हैं । 

                मोहल्ले में अपने चारों ओर जमा लोगों का हुजूम देखकर उसे वो दिन भी याद आने लगे जब इन्हीं गलियों से गुजरने पर लोगों के चुभने वाले ताने उसके दिल को छलनी कर देते थे , कई बार तो उसके सामने खड़े होकर ही उसे खरी खोटी सुना दी जाती थी। इज्जत करना तो दूर की बात कोई सीधे मुँह बात भी नहीं करना चाहता था । उसका कुसूर केवल इतना कि वह परित्यक्ता थी । शराबी और जुआरी पति की उपेक्षा और तिरस्कार ने बिना किसी गलती के ही उसे समाज के लिए भी तिरस्कृत बना दिया था।               

                           रागिनी की माँ सिलाई करके रागिनी और उसके छोटे भाई का पालन पोषण कर रही थी । गंभीर बीमारी के कारण  पिता का साया बचपन में ही रागिनी के सर से  उठ गया था । अभावों के बावजूद दोनों भाई बहन सहित माँ का जीवन खुशी से बीत रहा था ।  सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले दोनों भाई बहन पढ़ाई में अच्छे थे । रागिनी की पढ़ाई के प्रति लगन देखकर हेड मास्टर साहब ने मैट्रिक पास होने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए जोर दिया, रागिनी भी यही चाहती थी ताकि पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो सके और अपनी माँ और भाई का सहारा बन सके ।

परंतु इसी बीच रघु का रिश्ता रागिनी के लिए  पड़ोस में रहने वाली कमली चाची  लेकर आई। सरकारी नौकरी वाला और इकलौता संतान, घर में केवल बुजुर्ग मां और खुद का घर भी । रघु कमली चाची  के गांव का रहने वाला था । इस साल जब चाची अपने गाँव गयी थी तभी रघु और उसकी माँ से मुलाकात हुई थी और  उन्होंने रघु के लिए लड़की बताने की बात कमली चाची से कही थी । रागिनी के लिए रघु अच्छा रहेगा यही सोच कर उन्होंने रागिनी की माँ से शादी की बात छेड़ी ।

गोरे रंग पर न इतना गुमान कर 

अंधा क्या चाहे, दो आँखें। रागिनी की माँ की मन माँगी मुराद पूरी हो गयी । रघु की सरकारी नौकरी देखकर रागिनी की माँ ने मैट्रिक की परीक्षा देते ही उसकी शादी करा दी ये सोच कर कि छोटा परिवार है और नौकरी वाला लड़का है, बेटी सुख से रहेगी परंतु रागिनी के नसीब में कुछ और ही लिखा था । 

बिना ताम झाम के सादे समारोह में शादी करके रघु सबकी नज़रों में महान बन चुका था । उसकी असलियत तो रागिनी के उसके घर पहुँचने पर सामने आई । रघु आये दिन  शराब पीकर रागिनी से मारपीट करता, मायके की इज्जत बचाने और अपने संस्कारों के कारण रागिनी मारपीट सह कर भी ससुराल नहीं छोड़ना चाहती थी , एक दिन सब ठीक हो जायेगा इसी उम्मीद से रागिनी पति के अत्याचार सहती जा रही थी । ससुराल में बूढ़ी सास ही थी बाकी अन्य किसी रिश्तेदार को कभी नहीं देखा था रागिनी ने ।

बुजुर्ग सास चाह कर भी रागिनी का दुःख और अत्याचार कम करने का उपाय नहीं कर पा रही थी । अपने बेटे की करतूतें वो जानती थी । पहले तो रघु माँ का थोड़ा बहुत लिहाज कर के रागिनी पर खुले आम अत्याचार नहीं करता था परंतु लगातार बीमारी के कारण जब माँ नहीं रही तो रघु पूरी तरह स्वच्छंद हो गया और रागिनी की जिंदगी नर्क बन गयी । शराब की लत तक तो रागिनी की सहनशीलता काम करती रही परंतु पति की चरित्र हीनता असहनीय थी ।

विरोध करने पर मार पिटाई, यही रोज का क्रम बन गया । एक दिन तो रघु ने हद ही कर दी खुद नशे में धुत्त देर रात घर लौटा, अधिक शराब पीने के कारण लगातार उल्टियां करने लगा, घबराई रागिनी पड़ोस में रहने वाले राजन और जया के घर दौड़ी। जया उस वक्त मायके गयी हुई थी, राजन दौड़ कर रघु के घर आया, उसे हॉस्पिटल लेकर गया,  उपचार उपरांत डॉ ने रघु को घर ले जाने कहा,राजन उसे घर ले आया उस समय आधी रात हो चुकी थी । 

नशे और नींद में रघु अपने होश में नहीं था । रघु को घर छोड़ कर राजन अपने घर चला गया । सुबह  नींद खुलने पर रागिनी द्वारा रात वाली घटना का जिक्र करते हुए राजन का नाम लेना रागिनी के लिए जीवन भर का नासूर बन गया और गिरी हुई सोच के चरित्रहीन पति ने रागिनी पर ही चारित्रिक लांछन लगा कर उसे छोड़ दिया  । 

जैसी करनी वैसी भरनी

                   चारित्रिक लांछन  के कारण पति द्वारा छोड़ी गयी परित्यकता का जीवन दुनिया वाले दूभर कर ही देते हैं । कुछ यही हाल रागिनी का हुआ बिना उसकी बात सुने रघु की झूठी बातों को सबने सच माना और बिना किसी दोष के ही रागिनी को दोषी ठहरा दिया । कई बार लोगों के ताने सुन-सुनकर उसका मन बुझने लगता था, लेकिन माँ हमेशा कहती, “बेटी, तिरस्कार तब तक सहो जब तक तुम्हारे सपनों के पर मज़बूत न हो जाएँ। फिर कोई तुम्हें रोक नहीं पाएगा।”

माँ के दिये हौसले और खुद पर विश्वास कर उसने ठान लिया कि वह तिरस्कृत जीवन नहीं जियेगी बल्कि अपने वजूद को एक नई पहचान देगी आखिर वह तिरस्कार कब तक सहेगी?

और मायके में माँ और छोटे भाई  के साथ रहते हुए उसने आगे की पढाई की। उसने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ ही यूपीएससी का भी पर्चा दिया । रागिनी मन ही मन सोचती थी कि

 यह सौ फीसदी सच है कोई तभी तक तिरस्कार कर सकता है जब तक उसका प्रतिवाद ना किया जाए ,जब तक हम चुप रहें, जब तक हम हार मानें लेकिन अगर हम डटे रहें, तो वही तिरस्कार एक दिन सम्मान में बदल जाता है और रागिनी के मन की यह बात आज सच होती हुई दिख रही है क्योंकि यूपीएससी परीक्षा में देश भर में सेकंड रैंक में आकर उसने अपने तिरस्कृत वजूद को सम्मानित पहचान में परिवर्तित कर लिया था ।   

             रागिनी के साहस ,दृढ़ संकल्प ,मेहनत और लगन ने उसे तिरस्कृत परित्यक्ता से अफसर बिटिया के रूप में आज समाज में स्थापित कर दिया था।  

 

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#तिरस्कार कब तक 

भारती यादव ‘मेधा’

रायपुर, छत्तीसगढ़

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