जैसी करनी वैसी भरनी

धर्मपुर नाम का एक गांव था. लेकिन उस गांव में रहता भोलाराम अपने धर्म से चूक गया था. भोलाराम की एक अकेली मां थी जो अपने पति के मृत्यु के बाद भोलाराम को अकेले पाल कर, और खेत खलिहान का सारा कारोबार संभाल कर सारी संपत्ति जमा की. और खुद मेहनत करके दिन गुजारा किया. अब भोलाराम बड़ा हो चुका था. और सारा कारोबार भी संभालने लगा था. इसलिए मां गंगादेवी ने अब  भोलू राम की शादी करने की सोची. भोलाराम ने पहले तो शादी से मना किया लेकिन फिर वह शादी के लिए मान जाता है. उसकी मां गंगादेवी अपने बेटे के लिए एक सुंदर सुशील और संस्कारी लड़की ले आती है. दोनों अच्छे से रहते है. गंगादेवी को भी मन में यह होता है,

“चलो अच्छा ही हुआ अब बहू के आने से मैं सारी जिम्मेदारियों से मुक्त हो गई अब बहू और बेटे मिलकर सब संभाल लेंगे!” लेकिन कुछ दिन बीतने के बाद गंगादेवी अपने हिस्से का सारा धन दौलत आसपास के गरीबों में बांट देती है. और यह देखकर घर में आई नई बहू शीतला अपने पति से बोलती है,

“अरे सुनिए जी आपकी मां हमारी सारी संपत्ति धन दौलत आसपास के गरीबों में बांट रही है. यह मुझे ठीक नहीं लग रहा अगर ऐसा ही रहा तो हम तो आपकी मां की वजह से सड़क पर आ जाएंगे!”

“यह क्या कह रही हो तुम? मेरी मां ऐसा नहीं कर सकती! शायद तुम्हारे समझने में कुछ भूल हुई होगी…”

“नहीं नहीं मैं अपनी आंखों से देख कर आ रही हूं!”

“माफ करना लेकिन मैं इस बात को नहीं मान सकता अगर मां संपत्ति दान में दिया करती तो आज हमारे पास कुछ नहीं बचता… लेकिन देखो हमारे पास कितनी धन दौलत है!”

शीतला अपने पति की बात सुन तब तो चुप हो जाती है. लेकिन फिर रोज एक ही चीज अपनी सास को करते हुए देख उससे रहा नहीं जाता और एक दिन वह अपनी सास के पास जाकर उनसे कहती है,

“मां अगर आप ऐसे ही हमारी धन-संपत्ति लोगों में लुटाते रहेंगे तो हम एक दिन सड़क पर आ जाएंगे! क्या आपको आपके बेटे और बहू की कोई चिंता नहीं?”

“बहु तुम ऐसा क्यों कह रही हो? मैं अपने हिस्से की धन-संपत्ति लोगों में बांट रही हूं क्योंकि मेरा अब जीवन में कोई और उद्देश्य बाकी नहीं रह गया है. और मैं अपने हिस्से की धन दौलत रख कर क्या करूंगी?”



माँ जी ऐसा ही है तो आप अपने हिस्से का धन दौलत हमें दे दीजिए लेकिन लोगों में बाटने की क्या जरूरत है?”

“बेटी हमें भगवान ने बहुत दिया है और तुम्हारे हिस्से में जितना है तुम और तुम्हारी अपनी अगली पांच पीढ़ी  आराम से बैठ कर खा सकते हो. लेकिन मैं अपने हिस्से की संपत्ति से जो करना है करूं… तुम्हें उसके लिए कोई दुख नहीं होना चाहिए!”

शीतला बहू अपने सास की बात सुनकर वहां से उस दिन चुपचाप चली जाती है. फिर वह इंतजार करती है कि कब अपनी सास की सारी संपत्ति खत्म हो और वह अपनी सास को सबक सिखाएं. ऐसे ही कुछ महीनों बीत जाते है और बहु के आए एक साल हो जाता है. अब गंगा देवी के पास अपनी कोई संपत्ति नहीं बचती तो वह अपने बेटे के आधार पर रहती है. क्योंकि उसने अपने हिस्से की सारी संपत्ति लोगों में बांट दी थी. और तभी मौका पाकर बहुत शीतला कहती है,

“आपने हिस्से की सारी संपत्ति गरीबों में बांट देना चाहती थी पर यही तो मैं कह रही थी अपने हिस्से की संपत्ति बांट दी अब बेटा आपकी रखवाली क्यों करें!”

