सुहाना सफ़र  – पूनम सारस्वत : Moral Stories in Hindi

हर सोमवार की तरह आज भी मैं निकला था सफर पर उसी जानी पहचानी रास्ते पर जिस पर चलते हुए अब लगभग साल भर हो चुका है।

बस अभी दस मिनट में चलेगी, क्योंकि सवारी आए या नहीं आए इसे नियत समय पर निकलना होता है।

सही है समय का बंधन भी कितना जरूरी है, अन्यथा तो कोई काम सुचारू रूप से हो ही नहीं, एक अफरातफरी सी मची रहेगी अन्यथा।

सिर उठाकर दरवाजे से बाहर की तरफ झांका कि क्या और भी सवारी आ रही हैं क्या?

तभी देखा 

काली जैकेट,काली लैगिंग्स,काला चश्मा जो आंखों पर नहीं सिर पर लगा था और काले ही लैदर शूज,अलग ही कयामत ढाती सी वह चल आ रही थी, बस की तरफ और उसकी चाल का आत्मविश्वास बता रहा था कि वह यात्रा करने की अभ्यस्त है,तभी तो खड़ी बस को देखकर  उसने कोई हड़बड़ाहट नहीं दिखाई थी चढ़ते समय।

कंडक्टर सीट के बराबर में बैठा मैं न जाने क्यों उससे नजरें हटा ही नहीं पा रहा था।

उसके हाथ में एक खूबसूरत हैंडबैग और एक छोटा सा ट्राली बैग भी था।

उसने कंडक्टर सीट के पीछे की सीट पर बैठते हुए ट्रोली बैग सीट के नीचे खिसका दिया और आराम से बैठकर बाहर की तरफ देखने लगी।

बस की तरफ़ बढ़ती हुई वह लग रही थी कि क़ोई कॉलेज गोइंग गर्ल है जो अभी अभी ही टीनएज को टाटा बाय बाय करके आई होगी।

लेकिन पास आने पर देखा कि वह छरहरी काया पच्चीस छब्बीस की तो रही होगी। 

न जाने क्यों मैं उसकी तरफ आकर्षित हुआ जा रहा था । दरअसल उसकी तरफ इतनी देर तक मुझे ध्यान से देखना ही नहीं चाहिए था यह किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था,पर मेरी दृष्टि रह रहकर उधर ही चली जा रही थी । ये हो क्या गया था मुझे??

ऐसा भी नहीं था कि वह बला की खूबसूरत थी लेकिन उसका आत्मविश्वास,उसका यूं अकेले निर्भीकता से बस में चढ़ना,उसका आसपास से निर्लिप्त भाव ऐसा सम्मोहन पैदा कर रहा था कि मैं अपनी जबरजस्ती ओढ़ी हुई प्रौढ़ता और गंभीरता को भूलता जा रहा था ।

यूं तो मैं एक प्रोफेसर हूं तो एक से एक फैशनपरस्त लड़कियों को देखता ही रहता हूं पर ऐसा भाव कभी नहीं हुआ।

बस धीरे धीरे गंतव्य की तरफ बढ़ने लगी और मैं न जाने क्यों उससे बातें करने को आतुर था लेकिन कोई ऐसा सूत्र नहीं मिल रहा था कि बातचीत शुरू भी हो जाए और उसे ये एहसास भी न हो कि मैं उससे जानबूझकर बात करना चाहता हूं।

वह कहां जा रही है , यहां क्या है उसका? क्या वह अक्सर आना- जाना करती है जैसे प्रश्न मस्तिष्क को मथ रहे थे कि 

कंडक्टर पीछे से टिकट बनाते हुए उसकी सीट तक पहुंच गया।

मैडम टिकट ?

