‘थैंक्यू भाभी माॅं’ – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

अनु, एक पढ़ी-लिखी, सुलझे विचारों वाली खुशमिजाज महिला थी। खुश रहना और दूसरों को खुशियाँ बांटना उसका स्वभाव था। किंतु, आजकल कुछ समय से वह अपने अंदर कुछ उदासी, कुछ खालीपन महसूस कर रही थी। वह चाहकर भी खुश नहीं रह पा रही थी, मन सदा अशांत सा रहता। ऐसा नहीं था

कि उसे कोई पारिवारिक परेशानी थी।पति अनूप और दोनों बच्चे आकाश और आकांक्षा उसे बहुत चाहते और मानते हैं। पति का अच्छा-खासा बिज़नेस है और आकाश भी M.B.A कर पिता के बिज़नेस में हाथ बंटा रहा है। आकांक्षा मेडिकल के अंतिम वर्ष में है। कुल मिलाकर एक सुखी, संपन्न परिवार।

सबकुछ इतना परफेक्ट होते हुए भी अनु आजकल खुश क्यों नहीं रह पा रही है| वह खुद ही नहीं समझ पा रही थी। समय यूँ ही बीत रहा था। तभी अचानक एक दिन उसकी सहेली नीता

उससे मिलने आई। दोनों ने ढेरों गप्पे मारी, मस्ती की, पुराने दिनों को याद किया, ख़ूब मज़े किये। जाते समय नीता ने उससे कहा “यार अनु, थोड़ा बाहर निकलो, मौज-मस्ती करो। तुम कोई लेडीज़ क्लब क्यों नहीं जॉइन कर लेती?”

अनु को बात जंच गई और उसने एक लेडीज क्लब जॉइन कर लिया। वहाॅं जाकर उसे शुरू-शुरू में तो अच्छा लगा किन्तु, फिर धीरे-धीरे उसे वहाॅं बोरियत होने लगी और उसने वहाॅं जाना बंद कर दिया। वह अपने को खुश रखने के ढेरों जतन करती। कई हॉबी क्लासेज भी ज्वाइन किये पर पता नहीं क्यों वह पहले की तरह खुश रह ही नहीं पा रही थी!

नियति का चक्र

हालांकि, वह अनूप और बच्चों के सामने पहले जैसे ही खुश रहने की कोशिश करती। पर अनूप की नजरों से अनु की उदासी ज्यादा दिनों तक छिपी न रह सकी। उसने उसे खुश करने के लिए पंद्रह दिन का शिमला,

मसूरी का प्रोग्राम बनाया। दोनों बहुत दिनों बाद कहीं अकेले घूमने गए थे। खूब मस्ती की, घूमे-फिरे। वापस आने के बाद कुछ दिन तो अनु खुश रही, फिर वैसे ही उदासीन हो गई।

अब उसने अनु को डॉक्टर के पास ले जाने का निर्णय किया कि कहीं कोई मेडिकल प्रॉब्लम तो नहीं। तमाम टेस्ट हुए और अनु मेडिकली बिल्कुल फिट थी। किन्तु, फिर भी वह उदासी के गर्त में गिरती जा रही थी।

अनूप नहीं समझ पा रहा था कि वह अपनी पुरानी खुशमिजाज अनु को वापस लाने के लिए क्या करे? तब उसे अंधेरे में उम्मीद की किरण दिखी अनु की प्यारी भाभी माँ। उन दोनों का रिश्ता ननद-भाभी का न होकर माॅं-बेटी का था।

अनु जब दस बरस की थी, तभी उसकी माॅं गुजर गई थी। तब उसकी नई- नवेली भाभी ने माॅं बनकर उसे अपने ऑंचल की छाॅंव में छुपा लिया था और उस दिन से वो उसकी भाभी माॅं बन गई थी।

जब अनूप ने उन्हें अनु के बारे में बताया तो वे बहुत चिंतित हो गई।

“अरे ! अनु से तो मेरी कल ही बात हुई है लेकिन उसने मुझे तो कुछ नहीं बताया।”

“भाभी माॅं, वो किसी से कुछ नहीं कहती है। लेकिन, पता नहीं क्या परेशानी है जो उसे अंदर ही अंदर खाए जा रही है। मेरी अनु बहुत उदास हो गई है। बात-बात पर खिलखिलाने वाली अनु अब मुश्किल से मुस्कुराती है।

मुझसे उसकी उदासी सही नहीं जाती। आप प्लीज कुछ दिन के लिए यहाॅं आ जाइए। शायद आपसे वह अपनी परेशानी बता पाए” अनूप ने भाभी माॅं से रिक्वेस्ट की। यह सुनते ही वे तुरंत शहर आ गई।

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अनु उनसे मिलकर बहुत खुश हुई। भाभी माँ अनु के व्यवहार का आकलन करने लगी। उन्होंने पाया कि उनकी प्यारी अनु की ऑंखों में अब खुशी की चमक नहीं, उदासी है। उन्होंने अनु को अपने पास बुलाया और सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा “बेटी, क्या परेशानी तुम्हें खाये जा रही है? क्यों, मेरी प्यारी चिड़िया चहचहाना भूल गयी है?”

