सोन परी हूं मैं – डॉ. पारुल अग्रवाल

संध्या सुपर मार्केट में कुछ घर के लिए समान खरीद रही थी। अचानक से पीछे से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा। उसने चौंककर पीछे मुड़कर देखा तो उसे चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा। उसने कुछ सोचते हुए बोला आरती हो ना आप? आरती ने सिर हिलाते हुए हंसते हुए कहा जी मैडम, हमने तो आपको देखते ही पहचान लिया,पर आपको थोड़ा समय लग गया। उसकी बात सुनकर संध्या भी मुस्करा दी। दोनों स्कूल के समय की पक्की सहेलियां आज यूं टकरा जायेंगी ऐसा दोनों ने ही नहीं सोचा था। वैसे तो आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है पर वक्त के साथ परिवार की ज़िम्मेदारी निभाते निभाते कब एक दूसरे से दूर हो गई पता ही नहीं चला। अब दोनों ही खरीदारी भूलकर एक सामने पार्क था उसकी सीट पर बैठकर बात करने लगी। बातचीत में पता चला कि संध्या के बैंक मैनेजर है और उसका ट्रांसफर आरती के मोहल्ले वाली शाखा में ही हुआ है,

ये सुनकर आरती के मुंह से संध्या के लिए निकला कि दिन भर के काम के बाद भी वो कितनी तरो-ताज़ा दिख रही है लगता है कोई जादुई दुनिया की शक्ति या अलादीन का चिराग उसको मिल गया है। तुम्हें याद है स्कूल में हमारी टीचर ने सोन परी की कहानी सुनाई थी तुम बिल्कुल वैसी ही चमक रही हो। उसकी बात सुनकर संध्या खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली कि अगर उस जादुई दुनिया की शक्ति या चिराग के बारे में जानना है तो आरती, तुम्हें मेरे घर कल शनिवार है, मेरी छुट्टी भी है साथ खाने और समय बिताने के लिए आना होगा।पहले तो आरती ना नुकर करने लगी फिर किसी तरह आने के लिए तैयार हो गई। मिलने के लिए ये तय हुआ कि इस बार वो लोग बिना परिवार के अकेले ही मिलेंगे। अगले दिन आरती संध्या के घर समय से पहुंच गई।

थोड़ी देर अपनी पुरानी जिंदगी की बात के बाद आरती ने संध्या से उत्सुकता से उसकी जादुई दुनिया की शक्ति के विषय में पूछा। संध्या ने अपना खुद का ही फोटो आरती को दिखाते हुए कहा, ये है मेरी सोन परी, आरती आश्चर्य से बोली ये तो तुम्हारी तस्वीर है, ये तुम्हारी सोन परी कैसे हो सकती है। संध्या मुस्कराते हुए बोली, मेरी भोली सखी क्यों नहीं हो सकती? माना कि हम सभी बचपन में सिंड्रेला और अलादीन के चिराग की कहानी सुनकर बड़े हुए हैं पर हकीकत की दुनिया उससे अलग है, एक समय आता है जब हमें खुद अपने अंदर के जादू को पहचानना होता है।


अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए संध्या बोली पता है आज से 10 साल पहले मैं भी तुम्हारी तरह हताश और घर के काम बोझ से परेशान होकर अवसाद और निराशा में घिर गई थी। मेरे को ऐसा लगता था,कि मैं सिर्फ घर की चारदीवारी में कैद हो गई हूं, जबकि ऐसा नहीं था कि घर के सदस्य मेरे को परेशान करते थे या मेरे पर हावी रहते थे पर शादी के पहले की घर के हर काम को अपने कंधे पर लादकर करने की सीख और मेरे किसी भी काम को ना नहीं बोलने की आदत मेरे को अंदर ही अंदर तोड़ रही थी।

जब मैं अपनी उम्र से ज्यादा थकने लगी और चिड़चिड़ी सी रहने लगी,साथ-साथ मेरी वजह से घर का माहौल खराब होने लगा। तब एक दिन मेरी अंदर की आवाज़ ने मेरे से कहा कि ये मैं क्या कर रही हूं? इतने प्यारे बच्चे और परिवार के होने के बावजूद बस अपनी कमियों पर रोती रहती हूं। कितने ही लोग ऐसे होंगे जिनको ये सब नसीब भी नहीं होता। फिर मेरे पास तो सब कुछ है, बस ये बात मन में आते ही मैंने खुद से कहा अब अपनी सोन परी मुझे खुद बनना होगा। बस क्या था, जो काम मैं करना चाहती थी उसकी पढ़ाई की और उसकी प्रतियोगिता पास की। घर का भी एक टाइम टेबल बनाया। सब कुछ सही होता चला गया। आज मैं तेरे सामने इस रूप में खड़ी हूं।

आरती उसकी बातें ध्यान से सुन रही थी बोली कि तेरे परिवार में तो सबने तेरा सहयोग किया पर मेरे साथ परिस्थिति बिल्कुल अलग हैं, सबको समय पर मेरे हाथ का खाना चाहिए और अब पढ़ाई की भी उम्र निकल गई। उसकी बात सुनकर संध्या ने कहा बच्चे इतने बड़े तो हो चुके हैं, वो अपनेआप को संभाल सकते हैं। कोशिश करके देखने में क्या हर्ज़ है? पढ़ाई भी जरुरी नहीं, तू स्कूल के समय से कितना अच्छा डांस करती है, बस वो शुरू कर सकती है। आरती को बात कुछ कुछ समझ आने लगी, उसने संध्या को बोला की मैं शायद जिस चमत्कार और सोन परी की जादुई दुनिया और शक्ति के सपने देखती थी वो शायद तुम हो,जिसने मेरे को जीने का नया मंत्र दिया।

इस बात को दो महीने बीत चुके हैं,आज संध्या अपनी सखी आरती के डांस विद्यालय के उद्घाटन में जाने को तैयार हो रहीं है।

तो दोस्तों माना कि अब बचपन के तरह दादी की कहानी की परियां और हैरी पॉटर के चमत्कार छलावा लगते हैं पर हमारे अंदर की जादुई शक्ति ही हमारी सोन परी है जो हमारी क्षमता को पहचान असंभव को संभव कर दिखाती है।

डॉ. पारुल अग्रवाल

नोएडा

 

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