एक लखनऊ कहते हुए उसने टिकट के पैसे कितने? पूछे बिना ही पूरे पकड़ाए इससे यह तो तय था कि वह अक्सर लखनऊ आती जाती है।

इसी उधेड़बुन में मेरी बैचेनी बढ़ रही थी।

उधर उसके माथे की छोटी बिंदी और हल्की सी लिपिस्टिक मुझे चुंबक की तरह खींच रही थी।

ऐसा मेरे साथ कभी नहीं हुआ पर आज न जाने क्या बात थी?

इधर वह दीन दुनिया से बेखबर अपनी ही धुन में फोन में कुछ लिख रही थी।

वह क्या लिख रही होगी ?? 

मेरा उत्सुक मन यह भी जानना चाह रहा था लेकिन संभ्रांत नागरिक होने की ठसक मुझे अपनी जगह से हिलने भी नहीं दे रही थी ।

अंदर से आवाज आ रही थी संभालो अपने आप को प्रोफेसर साहब आप कोई सड़कछाप नहीं हो जो यूं मचल रहे हो।

पर कहते हैं न कि जब आपके भाव शुद्ध हों तो कायनात भी आपकी सुनती है ।

अब तक लगभग पौन घंटे का सफर हो चुका था।

बस अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी और इसके साथ ही मौसम के तेवर बदलते से नजर आ रहे थे।

बस के चलते समय सूर्यदेव अपनी पूर्ण आभा के साथ आसमान को चीरते हुए बढ़ रहे थे पर यहां तक आते-आते उन्हें बादलों ने ढक लिया था वह छटपटा रहे थे पर बादलों पर जैसे उनका कोई बस नहीं चल रहा था, बिल्कुल वैसे ही जैसे कि आज मेरे मनोभाव मेरी एक नहीं सुन रहे थे।

और ये क्या रिमझिम फुहारों के साथ हवा ठंडी होने लगी थी।

इसके साथ ही वह हुआ जिसकी कल्पना भी कम से कम मैंने नहीं की थी।

वो जिस सीट पर बैठी थी उसका शीशा पूरी तरह बंद नहीं हो रहा था वह जाम था और उससे पानी अंदर आने लगा वह खड़ी हो गई। कंडक्टर ने घूमकर देखा और बोला मैडम आप यहां आगे इधर बैठ जाइए। 

भाई साहब थोड़ा सा एडजस्ट कर लीजिए कंडक्टर ने मुझसे रिक्वेस्ट करते हुए कहा।

मैं भौंचक्का शायद मेरा मुंह भी खुल गया हो उस समय तो कह नहीं सकता , यंत्रवत बोला जी जी जरुर आइए, बैठिए।

मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि कायनात यूं मेरे फेवर में काम कर रही थी ।

कंडक्टर का उसको संबोधन और इस तरह बैठने को कहना यह साफ कह रहा था कि यह इस बस की नियमित न सही पर साप्ताहिक या पाक्षिक यात्री तो पक्का है, यूं तो हर घंटे ही यहां से एसी बस निकलती है लेकिन नियमित यात्री तो सुबह की पहली या दूसरी बस से ही अक्सर सफर करते हैं। हालांकि मैं भी साप्ताहिक ही सफर करता हूं पर मैं हमेशा इसके बाद वाली बस से ही निकलता हूं । आज मुझे कुछ काम था और लखनऊ जल्दी पहुंचना था इस लिए यह एक घंटे पहले वाली ए सी बस मैंने पकड़ी थी ।

लेकिन अब मुझे लग रहा है कि मुझे इन मोहतरमा से मिलाने की साज़िश थी कायनात की इसलिए ही मैं इतनी जल्दी आ गया और अब ये बारिश और खिड़की की साज़िश ।

जरुर यह कुछ संकेत थे वो कहते हैं न ओमान, हां ओमान। आप इसमें विश्वास करें या नहीं करें पर मेरा इन पर पूर्ण विश्वास है।

उस पर मेरा यूं उतावलापन।

जब वह पास आकर बैठ गई तो मैंने पूछा आप अक्सर ही सफर करतीं हैं क्या?

