• infobetiyan@gmail.com
  • +91 8130721728

एक रिश्ता शुक्र तारे सा – लतिका श्रीवास्तव

नमस्ते चाचीजी  जी नमस्ते चाचा जी …. वही आदर भरा  मधुर सम्मोहित संबोधन सुन कर वसुधा जी ने भी पलट कर नमस्ते नमस्ते बेटा ..कैसी हो सब बढ़िया है ना..!!कहा तो बदले में उत्साह से भरा..” जी चाचीजी आपका आशीर्वाद है ……प्रत्युत्तर मानो दिल से ही निकला…मुस्कुराहटो का आदान प्रदान हुआ और वो आगे बढ़ गए….क्या तुम इन्हें जानती हो!! मॉर्निंग वॉक करते हुए मुकुल जी ने उत्सुकता वश पूछा तो वसुधा जी को हंसी आ गई ….अरे नहीं बिलकुल नहीं जानती मैं इसको…पर पिछले एक हफ्ते से जब से हम लोग इस रोड पर वॉकिंग करने आ रहे हैं इसका ये आत्मीय संबोधन मुझे बांध सा देता है…चाचीजी चाचाजी….कौन बोलता है आजकल..!आंटी जी अंकल जी के इस युग में..!!मुकुलजी भी मुस्कुरा पड़े थे  पर साथ ही कहा भी था सुबह सुबह इसे कोई काम धाम नहीं रहता है क्या!! रोज बाहर ही खड़ी मिलती है…!वसुधा जी को उनका इस तरह कहना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था परंतु रोज उसका वहां खड़े होकर नमस्ते करना भी उन्हें आश्चर्य में डाल देता था….

प्रतिदिन मॉर्निंग वॉक के समय वो आत्मीय संबोधन …वो मीठी मुस्कुराहटें …शांत स्निग्ध चेहरा….वसुधा जी की दिनचर्या का अभिन्न आत्मीय हिस्सा बन गया था….पता नहीं एक जुड़ाव  सा हो गया था उन्हें…..अब तो मुकुल जी के किसी दूसरी सड़क पर वॉकिंग के सुझाव को वो तत्काल  सिरे से खारिज कर देती थीं….बस यही सड़क यही मकान और यही मीठी आवाज जैसे उनके दिल में बस गई थी….उनके तेजी से बढ़ते कदम इसी जगह आकर इसी आवाज के इंतजार में थम से जाते थे और फिर स्नेहिल अभिवादन स्वीकारते और  प्रत्युत्तर देते हुए नई ताज़गी से आगे बढ़ जाते थे…पता नहीं एक अनोखा लगाव वो इस लड़की से महसूस करने लग गई थी….कभी कोई और बात की ही नहीं ….ऐसे ही बस इतनी ही बात इतना ही परिचय दिल को सुकून दे जाता था कुछ और जानने की कोई उत्कंठा ही नहीं होती थी।आज तक उसने भी कभी उन लोगों को घर आने या चाय के लिए भी नहीं कहा था..ये बात मुकुल जी को जरूर हैरान करती थी।




…एक दिन उस घर तक आते आते जोर की बारिश होने लग गई….”.चाची जी बारिश तेज है आप लोग भीग जायेंगे आइए मेरे घर चलिए ..अचानक उस दिन बहुत संकोच से उसने कहा था तो….मौसम का तकाज़ा था या पारस्परिक आत्मीयता की हिलोर….वसुधा जी के कदम सहज ही उसके घर की तरफ बढ़ गए थे….आज ही पता चला कि इस आत्मीय संबोधनकर्ता का नाम सुमित्रा है…..

“…गुड्डी… ओ गुड्डी.. देखो तो कौन आया है….सुमित्रा की उल्लासपूर्ण आवाज घर में प्रवेश करते ही गूंज उठी थी….चारो ओर नजर दौड़ाने पर भी वसुधा जी को कोई नजर नहीं आया तो  सुमित्रा का पीछा करती उनकी नजरें बैठक के साथ सटे कक्ष के बिस्तर पर मुड़ी तुड़ी लेटी एक काया पर पड़ी….ये कौन है क्या हुआ है !!प्रश्नों के पूछने से पहले ही सुमित्रा ने उन्हें भी उसी कमरे में बुला लिया था

आइए ना चाचीजी अंदर आ जाइए …देखो गुड्डी चाचीजी आई हैं अपने घर तुमसे मिलने हां तुम्हारी तो दादी जी हुई है ना..!प्रत्युत्तर में बिस्तर से आ आ आ आ की आवाज के साथ सुमित्रा जी ने जो देखा तो उनका दिल दहल सा गया था।

सुमित्रा ने बताया ये उसकी बेटी है जन्म से ऐसी नहीं थी बीमार होने पर एक मेडिसिन का रिएक्शन ऐसा बुरा हुआ कि ब्रेन से हाथ पांव का कंट्रोल हट गया ……बार बार हाथ पैर टेढ़े हो जाते हैं पूरा शरीर टेढ़ा होता रहता है ….जिसे सुमित्रा अपने हाथों से पकड़ कर सीधा करती रहती है….सुनाई देता है पर मुंह से कुछ भी बोल नहीं सकती..

…….अचानक खुशी से गुड्डी के मुंह से जोर जोर से आ आ की ध्वनि तेज हो गई तो सुमित्रा ने बहुत ही दुलार से हां देखा चाचीजी मिलने आई हैं तो गुड्डी खुश हो रही है है ना!!कोई हमारे घर आता ही नहीं है अकेलापन रहता है इसीलिए आपके आने से इसे बहुत खुशी हो रही है कहते हुए उसने वसुधा जी का हाथ गुड्डी के कोमल हाथों में पकड़ा दिया …और फिर बहुत ही ममत्व से उसके मुंह से निकल रही लार को रूमाल से साफ किया और उसके सिर को अपनी गोदी में रख कर उसके बालों को सहलाने लगी।

वसुधा जी स्तब्ध थी ऐसा दृश्य देख कर … अपने हाथों में उन अशक्त कोमल हथेलियों का स्पंदन मानो उनके दिल की धड़कनों से जा मिला था….उसकी दिली  प्रसन्नता उसके टेढ़े होते हुए चेहरे और खुशी के मारे टेढ़े होते जा रहे शरीर से स्पष्ट दिखाई दे रही थी….ऐसा जुड़ाव महसूस हुआ उन्हें मानो ईश्वर ने कोई डोर उसके साथ बांध दी हो……




…उस बच्ची की ऐसी हालत थी कि दिन रात सेवा टहल की जरूरत थी और सुमित्रा जाने कितने बरसों से अतुलित स्नेह और धैर्य से उसकी अटूट सेवा में निबध्ध  थी….उसके चेहरे और उसकी बातों या उसके व्यवहार से जरा भी भान नहीं होता था कि इतना संताप इतनी गहरी वेदना  उसके जीवन में है।

बहुत ही छोटा सा वो किराए का मकान था जिसमे दो ही कमरे थे ….बाहर वाले कमरे में ही एक पुरानी सिलाई मशीन सुमित्रा ने रखी थी उसी से थोड़ा बहुत गुजारे लायक सिलाई का काम कर लेती थी…. कहीं भी कभी भी बाहर नहीं जा पाती थी गुड्डी को अकेले छोड़ कर कैसे जाती..!उसके पति कहीं बाहर नौकरी करते थे …. घरवालों ने भी ऐसी बच्ची के जन्म के लिए लानत लगाते हुए उन्हें घर से निकाला दे दिया था….यहां भी आस पड़ोस में उसका जाना नहीं हो पाता है …किसी को अपने घर गुड्डी के कारण वो बुलाने की हिम्मत नहीं कर पाती…इसीलिए वसुधा जी से रोज सुबह की प्यार और अपनेपन से भरी  नमस्ते ही उसके जीवन की ऊर्जा बन गई  ….जब सुमित्रा ने बताया तो वसुधा जी की आंखें भर आईं…… कि वो रोज सारे काम छोड़कर उन लोगों के आने के समय घर के बाहर खड़ी हो जाती हैं…..

कभी कभी बिना कुछ कहे केवल स्नेहसिक्त अभिवादन अपनत्व भरा संबोधन ही किसी व्यथित मन की ऊर्जा बन जाता है…एक अपनत्व के रिश्ते में बांध देता है।

आज गुड्डी का जन्मदिन है…. मुकुल जी ने एक बाबा गाड़ी खरीदी है जिसमें बिठाकर वो आज से सुबह शाम दोनों समय गुड्डी को घर के बाहर घुमाने ले जायेंगे …..वसुधा जी ने खूब सारी साड़ीयां फॉल ब्लाउज सिलवाने के लिए रख ली हैं साथ ही गुड्डी के लिए तरह तरह की लाइट और आवाज करने बाले खिलोने भी खरीद लाई हैं जिन्हें देख कर गुड्डी का प्रसन्नता से खिला चेहरा उनकी कल्पना में सजीव हो रहा था…।

उनकी जीवन संध्या में  सार्थक उद्देश्य दिखाता ये अनोखा रिश्ता  शुक्र तारे सा उदित हो चुका था।

#एक_रिश्ता

लतिका श्रीवास्तव

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!