कहीं मेरी “बहू” भी तो..!! – पूनम गुप्ता

  अर्चना जब अपनी बीमार “सास” की सेवा बिना कुछ सोचे -समझे दिन-रात करती यह सोच कर कि यदि मम्मी जी की जगह मेरी अपनी “मां” होती तो क्या मैं उन्हें बीमार हालत में छोड़ देती..?” अर्चना की यही सोच उसे उसके ससुराल वालों से बांधे रखती है, धीरे-धीरे आज पूरे घरवाले उसे ढेर सारा … Read more

” कितनी गहराई थी उसकी बातों में “-सीमा वर्मा

” जानती हो ‘मंजुला ‘ को ब्रेस्ट कैंसर हो गया है उसका औपरेशन अगले सोमबार को होना निश्चित हुआ है। ” फोन पर उर्मी थी। ” उफ़ ! मंजुला मेरी ननद हैं। मैं हतप्रभ !! दुखी और लाचार होने की तो सीमा ही नहीं थी “ मुझको सूचित करके उर्मी ने फोन काट दिया। थोड़ी … Read more

ऐसे तोहफ़े किस काम के । – सुषमा यादव

हम सब शादी, जन्म दिन, दीपावली,और अन्य  किसी भी खास मौकों पर अपने परिवार, रिश्तेदारों, तथा दोस्तों को उपहार स्वरूप कोई ना कोई गिफ्ट जरूर देते हैं,।ये गिफ्ट हम जब भी किसी को देते हैं तो हमें बहुत ही खुशी होती है, ये हमारे आपस के रिश्तों को मजबूती प्रदान करते हैं।  जिसे हम तोहफ़ा … Read more

धूप-छाँव का खेल – शकुंतला अग्रवाल ‘शकुन’

लखपति,करोड़पति तो उसको कहना बहुत छोटा शब्द है। वह तो धनकुबेर है। तभी उसकी नजर सदा गगन को छेदती रहती है, जमीन पर तो कभी पड़ती ही नहीं।  ऐसा हो भी क्यों नहीं ,पंछी की तरह उसने तो आकाश नापना ही सीखा है। पर कहते है ना कि धरातल से जिसकी पकड़ छूट जाती है, … Read more

धूप के बाद की ठंडी छांव – रजनी श्रीवास्तव अनंता

“बुआ मैं भी आपके साथ चलूंगी, पड़ोस वाली आंटी के घर!” छाया ने जिद की तो दोनों बुआ ने उसे अपने साथ ले लिया। गर्मी की छुट्टियों में एक सप्ताह के लिए उसकी दोनों बुआ मायके आयी थीं। दोनों साथ हीं आती थी। सब दोस्तों और रिश्तेदारों से, मोहल्ले वालों से, मिलकर जाती थीं। वे … Read more

धूप-छाँव – पुष्पा पाण्डेय

प्रभात बेला में एक महिला की छाया रेलवे लाइन पर चलती देखकर कचरा चुनने वाली वृद्धा को काफी हैरानी हुई। ट्रेन अभी आने ही वाली थी और वह छाया सीधी चली जा रही थी। आव देखा न ताव दौडती हुई गयी और रेलवे लाइन से धक्का दे उस पार ढकेल दिया। ट्रेन चली गयी, लाइन … Read more

“बुढ़ापा भी धूप छांव से कम नहीं होता ”  – अमिता कुचया 

एक दमयंती जी जिनका घर में जो दबदबा रहा है उसे देखते ही बनता था।उनकी बुलंद आवाज ही काफी थी।वे धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।   वो दूरदर्शी होने के साथ सत्यनिष्ठ थी। उनसे झूठ बर्दाश्त नहीं होता था।पर कहते हैं किस्मत के लिखे को कौन बदल पाया। उनके घर में दो बहू बेटे हैं … Read more

मैं अछूत नहीं हूँ… – संगीता त्रिपाठी

“क्या बात है रोहन…काव्या अभी तक उठी नहीं “वन्दना जी ने बेटे रोहन से पूछा।   “माँ उठ तो गई है पर उसकी तबियत ठीक नहीं है,”रोहन बोला “अरे क्या हो गया हमारी बहू रानी को.. देखूं जरा “कहते हुये वन्दना जी रोहन के बैडरूम में चली गई। काव्या के सर पर हाथ फेरते बोली “काव्या … Read more

परिवार –   मधु वशिष्ठ

    जब-जब भी स्कूल की छुट्टी होती थी हम सब का गांव में जाना अनिवार्य होता था। गांव में हमारी ताई जी और उनके 5 बच्चे, हम दो  भाई बहन,मम्मी और चाचा जी और चाची जी भी अपनी छोटी सी बेटी( हमारी चचेरीबहन) निक्की को लेकर वहीं मिला करते थे। दादी जी बाहर के गेट पर … Read more

मेरा घर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए – दीपा माथुर

सुनो दीदी कि शादी है,मुझे नए लहंगा चुन्नी  चाहिए। अरे अभी तो अपनी शादी को छ महीने ही हुए है,आपके पास तो बहुत सारी ड्रेसेज नई नई ही है । तो क्या? दीदी की शादी रोज़ थोड़ी ना होंगी।फिर मम्मी को भी तो अपनी तरफ से मुझे कपड़े दिलाने पड़ेंगे।आखिर एक इकलौती बहू हूं। तुम्हे … Read more

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