
सु कर्म – कंचन श्रीवास्तव
- Betiyan Team
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- on Mar 03, 2023
बढ़ती उम्र के साथ स्त्री जिन रिश्तों को पहचानती है वो है बाप,भाई,पति और अंततः बेटा हां बेटा,कुछ पल के लिए उसके जीवन में एक ऐसा रिश्ता भी आता है जिसे सिर्फ़ वो महसूस करती है , जता नहीं सकती क्योंकि जताने नही सकती।
और इन्हीं की खिदमत करते करते वो दुनिया को अलविदा कर जाती है।फिर आहिस्ता आहिस्ता लोग उसे भूल जाते हैं भूले भी क्यों न ?सबकी अपनी अपनी जिंदगी होती है, तो भूलना लाज़िमी है।
यदि भूलेंगे नहीं तो नए रिश्ते कायम कैसे होंगे।
अब वो बात अलग है कि इन सबसे जिसने बगावत की वो प्रसिद्ध हो गई।
और ऐसे प्रसिद्ध हुई की स्वर्ण अक्षरों में उनका नाम इतिहास में अमर हो गया।
भले इसके लिए उन्हें उन्हें चाहे कितनी भी प्रताड़ना क्यों न सहनी पड़ी हो ।
बस यही बात रेखा के मन में घर कर गई और वो बगावत कर बैठी। रिश्तों से परे उसने अपनी एक दुनिया बनाई दस वर्ष की छोटी उम्र में सोती ‘ पिता तो पहले ही मर चुके थे, भाई की परवाह नहीं की ‘ मां को छोड़कर घर से बाहर निकल गई।
ये खबर सबेरे आग की तरह पूरे गांव में फ़ैल गई।फिर क्या था भाई ने कभी न पनाह देने की बात कर मां को बुरा भला कहा और हिदायत भी दी , ‘ कि यदि वो लौटकर आती है ,तो खबरदार उसे घर में घुसने मत देना।
फिर क्या था, अखबार में भी नोटिस निकल गई।जिसे इसने पढ़ा क्योंकि उस वक्त वो उसी शहर में मौजूद थीं।
फिर जैसे तैसे दिन कटे रात रेलगाड़ी में बैठ दूसरे शहर आ गई।
धीरे धीरे जिंदगी चलने लगी पहले तो मांग जांच कर खाई , फिर छोटे मोटे काम करके गुजर बसर करने लगी।
धीरे धीरे जिंदगी ढर्रे पर चली ,तो उम्र सताने लगी।
वैसे भी कहते हैं जवानी बाद में आती है गिद्ध की नजर हम पर पहले पड़ जाती है।पर इससे भी वो घबराई नहीं और खुद के लिए खुद को ही ढाल बनाया।
फिर भी कहते हैं ना कि प्रेम का अंकुर कब कहां कैसे किसके लिए अंकुरित हो जाता है पता नही चला । वही यहां भी हुआ अंकुरित भी हुआ और खूब फला फूला भी पर टिक न सका लिहाजा उसे फिर अकेलेपन का मुंह देखना पड़ा।
और आज वो तमाम रिश्तों से ऊपर उठ के खुद के अस्तित्व से रिश्ता बनाया , खूब मेहनत करके पढ़ाई की फिर डाक्टर बन गरीबों का पहले तो मुफ्त इलाज किया फिर एक अस्पताल खोला , जिसमें सिर्फ गरीबों के मुफ्त इलाज की व्यवस्था की। ऐसा करके कुछ ही सालों में खूब नाम कमाया। तब तक उसकी उम्र अस्सी की हो गई। फिर एक दिन सुबह देर तक न उठी तो लोगों ने दरवाजा खटखटाया, जब अंदर से कोई आवाज़ न आई तो लोगों ने दरवाज़ा तोड़ दिया उसके बाद जो देखा देखकर सब की आंखें नम हो गई आंखें खुली थी पर शरीर शिथिल पड़ चुका था , लोगों को समझते देर न लगी कि आत्मा ने शरीर त्याग दिया है।
पर ऐसे में सभी के मुंह से निकला। आत्मा की तरह अपने सु कर्मो द्वारा वो अमर हो गई।
सच मृत्यु तो सभी को आती है पर अच्छी मृत्यु वो होती है तो अच्छे कर्मों से आती है।।
कंचन श्रीवास्तव आरजू