मुझे आज भी याद है ! जब हमारा रिश्ता पक्का हो चुका था! घर पर विवाह की तैयारियां चल रही थी ! मैं खुश तो बहुत थी मगर आने वाली जिंदगी को लेकर मुझे फिक्र भी लगी रहती थी। मैं यह सोचती रहती थी ! क्या ये वही इंसान है!
जिसे मैं अपना दिल और जिंदगी सब कुछ दे सकती हूं ! क्या ये वही इंसान है ।जो मेरे बिन कहे मेरी चाहतों को समझ सकते हैं ! क्या सही मायने में मैं विशाल की हर सुख-दुख की साझेदार अर्धांगिनी बन पाऊंगी! क्या विशाल मेरे एहसासों को समझ पाएंगे ! यही सोचते सोचते मैं और विशाल विवाह के गठबंधन में बंध गए !
ससुराल आकर धीरे धीरे महसूस हुआ! विशाल तो मुझको ही मुझसे भी ज्यादा समझने वाले थे ! अक्सर वह बिन कहे ही मेरी जज्बातों को समझ जाया करते थे !
अब मुझे लगने लगा था ! यही तो है सच्चा गठबंधन एक इंसान का दूसरे इंसान से ! जिसके खातिर हम एक अनजान इंसान के साथ भी जिंदगी भर साथ निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं!
सच कहूं तो, आज मैं बहुत खुश थी क्योंकि मैं भी अब विवाह में होने वाले गठबंधन के मायने समझ चुकी थी ! मेरी नजर में विशाल की जगह सबसे ऊपर और सम्मान वाली नजरों में थी !
जो हो ना हो कहीं ना कहीं पति-पत्नी सात फेरों के वक्त जो पवित्र गठबंधन में बंधते हैं ! शायद यह उसी का परिणाम होता है अचानक जिया ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। दादी कहां खो गई आप !! मैं आपको जब से आवाज दिए जा रही हूं। मैं जिया को देखकर हंसते हुए कहने लगी। तेरे दादू के सपने में। वह फिर हंस कर कहने लगी।
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अच्छा तो अब मैं आपके सपने में कहीं नहीं हूं । मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा। अरे बिटिया तू तो मेरी जान है। तू नहीं जानती तेरे ससुराल जाने के बाद तेरी यह बूढी दादी तेरे बगैर कैसे रहेगी कहते कहते मैं निराश हो उठी थी। जिया ने मेरे हाथों को अपने हाथों में थाम कर बिस्तर पर बैठाते हुए कहा। दादी आप फिक्र क्यों करती हो मैं तो अपनी दादी को कहीं भी छोड़ कर नहीं जाऊंगी।
जब भी पापा मेरे लिए दूल्हा ढूंढेंगे। मैं पापा से कह दूंगी पापा मुझे तो विवाह नहीं करना । मैं तब तुरंत जिया को बीच में ही रोक कर कहने लगी
ना !!ना !!बिटिया ऐसा नहीं कहते यह हमारे समाज की रीत भी है और सही भी तभी तो सब के घर बसते हैं। बिटिया मान लो कल को हम यह रीत ना निभाएं तो हमारा समाज आगे कैसे बढ़ेगा।जिया मेरी बात सुनकर फिर बोल उठी दादी आखिर शादी के मायने क्या होते हैं। मुझे जरा बताओ आप।
सुन बिटिया आज मैं तुम्हें हर शुभ विवाह में होने वाली रस्मों के बारे में बताती हूं । हमारे यहां वर और वधु को मेहंदी लगाई जाती है । जो शुभता की निशानी होती है। दोनों की हथेलियां में हमारे सनातन धर्म के विशेष चिन्ह कलश आदि भी बनाए जाते है और फिर दूल्हे के घर से आई हुई हल्दी उसकी होने वाली दुल्हन के चढ़ती है। जो विशेष पवित्रता और सौंदर्य की निशानी होती है
और फिर जिया वर और वधु के ननिहाल पक्ष से मायरे की रीत होती है। जिसमें वर और वधू की मां को उसके भाई चुनरी ओढ़ाते हैं देखा जाए तो जिया यह रस्म बहुत भावुक होती है । वरमाला की रस्म में वर और वधु एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं । वर वधु के फेरे के वक्त भी उन सात फेरों के बहुत मायने होते हैं। जो अग्नि को साक्षी मानकर लिए जाते हैं ।
पता है बिटिया उस वक्त जो गठबंधन होता है वह जीवन भर का गठबंधन हो जाता है । वधु के माता पिता द्वारा कन्यादान की महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है फिर वधू की मांग में वर सिंदूर भरता है। इस तरह पूरे विवाह की रस्म निभाई जाती है और पता है जिया बिटिया दूल्हे के जूते छुपाने की एक रस्म भी होती है। जो वधू पक्ष के छोटे भाई बहन द्वारा की जाती है बदले में उन्हें नेक मिलता है ।
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तब जाकर कहीं दूल्हे को वह जूते मिलते हैं ।उसे वक्त बड़ी हंसी ठिठोली होती है और इसके बाद विदाई हो जाती है । इस तरह हमारे समाज में एक शुभ विवाह संपन्न होता है जिया यह सब सुनकर बोल उठी। दादी आज मैंने जाना विवाह के क्या मायने होते हैं क्यों विवाह करना जरूरी होता है ।
अब मैं आपको कभी भी विवाह नहीं करने की बात नहीं कहूंगी अब तो खुश हो जाओ मेरी दादी। मैं जिया की बात सुनकर उसकी ओर स्नेह भरी नजरों से देखती रही कहा कुछ नहीं ।शायद कभी-कभी मौन रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है बस उसे समझने वाला होना चाहिए।
विवाह के मायने जानों सीख देती ये कहानी
जो ये जान जाए उसकी जिंदगी होती सुहानी !
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम