थप्पड़ – संजय सहरिया

नालिनी दीदी और गोपाल जीजाजी के होली में सप्ताह भर के लिए आने की खबर से तो युक्ता के पांव जैसे ज़मीन पर टिक नहीं रहे थे.

माँ अक्सर बीमार रहती थी.इसलिए नालिनी दीदी ने काफी कम उम्र से घर की सारी जिम्मेवारियों को अपने हाथों में ले लिया था.छोटी बहन युक्ता को स्कूल के लिए तैयार करने से लेकर उसकी बाकि जरूरतों का ध्यान  रखना.पिताजी सुबह आठ बजे ऑफिस के लिए निकलते और रात आठ बजे लौटते थे.उनके लिए समय से नास्ता और लन्च बनाना.त्योहारों में कपड़े खरीदकर लाना.बीमार मां की सेवा के साथ साथ उन्हें घर की चिंता से मुक्त रखना.

युक्ता ने तो दीदी के आंचल में ही माँ की छांव को महसूस किया था.गलतियों पर प्यार से समझाना,जरूरत पड़ने पर डांटना.उसकी उम्र के साथ साथ उसकी तरफ दुनिया के बदलते नजरिये की समझ उसे दीदी की बातों से मिली थी.

फिर वो समय आया जब दीदी का विवाह पक्का हुआ था.युक्ता को यकीन नही हो रहा था दीदी हमेशा के लिए पराई हो जाएगी.पर सच को हंसते हुए स्वीकारना भी तो दीदी ने ही सिखाया था उसे.

विवाह के छह महीने बाद अचानक जब दीदी ने आने का समाचार वाट्सएप्प किया तो उसे विश्वास नही हुआ.पर फिर दीदी ने आने और जाने की टिकट की फोटो भेजी तब कही युक्ता को यकीन हुआ.

पूरा अग्निहोत्री परिवार उल्लास और उमंग से भर गया था.पिताजी ने वो पूरा सप्ताह ऑफिस से छुट्टी लेकर घर में रहने का पक्का कर लिया था.मां के कहने पर युक्ता ने  किचन में खाने पीने की जिम्मेवारी सम्भालने के लिए मेड को रख लिया था ताकि सारे लोग खूब गप्पसप और मजे कर सके.


दीदी ने आते ही मां के कमरे में डेरा जमा लिया था.बिस्तर पर लेटे लेटे मां अपनी बिटिया को बस देखे जा रही थी.

“छुटकी मेरी और मां के खाने की थाली यहीं मां के कमरे में भेजवा दे.आज तो माँ के साथ ही खाना है.”

“ठीक हैं दीदी पर जीजाजी कहां खाएंगे.”

“उन्हें पूछकर जहां वो चाहे उन्हें खाना खिला देना.” बोलकर नालिनी मां और पिताजी के साथ बातें करने में मशगूल हो गयी थी.

युक्ता जीजाजी के लिए थाली लेकर कमरे में गयी तो जीजाजी ने उन्हें हाथ पकड़ कर पास ही बैठा लिया था.

जीजाजी का यूं हाथ पकड़ना युक्ता को थोड़ा असहज लगा था.पर युक्ता ने ज्यादा ध्यान नही दिया और प्यारे जीजू के साथ हंसी मजाक में लग गयी थी.

बात बात में जीजाजी उसे कभी पीठ पर तो कभी कंधे पर छू रहे थे.इस तरह बेवजह बार बार टच करना युक्ता को काफी परेशान कर रहा था.अब वो खुद को सतर्क करने लगी थी.पर जिजाजी बेहद नजदीक आने लगे थे उसके.अब युक्ता ने दाएं हाथ से अचानक एक जोरदार तमांचा उन्हें जड़ दिया था.युक्ता के गोपाल जीजा के लिए ये बिल्कुल उनकी उम्मीदों से उलट हो गया था.हड़बड़ाहट में खाने की थाली ज़मीन पर गिर गयी थी.

थाली गिरने की आवाज पर नालिनी दौड़कर कमरे में आयी थी.

दीदी को आते देख युक्ता ने खुद को सम्भाल लिया था.

“अरे छोटी क्या हुआ और ये थाली कैसे गिर गयी?”

“कुछ नही दीदी दरअसल जिजाजी के मुंह मे मिर्ची का बड़ा टुकड़ा आ गया था.बस उसी में उनके हाथ से थाली ठोकर लग गिर गयी.है न जिजाजी?”

बेचारे जिजाजी ने भी गाल सहलाते हुए सहमति में गर्दन हिला दी थी.

“ठीक है चल दूसरी थाली लगा देती हूं.लाकर दे देना अपने जीजा को.” बोलते हुए युक्ता को लेकर नालिनी किचन में आ गई थी.

“छोटकी ….थोड़ा हल्का तमांचा लगाना था.कुछ ज्यादा ही जोरदार था.बेवजह देखो तुम्हारे जीजू का गाल सूज गया है.”


युक्ता अवाक हो दीदी की तरफ देख रही थी .

“अरे ऐसे क्या देख रही हो.तुम्हारी दीदी हूँ आखिर.तुम्हारे जीजू से शर्त लगी थी कि युक्ता को बुरा भला पहचानने की पूरी अक्ल आ चुकी है या नही.इसके लिए वो जानबूझकर तुम्हे टच कर रहे थे ताकि हमदोनो ये देख सकें कि तुम्हे दुनिया दारी की जो समझ मैंने दी है वो कितनी कारगर है.”

युक्ता ने घूम कर देखा तो जीजू गालों को सहलाते हुए नालिनी दीदी के पीछे खड़े मुस्कुरा रहे थे.

“मेरी बहना टेस्ट में शतप्रतिशत नम्बरो के साथ पास हुई है .इसलिए कल अपनी इस छुटकी के लिए किसी फाइव स्टार में शानदार लन्च रहेगा.”

युक्ता दौड़कर दीदी से चिपक गयी थी

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