मनहूस माँ

रंजना का पूरा परिवार सेना में नौकरी करता था।  रंजना जब जवान हुई उसके लिए भी सेना में नौकरी करने वाले लड़का देखा जाने लगा।  लेकिन रंजना की मां नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी की शादी   सेना में नौकरी करने वाले लड़के से हो। लेकिन पिता की इच्छा के आगे रंजना की मां की एक न चली और कुछ ही दिन  में सेना में नौकरी करने वाले एक लड़के  से रंजना की शादी हो गई। 

शादी के 5 महीने बाद जब घर में सबको पता चला कि रंजना मां बनने वाली है घर में खुशियों का माहौल हो गया। घर में सभी खुश थे।  तभी एक फोन कॉल ने घर की खुशी को मातम में बदल दिया। रंजना के पति रवि का पोस्टिंग बांग्लादेश बॉर्डर पर था और वहां पर नक्सलवादियों के साथ मुठभेड़ में रवि शहीद हो गया था। फोन रवि के रेजिमेंट की तरफ से आया था कि कल रवि की लाश को  उसके गांव लाया जा रहा है। 
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जब रवि  जिंदा था रंजना उस घर की लाडली बहू हो गई थी घर में सब उसे बहुत प्यार करते थे चाहे उसकी जेठानी हो या उसकी सासू मां ननंद तो उसे अपनी बड़ी बहन की तरह मानती थी और जेठानी अपनी छोटी बहन की तरह। 

 लेकिन रवि की मौत के बाद सब को लगा रवि का मौत का कारण रंजना ही है।  बिना कारण से उसे मनहूस मान लिया गया। रवि की तेरहवीं  के बाद रंजना के मायके वाले रंजना को अपने साथ ले जाना चाहते थे लेकिन रंजना ने साथ  जाने से मना कर दिया वह अपने रवि  की निशानी को अपने ससुराल में ही जन्म देना चाहती थी। 



 रंजना के ससुराल में रंजना अब सिर्फ एक नौकरानी रह गई थी उससे ज्यादा कुछ नहीं किसी को भी रंजना की फिक्र नहीं थी। वो  भगवान से यही प्रार्थना करती थी कि उसको बेटी नहीं बेटा दे इसलिए नहीं कि बेटी से  उसे प्यार नहीं था बल्कि इसलिए कि उसे पता था कि जब उसका इस  घर में कद्र नहीं है उसकी बेटी की कद्र क्या होगी अगर बेटा पैदा होगा तो शायद अपने  रवि  की निशानी समझ कर उसको प्यार मिल जाएगा। 
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 रंजना के ससुर के  अलावा उसके ससुराल में अब कोई ऐसा नहीं था जिसे रंजना अपना कह सके।  धीरे धीरे समय बिता  और रंजना ने एक सुंदर से बेटे को जन्म दिया। 

रंजना हॉस्पिटल से जैसे ही घर आई उसकी बड़ी जेठानी ने जिसकी सिर्फ 3 बेटियां थी रंजना के बेटे को छीन कर अपने पास रख लिया यह कह कर कि अपने पति को तो खा ही गई अब अपने बेटे को भी खा जाएगी । . अब यह इस खानदान का अकेला वारिस है. मैं इस पर तुम्हारी मनहूस छाया नहीं पड़ने दूंगी.’। उसकी सास ने भी उसकी जेठानी की हां में हां मिलाया और उस दिन के बाद से उसका बेटा जेठानी के पास रहकर पलने लगा। 

 रंजना चाहती तो अपने बेटे को उन लोगों से छीन सकती थी लेकिन  उसे लगा कि उसके बेटे की भलाई इसी में है कि वह उन्हीं के पास रहे वह अपने बच्चों को क्या दे सकती है उसके पास क्या है उनके पास रहेगा तो अच्छा खाएगा पिएगा कपड़ा पहनेगा।  लेकिन यह भूल गई थी कि धीरे-धीरे वो लोग उसके बेटे से उसको दूर कर देंगे। 



एक दिन रंजना  की सास कह रही थी  थीं कि चलो अच्छा हुआ, जो बेटा हुआ, मैं तो डर रही थी कि कहीं यह मनहूस बेटी को जन्म दे कर खानदान का नामोनिशान न मिटा डाले.
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रंजना की जेठानी उसके बेटे को उसके पास फटकने तक नहीं देती थी कई बार वह अपनी जेठानी से कहती थी दीदी मेरी छाती से दूध टपक रहा है पी लेने दीजिए मेरे बेटे को लेकिन वो लोग  तब भी नहीं मानते थे उसके बेटे को गाय का दूध पिलाते थे लेकिन रंजना का दूध नहीं पीने दे देते।  यह सोच कर  रंजना को बहुत दुख होता कि अपना वजूद बेकार लगता कि मैं अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिला सकती.