जी मैं तो हर सोमवार ही जाती और शनिवार को आती हूं ,मेरी जॉब है न लखनऊ में।

ओह अच्छा जॉब तो मेरा भी लखनऊ में ही है ।

आप किस डिपार्टमेंट में हैं??

उसने सुरीली आवाज़ में पूछा ।

जी मैं फलां डिग्री कॉलेज में हूं ।

अरे वाह मैं भी गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में हूं।

इस तरह बातों का सिलसिला चल पड़ा। कुछ ही देर में ऐसा लग रहा था कि हम वर्षों से एक दूसरे को जानते हैं और यूं ही सफर कर रहे हैं साथ साथ।

इस दरम्यान अपने सफर की बातें, अपने साथियों की बातें यहां तक कि हम अपनी पसंद नापसंद पर भी बातें कर चुके थे ।

उसे कविताएं लिखने का शौक था और वह इस समय भी वही कर रही थी जब बेवक्त की बारिश ने इसमें खलल डाल दिया, उसके अनुसार।

स्टॉपेज आने में अब बस कुछ ही समय बचा था और मैं अब तक उससे उसका फोन नंबर नहीं मांग सका था, आखिर यह सभ्यता के दायरे में नहीं आता कि आप किसी महिला से यूं राह चलते फोन नंबर पूछने लगें।

पर दिल न जाने क्या क्या प्लान कर बैठा था । 

मैं जो अब तक शादी के नाम से दूर भागा करता था मन ही मन मना रहा था कि काश यह शादीशुदा न हो और बातों-बातों में उसने इस बात की पुष्टि कर ही दी कि वह अभी सिंगल हैं क्योंकि उसे अभी तक सपनों का राजकुमार मिला नहीं है।

कहीं ये भी तो वैसा नहीं सोच रही जैसा कि मैं??

कहीं इसलिए ही तो इसने अपने सिंगल होने की बात नहीं बताई है?

या फिर एक प्रोफेशन में होने का विश्वास है कि यह यूं बेफिक्र होकर बात कर रही है? और मैं ही गलत ट्रेक पर चलता चला जा रहा हूं?

जो भी हो पर मैं उससे फोन नंबर नहीं मांग सकता अगर ईश्वर सचमुच हमें मिलाना चाहते होंगे तो वह ही कुछ संयोग बनाएंगे जैसे कि  बातचीत का संयोग उन्होंने ही बनाया था।

यूं करते करते इसी उधेड़बुन में बस, बस स्टैंड पर आ लगी थी और हम एक-दूसरे को टाटा बाय-बाय  करके आगे बढ़ गए।

दो चार दिन तो वह काली जैकेट काला चश्मा ही आंखों पर छाया रहा फिर मैंने उसे एक सुनहरी याद की तरह दिल के किसी कोने में दफन कर दिया। 

हम पढ़े लिखे लोगों की यह आदत बड़ी खराब होती है किसी भी चीज को किसी भी याद को बहुत सहेजने में विश्वास नहीं रखते, हो सकता है कि मैं ग़लत हूं पर मैं ऐसा ही हूं।

आज मन उचट रहा था तो सोचा बुक फेयर होकर आता हूं, मौसम भी सुहावना है कुछ देर पहले ही बादल गरज बरस कर गए हैं।

यहां वैसे भी घर से दूर  समय ही समय होता है तो शाम होते ही बुक फेयर की तरफ निकल आया।

यहां वहां स्टॉल्स पर अपनी पसंद की किताबें ढूंढने के बहाने दरअसल मैं अपना समय काट रहा था और देख रहा था कि इस डिजिटलाइजेशन के जमाने में भी बुक फेयर में आने वालों की अच्छी खासी भीड़ है।

मैं कुछ आगे बढ़ कर एक कॉफी शॉप पर आ गया कि एक कॉफी पी जाए। घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं थी। वो जो एक उपन्यास पिछले दिनों ही ख़त्म किया था उसके बाद कोई नई कहानी शुरू अभी नहीं की थी कि उसे पढ़ने के लिए भागूं।

अरे ओ नहीं ,ये नहीं हो सकता।

मैंने गर्दन को झटका फिर ध्यान से देखा वही चली आ रही थी,आज लॉन्ग स्कर्ट टॉप में अलग ही कयामत ढा रही है वो , पर यूं अचानक यहां?? मैं खुले मुंह से अभी सोच ही रहा था कि वह पास आ गई, हैलो सर ,आप भी ?? सही है हम लोगों को स्टूडेंट्स के अलावा ये बुक्स ही तो हैं जो प्रिय हैं। हैं न सर??

उसने साधिकार प्रश्न किया।

जी बिल्कुल सही कहा, मैं भी अपना समय पुस्तकों के बीच ही गुजारना पसंद करता हूं ,आइये बैठिए।और मैंने एक कॉफी और ऑर्डर कर दी।

आज हमने एक दूसरे के नाम पूछे और फिर मिलने के वायदे के साथ फोन नंबर भी एक दूसरे को दे दिए थे और अब मैं समझ चुका था का उस दिन बस में ,यूं अचानक मिलना और बारिश के बाद सीट शेयर करना आज फिर मौसम का भीगा भीगा होना हमारा यूं फिर से अचानक मिलना , दरअसल कुछ भी अचानक नहीं है। ये संकेत है इस बात का कि हम भविष्य में एक साथ होंगे और अब मैं जल्दी ही उससे अपने दिल का हाल कह कर इस बात को घर वालों के आगे रखूंगा।

मैंने बातों बातों में ही पूछा पल्लवी जी बुरा न मानें तो एक बात पूछूं?

जी सर साधिकार पूछिए, उसने कहा।

आपने अब तक शादी क्यों नहीं की?

शादी?? अभी कौन सा उम्र निकल गई है, हाहाहाहाहा ,वह हंसी, वैसे घर वाले लगे हैं इस पुनीत काम में , हमें इससे कोई सरोकार नहीं है,वह जब जहां कहेंगे हम शादी कर लेंगे, सर।

हम उनसे बेहतर थोड़े ही जिंदगी को जानते हैं, बताइए आप?

जी बात तो बिल्कुल सही है आपकी, मैं आपके घर वालों से मिलना चाहता हूं, जिन्होंने इतने अच्छे संस्कार आपको दिए हैं, मैंने बिना लाग-लपेट के कहा ।

जी सर बिल्कुल आइए, नेक्स्ट शनिवार मैं घर जा रही हूं आप रविवार में आइयेगा, मम्मी पापा बहुत खुश होंगे। मैंने आपके बारे में बताया है उन्हें।

अरे सच में??

जी बिल्कुल, मैं अपनी हर बात मम्मी के साथ शेयर करती हूं, उसने ये लंबी स्माइल के साथ कहा।

अच्छा पल्लवी यदि मैं आपके मम्मी पापा के आगे अपना एक प्रस्ताव रखूं तो आपको कोई एतराज़ तो न होगा? 

जी कैसा प्रस्ताव?

हमारी शादी का प्रस्ताव, मैंने धड़कते दिल को संभालते हुए हिम्मत कर यह बात कह ही दी ।

जी, वह एकटक मेरी आंखों में देखने लगी।

पर उसकी आंखों के भाव सामान्य ही थे यह देखकर तसल्ली हुई कि उसने मुझे गलत नहीं समझा था।

वह धीरे-धीरे बोली,मेरी शादी का हर निर्णय माता पिता ही लेंगे यह तो तय है पर आप अपना पक्ष रखना चाहते हैं तो मुझे कोई आपत्ति नहीं अगर वह सहमत हुए तो यह शादी हो सकती है।

मुझे यह सुनकर कितनी खुशी हुई यह मैं शब्दों में नहीं लिख सकता,अब मैं मां पापा को तो मना ही लूंगा इतना तो मुझे स्वयं पर विश्वास है ।

रचना ©® 

पूनम सारस्वत, अलीगढ़

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