एक प्यारा रिश्ता – नंदिनी

एक अबोध बालक उम्र होगी लगभग  5 से 6 वर्ष  ,बस स्टैंड पर भीड़ के चलते अपने  परिवार से बिछड़ गया ।

उसका परिवार मेहनत महदूरी करके पेट भरता था किसी ने कहा फलां जगह मजदूरी का काम है अच्छा ,तो चल पड़ा परिवार पोटले बांध कर , भीड़ में हाथ छुटा तो मिला ही नहीं ।

कुछ सूझ ही नहीं पड़ रहा था उसे कहाँ जाए क्या करे , सोचने लगा बाबा डांट लगाते थे शैतानी करता था तो इसलिए तो छोड़कर नहीं चले गये मुझे , चुपके से एक बस में बैठ गया और आखिरी गांव जहां तक बस जाती थी उतर गया।

एक पेड़ की छांव में बैठा रो रहा था तो एक सज्जन पुरुष की नजर पड़ी पूछा अकेले क्यों हो बेटा ,तुम्हारे मां  पापा कहां हैं , वह बोला मुझे नहीं पता गुम हो गया हूँ मैं ।

शायद मुझे जानबूझ कर छोड़ कर चले गये हैं बाबा 2 छोटे भाई बहन हेना उनसे ज्यादा प्यार हो गया था उनको इसलिए….

उन्होंने पूछा क्या करते हैं तुम्हारे बाबा , मजदूरी करते हैं किसी ने बोला था कहीं आसपास काम आया है बड़ा तो वहीं जाने के लिए निकले थे हम। सज्जन पुरुष उसकी मनस्तिथि समझे बोले मैं पता करवाता हूँ कहीं आसपास के गांव में कुछ पता चलेगा तो मिल जाएंगे।

तब तक तुम मेरे साथ चलो भूखे भी होगे न …..

घर जाकर खाना खिलाया पास ही खेत था उनका कुंआ , सब्जी भाजी कई तरह के पेड़ गाएं भैंसें पली हुईं थीं उनकी ,उसकी रखवाली के लिए एक परिवार रहता था, वहाँ रमेश उसकी पत्नी और एक बेटा ।

ले जाकर रमेश से बोला अभी जब तक इसके परिवार का पता नहीं चलता ये बच्चा  यहीं रहेगा जी बाऊजी करके रमेश उसको साथ ले गया । उसका बेटा हमउम्र ही था जल्दी दोस्ती हो गई दोनोँ की ।

इधर कई कोशिश के बाद भी जब उसके परिवार का पता नही चला तो बाऊजी ने बोला मोहन तुम्हारे परिवार का तो पता ही नहीं चला , तुम्हें शहर के अनाथ आश्रम में  छोड़ आएं ये सुनकर उसका चेहरा उदास हो गया ।

यहाँ अब उसका मन लग गया था  छोटे मोटे काम कर देता था दूध घर दे आना सब्जी तरकारी ले जाना । अच्छा भरपेट खाना भी मिल रहा था और रमेश का बेटा सोहन तो उसके भाई जैसा हो गया था मस्ती में दिन कहां निकल जाता पता ही नहीं चलता ।




बाऊजी ने उसकी उदासी  जान कर पूछा यहीं रहना चाहते हो क्या ?

इतनी बड़ी मुस्कान के साथ हां में चेहरा हिलाया , बाऊजी ने रमेश को कहा अब से ये यहीं रहेगा इसका दाखिला भी सोहन के साथ स्कूल में करा देना ।

धीरे धीरे समय निकलता गया , वह खेती बाड़ी का बहुत काम बाऊजी का सम्भाल लेता, ट्रेक्टर चलाना भी सीख गया था, गांव की लड़कियों का तो प्यारा भाई बन गया राखी पर आधे हाथ तक राखी होतीं हाथ पर  सबकी मदद  करता ।

बाऊजी के तो परिवार के तो सदस्य जैसा हो गया था सारे घर के बच्चे मोहन मामा बुलाते थे, उसके घर का कोई बच्चा ऐसा न था जो उसे घोड़ा बनाकर सवारी नहीं किया हो , जितना प्यार उसे  इस परिवार से मिला था  न कोई रिश्ता होते हुए उसके लिए भगवान को रोज धन्यवाद देता ।

सारे रिश्ते छीने तूने लेकिन एक रिश्ता ऐसा दिया कि उसने कभी परिवार की कमी लगने ही नहीं दी , खून के रिश्ते से भी बढकर है बाऊजी ओर मोहन का रिश्ता ,प्यार  सम्मान अपनापन से परिपूर्ण एक प्यारा रिश्ता ………

#एक_रिश्ता 

नंदिनी

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