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ऐसे तोहफ़े किस काम के । – सुषमा यादव

हम सब शादी, जन्म दिन, दीपावली,और अन्य  किसी भी खास मौकों पर अपने परिवार, रिश्तेदारों, तथा दोस्तों को उपहार स्वरूप कोई ना कोई गिफ्ट जरूर देते हैं,।ये गिफ्ट हम जब भी किसी को देते हैं तो हमें बहुत ही खुशी होती है, ये हमारे आपस के रिश्तों को मजबूती प्रदान करते हैं।  जिसे हम तोहफ़ा देते हैं वो भी खुश हो कर हमारे प्रति आभार व्यक्त करते हैं। चाहे किसी भी देश के क्यों न हों तोहफा लेना और देना दोनों को अपरिमित खुशियां देता है,।

लेकिन क्या  इन कपड़े, सजावटी सामानों,या कॉस्मेटिक वस्तुओं के मंहगे तोहफों से हम वाकई ख़ुश होते हैं,, पहले पुराने समय की और बात थी, परंतु अब सबकी रूचि, पसंद बहुत बदल गई है,,अब सब अपने पसंद के अनुसार सब कुछ खरीदने लगे हैं।

अक्सर देखा गया है कि मंहगे से मंहगे तोहफ़े भी अब लोगों को पसंद नहीं आते हैं,, और वे तोहफ़े या तो एक कोने में पड़े रहते हैं या फिर किसी अन्य की तरफ़ उछाल दिये जातें हैं। अधिकतर गिफ्ट्स बर्बाद हो जाते हैं।

मेरी बेटी की शादी में उसकी एक सहेली ने खूब सुर्ख लाल रंग की एक बहुत भड़काऊ शिफान की मंहगी साड़ी गिफ्ट की, विदेश में रहने वाली उसे ऐसी साड़ी पसंद नहीं आई, और वो मेरे पास छोड़ गई,,अब मैं भी उसे किसी अन्य को ही दूंगी,, एक अन्य सहेली ने बुद्ध भगवान के चित्र और उसी भाषा में लिखी हुई धार्मिक बातों से भरी हुई तमाम पेंटिंग्स और दुपट्टे वगैरह दिया , वो भी मुझे अपने पास ही रखना पड़ा,    अक्सर हम देखते हैं कि कुछ लोग सामने वाले की पसंद नापसंद का बिल्कुल ही ख्याल नहीं रखते,बस भारी पैकेट में सजा कर तोहफ़े के रूप में थमाने से मतलब है, 

साड़ियां भी ऐसी दी जाती हैं जिनका किसी को कलर नहीं पसंद तो किसी को बहुत चमकीली , भड़कीली और पुराने फैशन की लगती है,




अभी हाल ही में मैं एक शादी में गई थी, बेटी की शादी थी, गिफ्ट्स में आई हुई साड़ियों के अंबार लग गये थे,, लड़की की मां ने देखा और एक एक करके सभी साड़ियां उठा उठा कर अपने परिवार व रिश्तेदारों की महिलाओं को थमाने लगीं, मैंने कहा, अरे,देख तो लो किसका प्रेजेंट है,पर उन्होंने मुंह बना कर कहा, दीदी, ये साड़ियां कौन पहनेगा,, देखिए, ये अंगूठी और कान के जेवर कितने हल्के हैं, ज़रूरी थोड़े ही है कि वो जेवर ही देते, इससे अच्छा तो था कि एक लिफाफे में जो देना होता, रुपए ही रख कर दे देते, बिटिया के काम आ जाता और वो अपनी मनपसंद चीजें खरीद लेती या बैंक में जमा कर देती,समय पड़ने पर उसे काम आ जाता,,,

उस कम पढ़ी लिखी महिला की ये

बातें सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गई कितने नपेतुले शब्दों में उसने इतनी सही बात कह दी,,

वैसे मैं भी लिफ़ाफे में गिफ्ट तौर पर रुपए ही देना पसंद करती हूं,,

मेरी बेटी भी बहुत परेशान रहती है,जब उसके ससुराल से कोई आता है तो बच्ची के लिए हर बार

प्रत्येक चार पांच ड्रेस, तमाम जूते,आदि लेकर आते हैं,अब इतना सारा बच्चा एक साथ तो नहीं पहन सकता और फिर वो छोटे हो जाते हैं,,अंत में सारे नये नये मंहगे कपड़े दूसरों को दे आती है,, मैंने कहा, उनसे कैश देने को कहो, बोली, यहां पर ये रिवाज नहीं है।

लेकिन अब धीरे धीरे भारत देश की तरह विदेशों में भी लोग गिफ्ट में कैश और गिफ्ट कार्ड लेना देना पसंद कर रहे हैं,,सबका यही कहना है,, इसमें पसंद और नापसंद की परेशानी नहीं उठानी पड़ती है, अपनी इच्छानुसार जो चाहे खरीद लो,,

मेरी बेटी ने भी अब विदेश में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों और परिवार वालों को कह दिया है, मैंने अपनी बेटी का एकाउंट खोल दिया है,आप उसमें गिफ्ट के तौर पर कैश डाल सकते हैं,अब सब उसी में कैश डाल देते हैं, मैं भी अब कैश ही देने लगी हूं, उसके बड़े होने तक अच्छी खासी रकम जमा हो जायेगी,,

हमें भी अब तोहफ़े के लेन देन के चलन को बदलना चाहिए, क्यों कि लेने वाले को तोहफा पसंद नहीं आने पर भी मुस्कुरा कर लेना पड़ता है और बाद में उसका कोई उपयोग नहीं हो पाता,,देने वाले का भी काफी पैसा लग जाता है, तो ऐसा प्रेजेंट किस काम का।।

सुषमा यादव, प्रतापगढ़, उ, प्र,

स्वरचित मौलिक

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