“ये लो,,महारानी अब पानी भरने जा रही है- “
“अरे रात भर पता नहीं कहाँ मुँह काला करने जाती है, तो सुबह कहां से नींद खुलेगी,,,”
“कुलच्छनी,, हुंह,,,,”
श्यामली पानी लिए बगैर लौट रही थी, तभी मोहल्ले की स्त्रियों की ये फब्तियां उसके कानों में पड़ी।
ये रोज़ की बात थी, श्यामली अनसुना करती हुई तेज़ तेज़ कदमों से वहां से निकल गई।
–रात के 3 बज रहे होंगे, जाड़े का समय था, श्यामली शॉल ओढे घर को लौट रही थी।गली के कोने पर कुछ मनचले मानों उसकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे।
“जानेमन हम पर कब मेहरबान हो रही हो”–एक ने कहा।
“अरे हममें ऐसी क्या कमी है जानूं, जो तुम्हें कहीं और जाने की ज़रूरत पड़ती है”–दूसरा कुछ पास आते हुए बोला।
श्यामली ने चाल कुछ तेज़ कर दी।
“अरे रे रे,,रानी हमें भी प्यास लगी है, थोड़ी तो पिला दो,,,”लगभग श्यामली की बांह पकड़ते हुए एक ने कहा।
श्यामली बुरी तरह घबरा गई, बड़ी मुश्किल से बांह छुड़ाकर तेजी से भागते हुए घर पहुंची।हड़बड़ी में ताला खोलने लगी।
“आ गई कुलटा…”. सामने के घर से किसी स्त्री का स्वर सुनाई दिया।
श्यामली की आँखों मे आँसू थे, और इतनी सर्दी में भी तन पसीने से भीगा हुआ।
जैसे तैसे वो अंदर गई, दरवाज़ा बंद कर दरवाज़े से ही पीठ सटा कर फफक कर रो पड़ी।
“क्या हुआ सामली”–किसी पुरुष का बहुत दबा हुआ स्वर सुनाई दिया, जैसे गले से आवाज़ नहीं निकल रही हो।
“क्क्क कुछ नहीं,,”, श्यामली आँसू पोछते हुए लपक कर बिछौने के पास पहुंची।
बिस्तर पर अधेड़ उम्र का आदमी लेटा था, जो देखने में बहुत ही बीमार लग रहा था।
श्यामली ने नज़दीक जाकर उसको चादर ठीक से औढाई और पूछा –“पानी पीना है क्या”?
उस व्यक्ति ने हां मे सिर हिलाया,,
श्यामली गिलास में पानी भर लाई और सहारे से उसको उठाकर पानी पिलाने लगी।
पानी पीते पीते उस व्यक्ति की आँख से आंसू अविरल बह रहे थे।
“सामली…क्यों मेरे लिए इतनी जिल्लत उठाती है तू? वह आगे बोला,,, क्या मुझे पता नहीं कि मुहल्ले वालों ने तेरा जीना दूभर कर रखा है।”
“चली जा मुझे छोडकर,,, और एक नई ज़िन्दगी की शुरूआत कर,,,, मुझे मेरे हाल पर छोड दे।”
“अगर मेरी ऐसी हालत होती तो क्या तुम मुझे छोड़ देते ?
तेजाब की फेक्ट्री मे काम करते करते तुम्हारे फेफडे खराब हो गए, कितनी तकलीफ़ तुम सह रहे हो, क्या हम केवल सुख के साथी हैं ? नहीं हम दुख और सुख दोनों के साथी हैं।जब तक तुम अच्छे थे, तुमने काम किया और मुझे हर सुख दिया, अब मेरी बारी है,,, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दुनिया मुझे किस नज़र से देखती है,, रात पाली मे काम करना मेरी मजबूरी है, ताकि दिनभर मैं तुम्हारी देखरेख कर सकूं।”
“तेज़ाब की फेक्ट्री मे तुम काम करते थे लेकिन इन लोगों की तो सोच मे तेज़ाब भरा है,, ये आग ही उगलेंगे,,,,,” श्यामली दृढ़ता से बोल रही थी,,, पति के चेहरे पर मुस्कान थी।
*नम्रता सरन “सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश