टीस -गुरविन्दर टूटेजा

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   रात के पौने बारह बज रहे थे…आँखें बंद कर गरिमा लेटे लेटे सोच रही थी कि पता ही नही चला कि कैसे शादी को पच्चीस साल गुजर गये…पर शुरुआत में हुई वो बातें आज भी टीस सी मन में चुभ जाती है…..!!!!

 जब समीर देखने आये थे तो वो तभी कम पसन्द आये पर बिन माँ-बाप की थी सो चाचा ने जहाँ शादी पक्की कर दी वही करनी पड़ी…मायके में पैसे की कोई कमी नही थी…इधर जब रिश्ता हुआ तो ननद ने कहा कि कोई कमी नही है…घर है…कार है..!!!!!

जब ब्याह के आयी तो पता चला कि घर तो है पर दोनो जेठजी के पास पास में दो घर है…एक जगह कमरा था…एक जगह रसोई…सोच कर ही मन घबरा गया कि कैसे…पर रहना तो था…कैसे दिन थे वो समीर के कपड़े मम्मी-पापाजी के कमरे में थे और मेरे जहाँ हमारा कमरा था…सात साल हमने ऐसे ही निकाले थे….क्योंकि समीर का काम अच्छा नही था…!!!!!

  शादी हुई तो चाचाजी ने सामान सब दिया था…नयी नयी शादी के बाद मन में डर तो था पर शौक भी थे…पहली दीवाली आई तो मायके में देखा था कि दीवाली पर सब नया करते थे….अपनी मिली हुई चद्दरों में से एक सुंदर सी चद्दर निकालकर बड़े चाव से अपने कमरे में बिछाई ही थी कि इतने में पापाजी किसी काम से कमरे में आ गये और बोले…अरे गरिमा ये नयी चद्दर क्यूँ बिछा दी…चव्वनी का समीर नही और इतनी मँहगी चद्दर…सुनकर गरिमा अवाक रह गयी…भले ही पापाजी ने सच्चाई ही बोली थी पर उनके शब्द एक टीस से दिल में चुभ गये थे…तब लगा था सबकुछ छोड़कर चली जाऊँ पर इतना आसान नही था….!!!!!


  आज सब अच्छा हो गया था…पर वो समय टीस सा आज भी गरिमा को गहरा दर्द दे जाता है…सोचते सोचते आँखों से आँसू बह निकले….समीर की आवाज सुन चौंक कर देखा तो सामने समीर व बच्चे खड़े थे….समीर बोला क्या हो गया भई….कहाँ गुम हो…देखो बच्चों ने हमारी पच्चीसवी सालगिरह की शुरूआत कितने अच्छे से करी है…केक सामने पड़ा था…हम केक कट कर रहे तो…बच्चे फूल बरसा रहे थे…मेरी खुशी का ठिकाना नही था…सोचा वक्त की टीस पर इससे अच्छा मरहम नही हो सकता था….!!!!!!!

गुरविन्दर टूटेजा

उज्जैन (म.प्र.)

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