*स्वयंसिद्धा* – नम्रता सरन “सोना”

“बहू,देखना ज़रा ये तुम्हारा फ़ोटो है क्या ? शरद बाबू ने अपनी बहू प्रमदा को एक बहुत पुराना सा अख़बार दिखाते हुए पूछा।

“जी, बाबूजी, ये मेरा ही है”प्रमदा ने मुस्कुराते हुए कहा।

“बहू, तुम विवाह के पूर्व लिखती भी थीं, और वह भी इतना अच्छा, कितनी अच्छी कहानी छपी है तुम्हारी” ससुर जी खुशी से बोले।

“जी, बाबूजी, विवाह से पूर्व मेरी दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुई थीं” प्रमदा ने सहज भाव से कहा।

“बहू, ये बात तुमने कभी बताई नही, फिर लिखना क्यों छोड़ दिया, अब क्यों नहीं लिखतीं” ससुर जी ने प्रश्न किया।

“बाबूजी, अब ज़िंदगी पूरी तरह बदल गई है, कुछ ज़िम्मेदारियाँ है घर परिवार के प्रति, अब लिखने का समय ही नही मिलता” प्रमदा ने सरलता से कहा।

“ओह, “शरद बाबू कुछ सोचते हुए बोले।

“बहू, ये लो कलम , और आज बल्कि अभी से तुम लेखन शुरू करो, घर परिवार के कार्य सब मिलकर करेंगे” शरद बाबू ने प्रमदा को पेन देते हुए कहा।


“बाबूजी…” प्रमदा ने कृतज्ञ भाव से शरद बाबू के चरण स्पर्श किए।

तालियों की गड़गड़ाहट से प्रमदा की तंद्रा भंग हुई।

“आज का अगला अवार्ड वर्ष की सर्वश्रेष्ठ लेखिका , प्रमदा माथुर को जाता है, उन्हें ये अवार्ड उनकी पुस्तक”स्वयंसिद्धा” के बेहतरीन लेखन के लिए दिया जा रहा है, आईए प्रमदा जी” स्टेज पर प्रमदा का नाम पुकारते ही हॉल तालियों से गूंज उठा।

प्रमदा अपनी आँखों में झिलमिलाते तारोँ को पलकों से ढाँकते हुए उठी, उसने देखा दर्शक दीर्घा की प्रथम पंक्ति में उसका पूरा परिवार गर्मजोशी से तालियां बजाकर उसका स्वागत कर रहा है।

“प्रमदा जी, आपने लंबे अंतराल के बाद लेखन पुनः आरंभ किया और एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि एक स्त्री स्वयंसिद्धा होती है” मुख्य अतिथि ने अवार्ड देते हुए प्रमदा से कहा और माईक प्रमदा को देकर कहा कि वह भी दो शब्द बोले।

प्रमदा ने हाथ हिलाकर गौरवान्वित होते ,परिवार को देखते हुए कहा–

“मैं तो एक साधारण स्त्री हूँ,  हर स्त्री स्वयंसिद्धा होती है,  किंतु जब उसकी हर सफ़लता मे उसका परिवार साथ खड़ा हो तब वह   सिद्ध हो जाती है  सर्वश्रेष्ठ”

 

*नम्रता सरन “सोना”*

भोपाल मध्यप्रदेश

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!