कभी कभी रंजना सोच के अथाह सागर में डूब जाती. हां, मैं सच में मनहूस हूं. तभी तो संतान कोख में आते ही पति शहीद हो गए। बेटा हुआ तो वह भी अपना नहीं रहा. ऐसे में वह मन के दर्द से कराह उठती थी। 

समय अपनी पंख लगाकर उड़ता रहा।  उसका बेटा नीतीश उसकी जेठानी और सास के गोद में पलता रहा, उसका बेटा नीतीश पास रहते हुए भी दूर हो हो गया था  उसका मन करता अपने बेटे से जी भर कर बातें करतीं लेकिन ऐसा संभव नहीं था  वह मां हो कर दरवाजे की ओट से चुपचाप, अपलक बेटे का मुखड़ा निहारती रहती. छोटेछोटे सपनों के टूटने की चुभन मन को पीड़ा से तारतार कर देती. एक विवशता का एहसास रंजना  के वजूद को हिला कर रख देता.



बेटे की चाह में उसकी जेठानी को तीन बेटियां हो गई थी इसीलिए उसकी जेठानी उसके बेटे को अपना बेटा बना कर पाल रही थी। अब नितीश  ही सब की आशाओं का केंद्र था. 

रंजना के जेठ जी सरकारी नौकरी करते थे इसीलिए उसके बेटे नीतीश को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे थे उन्होंने भी नीतीश को अपना बेटा मान लिया था। 

रंजना के ससुराल वाले ने उसके बेटे नीतीश के मन में रंजना के प्रति इतना जहर घोल दिया था कि अब धीरे-धीरे बड़ा तो हो रहा था लेकिन अपनी मां से भी धीरे-धीरे दूर होते जा रहा था वो  भूल गया था कि रंजना उसकी जन्म देने वाली मां है।  वह अपनी मां को अपने पिता की हत्यारिन समझता था। 
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नीतीश जब बड़ा हुआ तो  उसकी नौकरी एक सरकारी बैंक में लग गई। बेटे की सरकारी नौकरी लगने से घर में सब खुश थे रंजना भी खुश थी कि चलो उसका बेटा  सरकारी नौकरी करने लगा है।  अपने बेटे को दूर से निहार कर खूब आशीर्वाद दे रही थी कि वो जीवन में खूब तरक्की करें।  नौकरी की खबर सुनने के बाद नीतीश ने सबका पैर  छूकर प्रणाम किया लेकिन वह अपनी मां के पास आया तक नहीं रंजना को यह बात बुरा तो जरूर लगा लेकिन वो क्या कर सकती थी उसके बेटे का कोई दोष नहीं था उसकी जेठानी ने उसके मन मे इतना जहर घोल दिया था यह जहर  निकालना इतना आसान नहीं था। 



 नौकरी ज्वाइन करने के पहले दिन नितीश जब घर से जाने लगा तो ना जाने उसके मन में क्या ख्याल आया कि वह अपनी मां के पास आया और मां का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। 

‘सुखी रहो, खुश रहो बेटा,’ रंजना ने कांपते स्वर में कहा था. बेटे के सिर पर हाथ फेरने की नाकाम कोशिश करते हुए उस ने मुट्ठी भींच ली थी. तभी उसकी जेठानी  की पुकार ‘जल्दी करो नितीश , ट्रेन  निकल जाएगी,’ सुन कर नितीश  कमरे से बाहर निकल गया था.

समय अपनी पंख लगा कर उड़ रहा था. उसके बेटे नीतीश की भी शादी हो चुकी थी। उसकी पत्नी शांति  एक सुलझे विचारों वाली लड़की थी. ससुराल आने के 2-3 दिन में ही उसे महसूस हो गया कि उस की विधवा सास अपने ही घर में उपेक्षित जीवन जी रही हैं. घर में जेठानी का राज चलता है. और उस की सास एक मूकदर्शक की तरह सबकुछ देखती रहती हैं.

उसे लगा कि उस का पति भी अपनी मां के साथ सहज व्यवहार नहीं करता. मां बेटे के बीच एक दूरी है, जो नहीं होनी चाहिए. एक शाम वह चाय ले कर सास के कमरे में गई तो देखा, वह बिस्तर पर बैठी न जाने किन खयालों में गुम थीं.

मम्मी जी , चाय पी लीजिए,’ शांति ने कहा तो रंजना  चौंक पड़ी.

‘आओ, बहू, यहां बैठो मेरे पास,’ बहू को स्नेह से अपने पास बिठा कर रंजना  ने पलंग के नीचे रखा संदूक खोला. लाल मखमल के डब्बे से एक जड़ाऊ हार निकाल कर बहू के हाथ में देते हुए बोली, ‘यह हार मेरे पिता ने मुझे दिया था. मुंह दिखाई के दिन नहीं दे पाई. आज रख लो बेटी.’

शांति  ने सास के हाथ से हार ले कर गले में पहनना चाहा. तभी जेठानि कमरे में चली आईं. बहू के हाथ से हार ले कर उसे वापस डब्बे में रखते हुए बोलीं, ‘तुम्हारी मत मारी गई है क्या रंजना ? जिस हार को साल भर भी तुम पहन नहीं पाईं, उसे बहू को दे रही हो? इसे क्या गहनों की कमी है?’

