टका-सा मुॅंह लेकर रह जाना – डॉक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

प्राचीनकाल में  किसी जंगल में नदी किनारे एक जामुन  के पेड़ पर एक बंदर रहता था।बंदर उस पेड़ के मीठे-मीठे जामुन खाता और अपने दिन आराम से बिताता, परन्तु उस बंदर के दिल में एक ही मलाल था कि उस निर्जन वन में उसका कोई दोस्त नहीं था।अकेलेपन के कारण बंदर कभी-कभी उदास हो जाता था।

एक दिन संयोगवश भोजन की तलाश में एक मगरमच्छ उस पेड़ के नीचे आया।उसे देखकर बंदर ने पूछा -” मगरमच्छ भाई!इधर भटककर कैसे आ गए हो?”

मगरमच्छ ने कहा -“भाई! मैं  इधर भटककर नहीं आया हूॅं। मैं जिधर रहता था,उधर भोजन की कमी हो गई।भोजन की तलाश में इधर आया हूॅं।”

बंदर ने उससे दोस्ती करने का मन बना लिया। उसने कहा -“दोस्त! यहाॅं पेड़ पर बहुत मीठे-मीठे जामुन लगते हैं। मैं रोज तोड़कर गिरा दिया करुॅंगा,तुम खा लिया करना।”

अब बंदर रोज मगरमच्छ के खाने के लिए  मीठे-मीठे जामुन गिरा देता और मगरमच्छ पेट भर खा लेता। धीरे-धीरे बंदर और मगरमच्छ में गहरी मित्रता हो गई। दोनों आपस में काफी देर तक बातें करतें।एक दिन मगरमच्छ के घर वापस लौटते समय बंदर ने उसे कुछ मीठे-मीठे जामुन दिऍं। मगरमच्छ की पत्नी ने इतने मीठे और स्वादिष्ट जामुन खाकर मन-ही-मन सोचा -“जो बंदर रोज इतने मीठे जामुन खाता है,उसका दिल कितना मीठा होगा?”

मगरमच्छ की पत्नी ने अपने दिल की बात अपने पति से कहीं, परन्तु मगरमच्छ ने नाराज़ होते हुए कहा -“बंदर मेरा मित्र हैं। मैं अपने मित्र  के साथ विश्वासघात कभी नहीं करुॅंगा।”

मगरमच्छ की पत्नी भी हार नहीं मानने वाली थी।एक दिन बीमारी का नाटक करते हुए उसने पति से कहा -“मुझे वैद्य जी ने कहा है कि किसी बंदर के कलेजा खाने से ही मेरी बीमारी ठीक होगी!”

मगरमच्छ बंदर के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहता था, परन्तु पत्नी की जिद्द के आगे मजबूर हो उठा।अगले दिन उसने बंदर से कहा -” मित्र!मेरी पत्नी तुमसे मिलकर तुम्हें मीठे-मीठे जामुन खिलाने के लिए धन्यवाद देना चाहती है।”

बंदर ने कहा -” मित्र!मुझे तैरना नहीं आता है।इतनी बड़ी नदी भला मैं कैसे पार कर सकूॅंगा?”

मगरमच्छ ने कहा -“मित्र!तुम चिन्ता मत करो। मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाऊॅंगा और तुम्हें वापस छोड़ भी दूॅंगा।”

बंदर मगरमच्छ की बात पर भरोसा कर उसकी पीठ पर बैठकर मिलने चला।जब मगरमच्छ नदी के बीचोंबीच पहुॅंच गया,तब उसने बंदर को सच बात बताते हुए कहा -“मित्र! मैं झूठ बोलकर तुम्हें ले जा रहा हूॅं।सच बात तो यह है कि मेरी पत्नी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है!”

मगरमच्छ की बात सुनकर बंदर को विश्वासघात का सदमा लगा गया, परन्तु विपत्ति की घड़ी में भी उसने अपना संयम नहीं खोया।हिम्मत के साथ होशियारी दिखाते हुए उसने कहा -” मित्र!यह बात तुमने पहले मुझे क्यों नहीं बताई? मैंने तो अपना दिल जामुन के पेड़ पर सॅंभालकर रख दिया है।तुम मुझे जल्दी से वापस नदी किनारे ले चलो, ताकि मैं अपना दिल भाभी को उपहारस्वरूप देकर खुश कर सकूॅं।”

मूर्ख मगरमच्छ जैसे ही बंदर को लेकर नदी किनारे आया,वैसे ही बंदर उछलकर जामुन के पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर से अपने मन का गुब्बार निकालते हुए बंदर ने  मगरमच्छ से कहा -“मुझे अफसोस है कि मैंने ऐसे महामूर्ख से दोस्ती की है,जिसे इतना भी नहीं पता है कि बिना दिल के भला कोई जीव जिन्दा रह सकता है! आज से तेरी और मेरी दोस्ती खत्म।”

बंदर की बात  सुनकर मगरमच्छ का मुॅंह टका-सा रह गया। आत्मग्लानि में डूबकर वापस लौट गया।

 

समाप्त।

 

उपरिलिखित कहानी पंचतंत्र से ली गई है,जिसे मैंने अपने शब्दों में लिखने का प्रयास किया है।

डॉक्टर संजु झा।

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