भाभी माँ का स्नेहिल स्पर्श पाकर अनु फूट पड़ी “भाभी माँ, मुझे खुद नहीं पता मुझे क्या हो गया है। सबकुछ सही होते हुए भी मेरा मन इतना अशांत क्यों है? बच्चे भी अब बड़े हो गए हैं, सक्षम हो गए हैं और पहले की तरह हर छोटे-छोटे कामों के लिए उन्हें मेरी जरूरत नहीं है। ऐसा लगता है मानो जीवन निरुद्देश्य हो गया है।”

भाभी माँ ने उसे शांत कराते हुए कहा “चुप हो जा अनु, इस तरह रोने या हारने से कुछ नहीं होगा। इसका समाधान तुम्हें ही ढूंढ़ना होगा, मैं सदा तुम्हारे साथ हूॅंं।”

तभी उनकी नजर कामवाली बाई कमली के साथ आई बच्ची पर पड़ी। उन्होंने अनु से पूछा “ये बच्ची कौन है, कमली के साथ?”

“भाभी माँ, ये इसकी बेटी मुनिया है। मैंने तो कहा भी इतनी छोटी बच्ची को काम पर क्यों लाती हो, पर इसका कहना है दो की जगह चार हाथ हो जाने से काम जल्दी हो जाता है। घर बैठाने से पेट थोड़ी भरेगा!”

पर मैंने इसे साफ कह दिया है कि “तुमसे जितना हो उतना ही काम करो, मैं मुनिया से कोई काम नही कराऊँगी। जब तक ये यहाॅं काम करती है, तबतक मुनिया यहां खेल लेती है।”

तभी उन्होंने कमली से पूछा “क्यों री कमली, बच्ची को पढ़ाओगी?”

वह धीरे से बोली “माँजी, यहाॅं दो जून रोटी का जुगाड़ मुश्किल से होता है, कहाँ से पढ़ाएं?”

भाभी माँ बोली- “तू सिर्फ हाँ कर दे, बाकी मैं देख लूॅंगी।”

फिर मुनिया को बुलाकर पूछा “बेटी, पढ़ोगी?”

यह सुनते ही उसकी आँखें खुशी से चमक उठी। उसने हाँ में सिर हिला दिया। ठीक है, कल से तेरी पढ़ाई शुरू।

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उनके जाने के बाद अनु ने पूछा- “भाभी माँ, मुनिया को कौन पढ़ायेगा?”

भाभी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा “तुम और कौन?”

“पर मैं कैसे?”

“उसी तरह जैसे तुम आकाश, आकांक्षा औऱ उनके दोस्तों को पढ़ाती थी। तुमसे बढ़िया शिक्षक मुनिया को नहीं मिल सकता। कुछ समय पढ़ा कर देख लो मन न लगे तो छोड़ देना।”

अनु मुनिया को पढ़ाने लगी। उसे इसमे आनंद आने लगा। धीरे-धीरे मुनिया के कुछ दोस्त भी पढ़ने आने लगे। उन बच्चों की मुस्कुराहटों ने उसके जीवन में भी मुस्कुराहट भर दी।

कुछ समय बाद वह बस्ती में जाकर बच्चों को पढ़ाने लगी, लोग साथ जुड़ने लगे। आज वह सफलतापूर्वक एक एन.जी.ओ. चला रही है और बहुत खुश है। भाभी माँ के मार्गदर्शन से उसे जीवन में मन की शांति पाने का रास्ता मिल गया।

आज जब अनु को उसके सामाजिक कार्यों के लिए पुरस्कृत किया गया तो उसने वह पुरस्कार भाभी माँ को देते हुए कहा “थैंक्यू भाभी माँ, मैं आज जो भी हूँ, आपके कारण हूँ।”

धन्यवाद

साप्ताहिक विषय कहानी प्रतियोगिता#भाभी

लेखिका-श्वेता अग्रवाल।

धनबाद, झारखंड

शीर्षक-‘थैंक्यू भाभी माॅं’

VM

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