शांति जड़वत बैठी रह गई, पर शांति  से रहा नहीं गया. उस ने टोकते हुए कहा, ‘बड़ी माँ , मम्मी जी ने कितने प्यार से मुझे यह हार दिया है. मैं इसे जरूर पहनूंगी.’

सामने रखे डब्बे से हार निकाल कर शांति  ने पहन लिया और सास के पांव छूते हुए बोली, ‘मैं कैसी लग रही  हूं, मम्मी जी ?’

रंजना ने अपनी बहू को खूब आशीर्वाद दिया और कहा बहू सदा सुहागन रहो। अपने प्रति बहू का इतना प्यार देखकर रंजना भाव विभोर उठी थी उसे अंदाजा भी नहीं था कि उसकी बहू इतनी अच्छी आएगी जो प्यार उसका बेटा नहीं दे पाया उसकी बहुत देने लगी थी।  रंजना को आज तक हिम्मत नहीं हुई अपनी जेठानी के सामने सिर उठाकर बात करने की लेकिन बहु ने हिम्मत कर  अपनी सास का पक्ष लिया। 

शांति ने अब अपने मन में ठान लिया था कि आज तक जो उसके सासू मां पर अन्याय हुआ है वह अपने सासू मां को इतना प्यार और आदर देगी कि उनका दामन  जो बरसों से प्यार और आदर पाने के लिए खाली था भर जाएगा।  मैं बहु तो हूं ही लेकिन बेटी बनकर दिखाऊंगी और अपनी सासू मां को  उनका बेटा उन्हें वापस दिलाउंगी। 

नौकरी के 3 साल बाद नीतीश  का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया वह अब  अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए उस  शहर में किराए का घर ले लिया था अब क्योंकि रोजाना 50 किलोमीटर की दूरी तय कर  नौकरी कर पाना संभव नहीं था। 



जाने से पहले  शांति ने अपने पति नीतीश से कहा, ‘मम्मी जी  भी हमारे साथ चलेंगी.’ पहले तो नीतीश ने कहा कि माँ  वहां जाकर क्या करेंगी।  शांति ने कहा, क्या करेंगी का क्या मतलब है मां है तुम्हारी फिर साथ में रहेंगे तो मेरा भी मन लग जाएगा आखिर यहां भी रहकर अकेली क्या करेंगी। 

 जब यह बात रंजना की जेठानी को पता चला कि रंजना अपने बेटे और बहू के साथ जाने वाली है।  तो नीतीश की पत्नी शांति से बोली, “अभी तुम्हारे खेलनेखाने के दिन हैं, बहू. रंजना की  चिंता छोड़ो. वो  यहीं ठीक हैं. बाद में कभी रंजना  को ले जाना,’। .

‘बड़ी माँ , मैं वहां अकेले रह कर क्या करूंगी साथ में रहेंगी तो मेरा भी मन लग जाएगा। 

आखिर शांति के आगे  रंजना की जेठानी  की एक न चली और रंजना बेटेबहू के साथ इटावा  आ गई थी.

जिस बेटे को बचपन से अपनी आंखों से दूर पाया था, उसे हर पल नजरों के सामने पा कर रंजना  की ममता उद्वेलित हो उठती, पर मांबेटे के बीच बात नाममात्र को होती.

शांति मांबेटे के बीच फैली लंबी दूरी को कम करने का भरपूर प्रयास कर रही थी. एक सुबह नाश्ते की मेज पर अपनी मनपसंद कढ़ी-चावल देख कर नितीश  खुश हो गया., ‘सच, तुम्हारे हाथों में तो जादू है, शांति .’

‘यह जादू मां के हाथों का है. उन्होंने बड़े प्यार से आप के लिए बनाई है. जानते हैं, मैं तो मां के गुणों की कायल हो गई हूं. जितना शांत स्वभाव, उतने ही अच्छे विचार. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे अपने ससुराल में नहीं बल्कि अपने मायके में ही हूं। 

धीरेधीरे नितीश  का मौन टूटने लगा  अब वह यदाकदा मां और पत्नी के साथ बातचीत में भी शामिल होने लगा था. रंजना  को लगने लगा कि जैसे उस की दुनिया वापस उस की मुट्ठी में लौटने लगी है.

 

अबनितीश  खुल कर मां के बनाए खाने की प्रशंसा करता. कभीकभी मनुहारपूर्वक कोई पकवान बनाने की जिद भी कर बैठता, तो रंजना  की आंखें शांति  को स्नेह से निहार, बरस पड़तीं. कौन से पुण्य किए थे जो ऐसी बेटी जैसी  बहू मिली. अगर इस ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो गांव के उसी अकेले कमरे में बेहद कष्टमय बुढ़ापा गुजारने पर मैं विवश हो जाती.

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