शुभ विवाह – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

मंत्रों उच्चारण से घर का आंगन खुशनुमा सा लग रहा था। सुधीर जी और सुधा जी का सपना पूरा हो रहा था। बिटिया राधिका की शादी बड़े ऊंचे घराने में तय हुई थी और जोड़ी ऐसी जैसे श्री राम जी और जानकी जी की हो।एक – एक रस्में बड़े विधी विधान से निभाई जा रही थी। पंडित जी ने आवाज लगाई की कन्या के माता-पिता आएं और कन्यादान की रस्म पूरी करें।

कन्यादान एक ऐसा दान है जिसमें माता पिता अपनी सबसे अनमोल बेटी की जिम्मेदारी उसके पति के हाथों में देकर आंखों ही आंखों में एक वादा लेते हैं की आजीवन उसकी रक्षा और सम्मान देना क्योंकि अब इसकी पहचान भी आपके साथ जुड़ने जा रही है।वर भी माता पिता को आंखों ही आंखों में आश्वासन देता है की हर सुख-दुख में मैं आपकी बेटी के साथ खड़ा रहूंगा।

जहां एक ओर दिल में खुशी होती है,वहीं दूसरी ओर हर एक रस्म के साथ – साथ कन्या पराई भी होती जा रही है। सुधा जी बिटिया राधिका को अपलक निहारती हुईं आंखों से बहते आंसू को छिपाने की कोशिश कर रही हैं। सिंदूर दान भी हो गया और राधिका के चेहरे की सुंदरता निखर आई थी, कहते हैं ना की सिंदूर पड़ते ही रंग रूप में निखार आ जाता है।

तभी मौसी ने आकर राधिका के चेहरे को थोड़ा सा ढंक दिया की किसी की नजर ना लग जाए ‌। मंड़प में अब विदाई की तैयारी शुरू हो गई थी।वर पक्ष के लोगों की रस्में एक तरफ चल रही थी दूसरी तरफ भाभी राधिका को बिछूए पहना रहीं थीं। राधिका अब चुप – चुप सी हो गई थी। विवाह संपन्न हो गया था अब विदाई की बारी थी।

वो मासूम सी लड़की…… –  शाजिया

गोदी भर कर बिटिया को गले लगा कर खूब रोई थीं सुधा जी और धीरे से उसके कानों में कह रहीं थीं बेटा” ये तुम्हारा घर है और हमेशा उतने ही शान से आकर रहना। ससुराल की जिम्मेदारियां निभाने में मायका नहीं भूलना। हमेशा आते – जाते रहना।”

चाची सास कमला जी बोल पड़ी भला पराई औलाद के लिए इतना कौन करता है जितना सुधीर और सुधा ने किया है।

चाची जी!” ये कौन सा वक्त है इन सब बातों का राधिका मेरी बेटी है…आज तो कह दिया आइंदा कभी नहीं कहना आप ” सुधा गुस्से में बोली। राधिका सुधा जी के दूर के चचेरे भाई की लड़की थी।एक हादसे में उसके माता-पिता की मौत हो गई थी और उस समय साल भर की लड़की का हांथ थामने वाला कोई नहीं था। सभी सांत्वना देते और निकल जाते।

जब सुधीर और सुधा जी को खबर लगी तो उन्होंने औपचारिक तौर पर बच्ची को गोद ले लिया और राधिका को एक परिवार मिल गया और इनको मातृत्व का सुख। सुधीर और सुधा के दो बेटे हुए लेकिन राधिका के मान सम्मान में कभी कोई कमी नहीं है। यहां तक की बच्चों को भी नहीं पता था कि राधिका गोद ली बेटी है।

रिश्तेदारों को तो बहाना चाहिए रहता है अच्छे माहौल में कुछ जहर घोल दो और मज़े लेकर बात का बतंगड़ बनाओ। सुधा जी की बातें चाची जी को लगी तो बहुत थीं पर चुप रहना ही उन्होंने बेहतर समझा क्योंकि सुधा सभी का सम्मान बराबर करतीं थीं पर गलत बात तो बिलकुल बर्दाश्त नहीं करती थी।

बचपना – के कामेश्वरी 

आज पग फेरे के लिए राधिका और जमाईं बाबू आने वाले थे और सुधा ने पूरा घर सिर पर उठा रखा था। रात भर करवटों में निकली थी और सुबह उठते ही रसोई घर में स्वयं लग गई थी।नौकर चाकर सब थे पर बेटी – दामाद के पसंद का सारा व्यंजन खुद ही बनाना था। सुधीर जी को भी बाजार दौड़ा रखा था कि राधिका की विदाई में क्या – क्या भेजना है, कोई कमी ना रह जाए।

सचमुच बेटियां कितनी जल्दी पराई हो जाती हैं,कल तक जो इस आंगन को अपने रंगों से और अपनी गुंजन से भर कर रखा था आज मेहमानों की तरफ उनका स्वागत करना था… सुधा जी मन में सोच रहीं थीं और ना जाने कितने पकवान बन गए थे और कितने बाकी थे। अरे! ” भाग्यवान आराम कर लो थोड़ी देर, वरना जब बिटिया आएगी तो तुम्हारे चेहरे को देखकर समझ जाएगी की तुम्हारे घुटने में दर्द है।

नाहक ही उसको चिंता में डाल दोगी। अपने घर जाएगी तो कैसे खुश रहेगी तुम्हारी फ़िक्र में मन यहीं अटका रहेगा उसका। चलो बैठो थोड़ी देर” सुधीर जी ने नौकरों से कहा चाय – नाश्ता लाने को कहा।

मुझे पता है कि सुधा जी ना तो कुछ खाई होंगी और ना कोई दवा ली होंगी।

“आप भी ना…. बच्चों की तरह मेरा ख्याल रखते हैं” हंसते हुए पलंग पर बैठ गई। ” तो और क्या… मैंने भी तो तुम्हारे मामा – पिता को वचन दिया था विवाह के समय की हर सुख-दुख में मैं तुम्हारा ख्याल रखूंगा। सुधा…. शादी के सात फेरों के साथ लिए सात वचन बहुत महत्वपूर्ण हैं। आखिर मां – बाप अपनी बेटी को किसी अंजान इंसान को इसी भरोसे पर तो सौंपते हैं की उनका दामाद उनकी बेटी का उनसे भी ज्यादा ख्याल रखेगा।”

बे औलाद बेहतर है – के कामेश्वरी 

वाह जी!” आपने तो राधिका के विवाह के समय सारे वचनों को बड़े ध्यान से सुना है।”

हां!” सुधा जब मैं अपनी बेटी का कन्यादान कर रहा था तब मुझे हमारी शादी के वो पल याद आ रहे थे कि कैसे मां जी और पिता जी ने दिल पर पत्थर रख कर तुम्हें मुझे सौंपा होगा। सचमुच में तभी मैंने मन ही मन में संकल्प लिया की जिंदगी की भागदौड़ में पता नहीं मैं तुम्हारे लिए क्या कर पाया क्या नहीं पर तुमने हर मोड़ पर मेरा साथ निभाया है।अब से मेरी बारी है की मैं तुम्हारा पूरा – पूरा ख्याल रखूंगा।”

सचमुच विवाह दो जिस्म का और आत्माओं का ही मिलन नहीं है बल्कि एक दूसरे का आजीवन साथ निभाने का भी बंधन है।

शाम होने को आई थी और दरवाज़े पर बड़ी सी कार आ कर रुकी। सुधा जी दौड़ कर गईं बेटी की आरती उतारी और जल उतार कर चौराहे पर डाल आईं। सुधीर जी बिटिया को धीरे से देख रहे थे कि दो ही दिन में कितना बदलाव आ गया था उसके चेहरे पर। कितनी सयानी सी लग रही थी, तरीके से बोलना, अच्छे से बातचीत करना।

सभी आवाभगत में लग गए थे। दोनों भाई बहन से चिपक कर बैठ गए थे मानो ऐसा लग रहा था कि वर्षों बाद बहन मिली हो। सुधा जी ने बेटी की पसंदीदा सारे पकवान बनाए थे और अपने हाथों से उसको खिलाए जा रही थी ऐसा लग रहा था कि बिटिया पता नहीं वहां ढंग से कुछ

खाई पी है की नहीं ‌। दामाद जी देखकर मुस्कुरा रहे थे। कितना ज्यादा लाड़ – दुलार हो रहा था राधिका का और साथ में उनके सम्मान में कोई कमी ना रह जाए सभी लगे हुए थे।

पग फेरे की रस्म अदायगी भी अच्छी तरह से हो गई थी और शुभ विवाह भी सम्पन्न हो गया था सारे रीति रिवाज के साथ। दुनिया की यही तो रीति है और ऐसे ही चला आ रहा है।

एक लड़की अपने पिता के घर में अनेकों रिश्तों को निभाते हुए जब शादी के बंधन में बंधती है तो और भी नए रिश्तों से जुड़ जाती है, जहां से उसके जिंदगी की सही शुरुआत होती है और वो अपने घर में अपने नए अस्तित्व को बनाते हुए दोनों परिवारों के इज्जत, सम्मान और संस्कार को निभाती है।

                                प्रतिमा श्रीवास्तव

                                 नोएडा यूपी 

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