प्रेम – मधु झा

जाने लोग किसी को भूलना क्यों चाहते हैं,, आखिर ये भूलना शब्द है क्या,,इसका कोई वजूद भी है क्या,,हम इस शब्द को इतना तवज्जो क्यों देते हैं,,और क्यों भूलना किसी को जब कोई हमारे लिये बहुत अजीज़ है,,वो  हमें इतना प्यारा है कि हमारे ज़ेहन में उतर चुका है,,हमारी आत्मा में बस चुका है,,

हमें स्नेह है,, प्रेम है उससे,,

फिर उससे छूटने या उसे भूलने की बात क्यों,,,??

जब तक साथ हैं तो सब सही और दूर हुये तो भूल जाओ,,

ये क्या है,,यही प्रेम है क्या,, शायद नही,,और जब कोई रूह में जज्ब हो चुका है,,साँसों मे बस चुका है तो उसे खुद से अलग कैसे कर सकते हैं,,

अगर ये प्रेम इतना आसान होता तो पहले ही सोच-विचार कर न करता हर कोई ,,

मगर कहते हैं न कि प्रेम किया नही जाता हो जाता है,,

प्रेम अपने वश मे नहीं होता तो भूलने को क्यों अपने वश मे करना चाहते,,,बल्कि चाहते ही क्यों हैं भूलना,,??

दूर होने पर ये खुशनुमा यादें ही तो जीने का सहारा होती हैं,, तो हम खुद से ही खुद के जीने का सहारा क्यों छीन लेना चाहते,,

आख़िर क्यो,,??

जो शख़्स जो चेहरा ,जो बात हमारे लिए महत्व रखता है ,उसे भूलने की कोशिश भी क्यों करना भला,,!!

कविता के मन में तूफ़ान सा उठा था कौशल के इन शब्दों से कि अब भूल जाओ मुझे,,!!

दैहिक प्रेम करने वाला आत्मिक प्रेम क्या समझेगा,,।

ये तो तय था कि दोनों साथ नहीं हो सकते थे ,और इसका कोई गम न था कविता को,, क्योंकि कौशल से प्रेम के अलावा उसने कुछ चाहा ही नहीं,, कौशल के एक पल का भी साथ उसे स्वर्ग  के आनंद का एहसास कराता था,,,जिसे वो ताउम्र महसूस करना चाहती थी,,

कौशल के आने से कविता को ज़िन्दगी मिल गयी थी,,जीने का बहाना मिल गया था,,कविता अधूरी से पूरी हो गयी थी,,अब और कोई ख़्वाहिश न बची थी ज़िन्दगी में,,मगर ये क्या,,,,

कौशल के जाते ही कविता सोचने लगी- मैं भी कितनी नादान निकली,,

एक उम्र हो जाने के बाद भी दुनिया को पहचान न सकी,,

लोगों पर ऐतबार यूँ किया जैसे सब अपने ही हैं,।

दिल में कोई छल-कपट नहीं रखने वाली कविता सबको अपने जैसा ही समझती रही,,।

काश,,”मैने तुम पर ऐतबार न किया होता,,तुम्हें पहचानने में भूल न हुई होती।”

जाते हुये कौशल को देखकर कविता मन ही मन सोच रही थी ,,

ये तो पहले से ही तय था कि  साथ नही  रह सकते थे,,मगर फिर भी चाहती जरूर थी कि तुम भले मेरे पास न रहो मगर मेरे साथ उम्र भर रहो,,,,और यही सोचकर ईश्वर से दिन-रात प्रार्थना करती ,कि इस जनम में नही मिल सके तो क्या,, 

अगले जन्म में तुमको जरूर पाऊँ, तुम हमेशा हर जनम में अब मेरे साथ रहो,,मगर,,,




हर जनम की बात तो दूर,,तुम तो मुँह मोड़कर इसी जन्म में चले गये,,,,

ख़ैर जाने दो,,

मेरी किस्मत में तो एकाकीपन ही लिखा है,,मुझे अकेले ही उम्र काटना लिखा है,,,,

फ़िर भी मैं महसूस कर रही हूँ कि तुम्हारा साथ न होने पर भी  तुम मेरे पास ही हो,,, तुम मेरी आत्मा में जो बसे हुए हो,,तो बस,इतना काफ़ी है मेरे लिए अकेलेपन से जूझने के लिए,,

तुम्हारी यादों का साया हमेशा मेरे साथ रहेगा,,।

और साथ ही ईश्वर की भक्ति और उससे कुछ मांगने का अवसर भी जीवन में मुझे मिल रहा है और मैं इस अवसर को यूँ ही जाया नही होने दूँगी,,।

ईश्वर से मन लगाकर अपने लिए दिल से आराधना-प्रार्थना करूँगी, कि जो भी गलत,या बुरे कर्म मैने किये हों इस जीवन में ,उसका फल अभी इसी जीवन में मिल जाये जिससे अगले जन्म में मैं एक नयी ज़िन्दगी पाऊँ,,और एक बात कि फ़िर कभी मुझे तुम जैसों से सामना न हो,तुम जैसे लोग न मिले और ये प्रेम का दर्द न मिले,,मैं सारा प्रायश्चित ,सारा कर्मफल इसी जीवन में भोगकर मरना चाहती हूँ,,,,,।

और काफी देर बाद ख़यालों में डूबी कविता ने खुद को संभाला और ज़िन्दगी की एक नयी शुरुआत लिए तैयार हो गयी,,।

ये सोचते हुये कि,,,

दैहिक प्रेम ज़िन्दगी बिताने के लिए होता है,,!!

मगर आत्मिक प्रेम ज़िन्दगी जीने के लिए होता है,,!!

मधु झा,,

स्वरचित कहानी,,

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