Thursday, June 8, 2023
Homeमुकेश पटेलगैरों में अपनों की परख - मुकेश पटेल

गैरों में अपनों की परख – मुकेश पटेल

बंसी लाल जी की इलाहाबाद में किराने की दुकान थी।  इसी किराने दुकान से घर भी चलता था और अपने इकलौते बेटे को पढ़ाकर सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना दिया था।  बेटा गुड़गांव में एक एमएनसी कंपनी में नौकरी करता है। 

 गर्मी की छुट्टी में बेटा और बहू दोनों इलाहाबाद आए हुए थे और उन्होंने अपने पापा और मम्मी से कहां पापा बहुत काम कर लिया आपने अब आपके आराम करने के दिन है अब यह दुकान आप बेच दीजिए और हमारे साथ चलिए मैं नहीं चाहता की पूरी जिंदगी आप काम करें आखिर  एक मां बाप अपने बेटे को इसीलिए लायक  बनाते हैं कि बुढ़ापे में चैन की जिंदगी जी सकें। 

 बंसीलाल को इलाहाबाद छोड़कर जाने का मन नहीं था लेकिन बेटे और अपनी पत्नी के जिद के आगे झुकना पड़ा और उन्होंने अपनी दुकान बेचकर बेटे के साथ गुड़गांव चले आए। 

बंसी लाल जी रोजाना सुबह-शाम सोसाइटी के बगल में ही एक बड़ा सा पार्क था वहां घूमने के लिए जाते थे। वे दो-तीन दिनों से नोटिस कर रहे थे।  रोजाना एक उन्ही के उम्र का बुजुर्ग  पार्क  के बेंच पर अकेले बैठा रहता है।  और चेहरे पर भी उदासी छाई होती है। बंसी लाल जी उस बुजुर्ग के पास बैठ गए और उन्होंने पूछा।  क्या नाम है आपका कहां रहते हैं मैं कई दिनों से आपको नोटिस कर रहा हूं कि आप यहां अकेले चुपचाप बेंच पर बैठे रहते हैं। 

इसे भी पढे :अनमोल रत्न

 बुजुर्ग ने बंसी लाल जी को बताया कि 2 दिन पहले ही अपने बेटे के पास कानपुर से आया हूं मेरा बेटा भी इसी सोसाइटी में रहता है वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। बातों बातों में बुजुर्ग ने अपना नाम श्याम प्रसाद बताया और वह मिलिट्री में नौकरी करते थे इस वजह से उन  दोनों की उम्र बराबर थी लेकिन देखने में वह उनसे 10 साल छोटे लगते थे। दरअसल बात यह था कि श्याम प्रसाद जी जींस टीशर्ट पहनते थे बाल हमेशा डाई किया हुआ  रखते थे और वही बंसी लाल जी धोती कुर्ता पहनते थे और बाल बिल्कुल ही सफेद हो गए थे। धीरे-धीरे उन दोनों में काफी अच्छी गहरी दोस्ती हो गई अब दोनों मिलकर अपने बेटे बहुओं की भी बातें आपस में करते थे।  



घर आने के बाद बंसी लाल जी ने अपना चेहरा आईने में देखा तो सचमुच वह बहुत ज्यादा ही बुजुर्ग लग रहे थे ऐसा लग रहा था कि वह 70-75 साल के बुजुर्ग हैं जबकि उनकी उम्र सिर्फ 61 साल ही हो रही थी।  उनको लगा कि कहीं मेरे बाल सफेद दिख रहे हैं इस वजह से मैं ज्यादा बुजुर्ग लग रहा हूं।  बंसी लाल जी ने अपने बेटे से कह कर  हेयर कलर मंगवाया।  अपनी पत्नी के हाथों से उन्होंने अपने सफेद बाल को काला करा लिया।  इसके बाद जब उन्होंने अपने आपको आईने में देखा तो लगा अभी तो मैं बिल्कुल जवान लग रहा हूं। 

 शाम को जब पार्क जाने लगे तो उन्होंने अपने बेटे से कहा, “बेटा क्या मैं तुम्हारा टीशर्ट पहन सकता हूं।”  बेटा ने कहा, “क्या! पापा आप कैसी बात कर रहे हैं आपकी उम्र अब टी-शर्ट पहनने की है लोग क्या कहेंगे सब मजाक उड़ाएंगे मेरा, आप में धोती कुर्ता ही अच्छा लगता है तभी बंसी लाल जी की बहू बोली हां पापा जी टी शर्ट पहन ने के बाद ऐसा लगेगा जैसे बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम। 

इसे भी पढे: मेरा जीवन कोरा कागज था कोरा ही रह गया

बंसी लाल जी को बहुत बुरा लगा कि वह अब अपने मन का कपड़ा भी नहीं पहन सकते हैं।  शुरू के कुछ दिन तो  बेटे के घर बहुत अच्छा लगा।  लेकिन उसके बाद बात बात में बेटे और बहू टोका करते थे। बंसी लाल जी तो यही सोच रहे थे कि लगता है  अपनी दुकान बेचकर यहां हमेशा के लिए आने का फैसला गलत था।  मुझे अपना दुकान नहीं बेचना चाहिए था सिर्फ कुछ दिनों के लिए दुकान बंद करके बेटे बहू के यहां घूमने आ जाना चाहिए था। 

 लेकिन अब वह क्या कर सकते थे अब वापस इलाहाबाद जा कर भी क्या करेंगे।  क्योंकि एक घर था वह भी बेटे ने पिछले महीने बेच दिया था।  यह कह कर कि अब  जब वहां रहना ही नहीं है तो वहां घर रह कर क्या करेगा उस पैसे से यहां अगर हम प्रॉपर्टी खरीदेंगे उससे ज्यादा मुनाफा में रहेंगे। 



 1 दिन पार्क में बैठकर बंसी लाल जी और श्याम प्रसाद आपस में बातें कर रहे थे बंसी लाल जी कह रहे थे । आजकल जमाना कितना स्वार्थी हो गया है माता पिता अपने बच्चों को कितने प्यार से पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाते हैं यह सोच कर कि बेटा बड़ा होकर उनका सहारा बनेगा लेकिन आजकल के बेटे सहारा तो नहीं बनते बल्कि मां बाप को और कष्ट में डाल देते हैं।  मां बाप भी बच्चों के प्यार में समझ नहीं पाते हैं।  वह श्याम प्रसाद जी से कह रहे थे कि उनकी अच्छी भली किराने की दुकान थी।  दुकान में उनका दिन कैसे बीत जाता था पता भी नहीं चलता था यहां आकर तो ऐसा लग रहा है जैसे कैद खाने में कैद हो गए हैं।  कुछ भी करने से पहले बेटा बहू की इजाजत लीजिये । 

इसे भी पढे:मैं इस घर की बहू हूँ नौकरानी नहीं

 श्याम प्रसाद जी बोले भाई बंसीलाल इस मामले में मैं बहुत लकी हूं मेरे तीन बेटे हैं और तीनों मुझे अपनी जान से ज्यादा प्यार करते हैं। कोई भी काम करने से पहले मुझसे सलाह जरूर लेते हैं भगवान करे सब को मेरे बेटे जैसे बेटा दे मैं तो अपने आप को बहुत लकी मानता हूं कि मुझे ऐसे  बेटे मिले। 

 बंसी लाल जी सोच रहे थे काश मेरा बेटा भी श्याम प्रसाद जी के बेटे जैसा होता।  उसने मेरा घर बेच दिया लेकिन पूछा तक नहीं बेचने के बाद बताया कि उसने इलाहाबाद का घर बेच  दिया है और एक श्याम प्रसाद जी के बेटे हैं जो हर काम करने से पहले अपने पिताजी से पूछते हैं। 

बंसी लाल  जी रोजाना  श्याम प्रसाद जी से अपने बेटे बहू की  शिकायत करते थे लेकिन  श्याम प्रसाद जी गलती से भी अपने बेटों को शिकायत नहीं करते थे बल्कि वह बंसी लाल जी को समझाते थे कि बंसी लाल  जी अब हमारी उम्र हो गई है हमारी और उनके सोच में जमीन आसमान का अंतर हो गया है।  घर में शांति से रहना है तो सही रास्ता यही है कि बेटों के हां में हां मिलाया जाए। 



बंसी लाल जी को पार्क  जाते हुए 3 दिन हो गए लेकिन श्याम प्रसाद जी अब पार्क नहीं आ रहे थे।  बंसी लाल जी बड़ा परेशान रहने लगे कि श्याम प्रसाद जी अब आजकल पार्क क्यों नहीं आ रहे हैं।  बंसी लाल जी ने सोचा कि आज घर जाकर अपने बेटे से कहूंगा कि जरा श्याम प्रसाद जी को फोन लगा कर पूछूं तो आजकल पार्क क्यों नहीं आ रहे हैं तबीयत ठीक नहीं है क्या उनकी। 

बंसी लाल जी शाम को जैसे ही घर पहुंचे उनके बेटे के नंबर पर एक फोन आया और उधर से एक औरत ने उनके बेटे से कहा कि मुझे बंसी लाल जी से बात करनी है।  बेटे ने फोन बंसी लाल जी को दिया और कहां उधर से कोई महिला है जो आपसे बात करना चाहती है।  महिला ने बंसी लाल जी को बताया कि आपके दोस्त श्याम प्रसाद जी का निधन हो गया है उनके कमरे से एक आपका ही फोन नंबर मिला है आप तुरंत ही “बसेरा वृद्धाश्रम” आ जाइए।  बंसी लाल जी को तो  कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि महिला क्या कह रही है और फोन कट गया।  उन्होने  अपने बेटे से फोन पर हुई  बात बताई  और बसेरा वृद्धाश्रम जाने के लिए कहा। 

बंसी लाल जी  अपने बेटे के साथ बसेरा वृद्धाश्रम पहुंच चुके  थे ।  वहां गए  तो देखा श्याम प्रसाद जी की लाश पड़ी हुई है और उनको देखकर उनके  आंखों से आंसू आने लगे ऐसा लगा कोई अपना इस दुनिया से चला गया। 

बंसी लाल जी ने जब वृद्धाश्रम  के मैनेजर से कहा कि श्याम प्रसाद जी तो अपने बेटे के  घर रहा करते थे ना तो फिर यहां कैसे पहुंच गए।  वृद्धा आश्रम के मैनेजर ने बताया कि नहीं तो  श्याम प्रसाद जी पिछले 2 सालों से इसी बसेरा वृद्धाश्रम में रहते हैं उनके तीन बेटे और बहुओं ने उनका सब कुछ धोखे से लेकर उनको घर से निकाल कर यहां पहुंचा दिया था हर महीने उनके बेटे यहां का खर्चा भेज दिया करते हैं।  हमने जब उनको फोन किया तो उन्होंने कहा कि आप लोग उनकी अंतिम क्रिया कर दो जो भी खर्चा लगेगा हम आपके अकाउंट में ट्रांसफर कर देंगे। मैनेजर ने बताया कि इनको हार्ट की बीमारी थी पहले भी एक बार अटैक आ चुका था कल रात को अचानक से इनको सीने में दर्द हुआ और अभी हम हॉस्पिटल ले जाने को सोच ही रहे थे तभी इनके प्राण पखेरू उड़ गए। 

 वृद्धाश्रम के मैनेजर ने  बंसी लाल जी को एक लेटर दिया और कहा कि यह लेटर श्याम प्रसाद जी ने दो-तीन दिन पहले ही हमें दिया था और कहा था कि जब मैं मर जाऊं तो यह लेटर आपको दिया जाए। 

