सॉरी माँ – प्रीति आनंद अस्थाना

“पापा, आप आएँगे न आज पेरेंट टीचर मीटिंग में? टीचर जी ने आपको याद दिलाने बोला है।” रिया ने नाश्ते के वक्त रचित से कहा।

“आऊँगा न, कितने बजे है ये मीटिंग?”

“ग्यारह बजे से पापा।”

“ओके “

हाफ़-डे ऑफ़ लेने की सोच ली है रचित ने। और आज तो ऐसे भी उसे स्कूल जाना ही होगा। मधु आ रही है… मधु… रिया की जन्मदात्री! पूरे नौ साल बाद अपनी कोख़जाई से मिलने!

बड़ी मुश्किल से उसकी ज़िंदगी ने पुनः मुस्कुराना शुरू किया था कि मधु के आने के समाचार ने उसके घावों को कुरेद दिया। मजबूरी में रचित से किए गए विवाह से छुटकारा पाने के बाद वह विनय के पास ऑस्ट्रेलिया चली गई थी। कॉलेज के मित्र विनय से उसके प्रेम सम्बंध थे पर किसी कारणवश रिश्ता अंजाम तक नहीं पहुँच पाया।

माँ-बाप के दबाव देने पर वह रचित से ब्याह के लिए राज़ी तो हो गई थी पर इस नए रिश्ते को कभी दिल से स्वीकार नहीं कर पाई। ये सब बातें रचित को तब पता चलीं जब विवाह के तीन वर्ष बाद मधु अपने दो साल की बिटिया रिया को उसके पास छोड़कर विनय के पास चली गई।

तबसे रिया का पालन-पोषण अकेले रचित ने ही किया है। समाज ने बहुत दबाव बनाया उस पर पुनर्विवाह के लिए पर उसने दूसरी बार विवाह-रूपी आग में कूदने से साफ़ मना कर दिया।


कोशिश की है उसने कि माँ की कमी महसूस न हो रिया को पर शायद वह इसमें सफल नहीं हो पाया है। जब साल भर पहले, दस वर्ष की रिया के साथ मधु ने माँ-बेटी वाले रिश्ते को पुनर्स्थापित करने की शुरुआत की तो रिया उससे बहुत जल्दी घुल-मिल गई। उसके बाद से हर दस-बारह दिनों में एक बार विडीओ कॉल पर बातचीत हो जाती है दोनों में। रिया बहुत खुश हो जाती है माँ से बात कर के।

ख़ुश होकर जब वह रचित को सारी बातें बताती है तो वह रिया के लिए ख़ुश तो बहुत होता है पर, पता नहीं क्यों, अंदर से ख़ुशी महसूस नहीं होती! शायद वह अपने दो लोगों के छोटे-से परिवार में इतना रच-बस गया है कि उसमें सम्मिलित होने की मधु की चाहत को स्वीकार करने से उसका अंतर्मन कतराता है। मन  के किसी कोने में डर था कि कल को अगर दोनों में से एक को चुनने को बोला जाए तो रिया मधु के पास न चली जाए! माँ तो माँ ही होती है!

स्कूल में जब मधु आई तो एक बार तो वह उसे पहचान ही नहीं पाया! सुंदर शर्मीली-सी लड़की का स्थान अत्याधुनिक वस्त्रों में सजी हुई एक महिला ने ले लिया था। रिया भाग कर उसके गले लग गई। वह वहीं खड़ा होकर इस मिलन के ख़त्म होने का इंतज़ार करने लगा।

“मुझे ख़ुशी है तुमने इतनी अच्छी तरह रिया का पालन-पोषण किया है, रचित! शी हैज़ ग्रोन इंटू अ फ़ाइन यंग लेडी!”

“धन्यवाद “ इससे ज़्यादा बोलने की उसकी न इच्छा थी न ही मानसिक स्थिति!

“मैं आज रिया को अपने साथ ले जाना चाहती हूँ, रचित, शाम तक घर पहुँचा दूँगी।घर का पता भूली नहीं हूँ मैं!” कह कर कुछ असहज-सी हँसी हँस दी वह!


फिर वह रिया से बोली,

“आज हम इतने सालों बाद मिले हैं। माँ-बेटी मिल कर खूब धमाल मचाएँगे, ठीक है न! चलो चलते हैं। पापा को बाय बोलो।”

रचित को काटो तो खून नहीं! ज़िंदगी हाथ से रेत के समान फिसलने लगी थी!

“मगर..!”

इससे पहले कि रचित क्या कहूँ ये सोच पाता, रिया बोल पड़ी,

“मम्मा, जानती हैं आप आज स्कूल में पीटीएम था। हर महीने पीटीएम होती है, पापा ने आज तक एक भी मिस नहीं की है। टीचर अगर मेरी तारीफ़ करती हैं तो हम पिज़्ज़ा खाने जाते हैं, और अगर नाराज़ होती हैं तो सिर्फ़ गोलगप्पे! आप चल सकती हो हमारे साथ। आज तो पिज़्ज़ा पार्टी होगी! वहीं मस्ती करेंगे। पर पापा के बिना तो मैं किसी के साथ नहीं जाती। सॉरी माँ!”

स्वरचित

प्रीति आनंद

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