गंगा देवी अपनी बहू की बात सुनकर बहू को जवाब देती,

“अरे यह तुम कैसी बात कर रही हो? बचपन से मैंने अपने बेटे को अपने पति की मौत के बाद बहुत मुश्किल से पाला है और पति का बनाया हुआ कारोबार मैंने खुद अकेले संभाला है. तो क्या वह अब अपनी मां के लिए इतना नहीं कर सकता बुढ़ापे में उसका सहारा नहीं बन सकता?”

मां और पत्नी के बीच में बहस होते देख बेटा अंदर से बाहर आता है. और वह दोनों की आपस में बहस ध्यान से सुनता है. फिर पत्नी अपने पति से कहती है,

माँ जी ने पहले खुद अपनी धन दौलत लोगों में लुटा दी और अब वह हम पर बोझ बनने जा रही है… यह मैं कभी नहीं होने दे सकती!”



“देख बेटा तू अपनी पत्नी से कह दे यह संपत्ति तेरी मां ने बड़ी मुश्किल से मेहनत करके बनाई है… तो इसमें जितना हक तेरा और उसका है उतना ही हक मेरा भी है!”

“देखिए जी अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो मैं अपने मायके चली जाऊंगी और फिर वापस लौट के नहीं आऊंगी मैंने आपको बताया नहीं कि मैं मां बनने वाली हूं!”

अब यह बात सुनकर बेटा बेहक जाता है और पत्नी का पक्ष लेते हुए अपनी मां को साफ-साफ कह देता है कि वह जब अपनी संपत्ति लोगों में बांट ही चुकी है. तो उन्हीं लोगों के बीच जाकर रहे जिनको उन्होंने अपनी संपत्ति बांट दी थी… वह अब उन्हें इस घर में नहीं रख सकता क्योंकि अगर उसकी मां इस घर में रही तो पत्नी अपने बच्चे के साथ मायके चली जाएगी और वह अकेला रह जाएगा बेसहारा हो जाएगा!

अपने बेटे की ऐसी कठोर वाणी सुनकर गंगादेवी के आंखों में आंसू आ जाता है. और वह अपनी पोटली लेकर घर से निकल जाती है. रास्ते में उसको एक इंसान मिलता है और उसे कहता है,

“अरे अम्मा जी आपने हम पर बहुत उपकार किया है लेकिन आप इतने सादे कपड़ों में अपनी पोटली लिए कहां जा रही है?”

गंगादेवी आंख में अश्रु लिए उस भले आदमी को अपने बेटे और बहू की करतूत बताते है तो वह भला आदमी गंगादेवी को अपने घर ले आता है. क्योंकि एक समय पर गंगा देवी ने उस भले आदमी की बहुत मदद की थी.

ऐसे ही समय गुजरता है और एक दिन शीतला के पड़ोस में एक नई पड़ोसी रहने आती है. उसका एक दो साल का बेटा होता है और वह अपने बेटे से खूब प्यार करती है, लेकिन उतना ही उसके जिद करने पर डांट भी लगाती है. ऐसे में शीतला का भी एक साल का बेटा होता है वह भी अपने बेटे से खूब प्यार करती है. शीतला अपनी पड़ोसन के साथ घुलमिल जाती है. लेकिन एक दिन जब पड़ोसन अपने बेटे को धमका रही थी तो शीतला बोली,

“यह तुम गलत कर रही हो बहन… अपने इस छोटे से बच्चे को जो चाहिए वह दे दिया करो उसे ऐसे धमका क्यों रही हो?”

“देखो शीतला अगर मैंने इसे आज नहीं धमकाया और अपनी गलत ज़िद पूरी की तो कल जाकर वह बहुत जिद्दी और नासमझ बन जाएगा… और फिर बड़े होकर अपनी प्राथमिकता को भी नहीं समझेगा!”

“अच्छा लेकिन मैं तो अपने बच्चे को बहुत प्यार से पालूंगी उसे किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी मैं उसे प्यार से सब समझाऊंगी… और देखना बड़े होकर वह तुम्हारे बेटे से भी ज्यादा समझदार बनेगा तुम्हारा बेटा तुम्हारी धमकियां सुनकर बिगड़ जाएगा!”

“अच्छा हां तुम्हें तो अपने बेटे को समझाना ही चाहिए क्योंकि जैसे तुमने और तुम्हारे पति ने अपनी अकेली मां को घर से बाहर निकाल दिया और खुद की प्राथमिकता को पहले समझा ऐसे ही बहुत बड़ा होकर कहीं तुम दोनों के साथ भी वही वह वार ना करें!”

अपनी पड़ोसन की यह बात सुनकर शीतला के दिमाग में वह पड़ोसन को कही हुई बात का डर बैठ जाता है. और वह तुरंत अपने पति से कहकर अपनी सास को घर ले आती है और अपनी सास से माफी मांगती है.

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