 बंसीलाल ने जैसे ही लेटर खोला उसमें लिखा हुआ था। 

 “मेरे प्रिय दोस्त बंसीलाल



 यह लेटर पढ़ते हुए आश्चर्य मत करना मैंने बहुत कोशिश की कि तुमको अपना सच बता दूँ  क्योंकि इस बुढ़ापे में तुम ही एक मेरे सच्चे मित्र थे लेकिन मैं जब देखता था कि तुम खुद अपने बेटे बहू से परेशान हो रोजाना अपना ही दुखड़ा मुझसे सुनाते थे तो मेरी हिम्मत नहीं होती थी कि तुम्हें मैं अपना दुख बताऊं।  तुम जब अपने बेटे की बुराई मुझसे करते थे तो मैं भगवान से तुम्हारे लिए दुआ करता था और सोचता था कि तुम जैसे भी हो मेरे से बहुत किस्मत वाले हो तुम्हारा बेटा  फिर भी अच्छा  हैं कम से कम तुम्हें अपने घर में तो रखा है घर बेचने के बाद अपने घर में आसरा तो दिया है वृद्धाश्रम तो नहीं पहुंचा दिया है।  मैं सोचता था कि मेरे भाग्य में सुख तो लिखा ही नहीं मैं पूरी जिंदगी मेहनत कर कर पाई पाई जोड़ कर करोड़ो रुपये  कमाए और आखिर में बेटों ने क्या किया मुझे वृद्धाश्रम  पहुंचा दिया मैं तो तुम्हें जानबूझकर अपने बेटे बहू का बड़ाई  करता था।  मैं अपना दुख शेयर कर कर तुम्हें और दुखी नहीं करना चाहता था।  मुझे माफ कर देना मेरे दोस्त।   मुझे अंदर से ऐसा लग रहा है कि मैं बहुत ज्यादा दिन नहीं जीने वाला हूं इसीलिए मैंने यह लेटर लिखकर मैनेजर साहब को दे दिया है कि मैं अगर मर जाऊं तो मेरे बेटे बहू को मेरे मरने की कोई खबर नहीं करेगा।  बल्कि मैं चाहता हूं कि मेरा क्रिया कर्म  मेरे दोस्त तुम करो तुममे  मैं अपना भाई देखता हूं। 

इसे भी पढे: काश हमने सारे पैसे अपने बेटे बहू को नहीं दिए होते

 पत्र पढ़ने के बाद बंसी लाल जी वही कुर्सी पर बैठ गए और खूब रोए आंखों से आंसू झर झर बहने लगा।  सब लोगों ने कहा कि उनके बेटे और बहू को बता देना चाहिए क्योंकि इंसान को मोक्ष की प्राप्ति तभी होती है जब उसका खून उनकी शरीर को अग्नि दे।  मैंने सब को मना कर दिया कोई इनके बेटे बहू को नहीं कहेगा मैं अपने दोस्त को अग्नि दूंगा।  जिन्होंने जीते जी अपने बाप को बाप नहीं समझा वैसे नालायक बेटे को क्या फोन करना। 

 साथ में ही खड़ा बंसी लाल जी का बेटा अपने पापा से बोला पापा अगर आप आपको बुरा ना लगे तो मैं अंकल को अग्नि दे सकता हूं। 

 कुछ ही देर में बसेरा  आश्रम के द्वारा ही श्याम प्रसाद जी को विधि पूर्वक अंतिम संस्कार कर दिया गया था। 

 दोस्तों हमारा समाज पता नहीं कहां जा रहा है हमने बहुत तरक्की कर ली है हम चांद और मंगल पर जाने की बात कर रहे हैं लेकिन ऐसे तरक्की का क्या फायदा जब हम अपने मां बाप के दिल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं उनकी भावनाओं को नहीं समझ पा रहे हैं। 

मुकेश पटेल

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

error: Content is Copyright protected !!