स्त्री वही अच्छी जो मान मर्यादा का ख्याल रखें और दोनों कुल की लाज काकी ने रेखा की तरफ इशारा करके बगल वाली बुआ से कहा , अब देखो न इसे आई थी तो लोग कितना भला बुरा कहते थे पर ये एक जवाब किसी को न देती बल्कि बुराई सुनते हुए भी बगल से निकल जाती।
अब उसकी भी क्या गलती, चलन ही ऐसा चला हुआ है न जात पात देखें कोई न विराजती,और न ऊंच नीच घर परिवार ,दिल जेसे लग गवा वहीं के साथ जिंदगी बितावे के फैसला कर लेते हैं आज कल के लड़की लड़का ।
और तो और रहन सहन खान पान सब तो अपने मन के है ,नौकरी पेशा जो दोनों ठहरे। तभी तो कोई कुछ कह भी नहीं सकत।
अरे याद है ना जब बिआह के आई रही तवे मांग में सिंदूर और बांह भर चूड़ी देखे रहे।
हां काकी उसके बाद कहा देखें साड़ी में सजे धजे।
कभी कुर्ती तो कभी की सर्ट वो भी बिना दुपट्टा के पर्स लटकाई और चस्मा लगा स्कूटी स्टार्ट कर चल दी नौकरी करने।
जिसे देख भाई भाभी का खून खौल जाता था।
पर क्या करें कहते हे ना कि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी।
बस वही हुआ जब लड़का ही नहीं समझ रहा तो बहू को क्या बोलना।
इसीलिए खून का घूंट पीकर रह जाते थे फिर धीरे धीरे आदत बन गई।
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा दो बच्चे भी हो गए
अब देखिए ना दोनों के परवरिश की जिम्मेदारी भी यही लोग उठा रहे।
वो दोनों तो दिन भर के लिए निकल जाते हैं देखती तो यही है पर एक बात है चेहरे पर एक सिकन तक नहीं दिखती।
और न कभी उनकी शिकायत ही करें।
जब भी पूछो क्या हाल है तो हंस कर ठीक है बच्चों में बिजी रहते हैं कहती हैं।
अब कहते हैं ना कि बढ़ती उम्र के साथ चार बीमारियां भी साथ लग जाती है।उस दिन जैसे ही दोनों आफिस जाने को तैयार हुए अचानक भाई के सीने में दर्द हुआ और पसीना पसीना हो गए।
फिर क्या बेटे की तो मीटिंग थी इसलिए कुछ देर रह कर चला गया ।
पर बहू ने छुट्टी ले ली।
अरे छुट्टी ही नहीं ली बल्कि दौड़ धूप करके डाक्टर और टेस्ट करने वाले को भी बुलाया।
और जब उन्होंने कहा कि भर्ती करना पड़ेगा।
तो मेरे सामने ही मैंने देखा झट कपड़ा पहन स्कूटी उठाई और अस्पताल का सारा काम वही पर रमेश को भी बुला कर किया।
और जब कमरा मिल गया तो एम्बुलेंस में लेकर गए।
हम देख रहे हैं कि तब से अब तक वो घर पर ही है एक दिन ऐसे ही पूछ लिया कि आजकल नौकरी पर नहीं जा रही तो बोली ,बुआ जी घर से ही लैपटॉप पर थोड़ा बहुत काम कर लेते हैं पापा की तबियत ठीक नहीं है इसलिए छुट्टी ली हूं।
सच बताऊं काकी ये
सुन तो मुझे बहुत अच्छा लगा , आज ऐसा महसूस हुआ कि पहले की बात और थी औरतें घर पर रहती थी अब बाहर निकल रही है चार काम कर रही कहां सिंदूर चूड़ी बिंदी लगाकर बैठे अगर ऐसा करें तो कहा निभ पाएंगी समय ही कहां रहता है इनके पास ।
ये सब तो सच पूछो दिखावा है मान सम्मान और इज्ज़त तो दिल से होना चाहिए।
फिर सिंदूर और चूड़ी पहने या न पहने क्या फर्क पड़ता है। कपड़ा और श्रंगार वहां मायने नहीं रखता जहां पूरी मन से जब बहुएं अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए दोनों कुल की राज रखती है।देखो न जो लोग कल बुराई कर रहे थे आज तारीफ करते नहीं थक रहे।
वैसे एक बात और है बिना जाने किसी के बारे में भ्रम नहीं पालना चाहिए। क्योंकि दूर करने में बहुत वक्त लगता है और जब दूर होता है तो बहुत देर हो चुकी होती है।कहते हुए बुआ अपने कमरे में चली गईं और काकी खुद को बदलने की सोचने लगी।
स्वरचित
कंचन श्रीवास्तव