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बचपना – के कामेश्वरी 

राधिका स्कूल में टीचर थी । उसके पति बैंक में नौकरी करते थे । उनके दो बच्चे थे लड़की अवनी लड़का हिमाँशु दोनों भी स्कूल में ही पढ़ रहे थे । अवनी का इस साल दसवीं बोर्ड की परीक्षा थी । राधिका बहुत ही मेहनती है । पति नमन का टूरिंग जॉब था इसलिए राधिका को ही सारे काम करने पड़ते थे ।

सुबह चार बजे उठकर बच्चों पति और खुद के लिए नाश्ता तैयार कर के सबके लिए टिफ़िन बॉक्स बाँध कर आठ बजे तक स्कूल पहुँच जाती थी ।

शाम को बच्चों के आने से पहले ही स्कूल से आकर घर की साफ सफ़ाई करते ही बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करके उनके लिए इंतज़ार करती थी । उनके स्कूल से आकर फ्रेश होने के बाद उन्हें दूध और नाश्ता देकर पढ़ने के लिए बिठाती थी । उनके पढ़ते समय ही रात का खाना बना देती थी। उन्हें खेलने के लिए भेज कर अपने स्कूल का काम कर लेती थी । अवनी की दसवीं की परीक्षा ख़त्म हो गई और उसका दाख़िला इंटरमीडिएट में करा दिया गया था । 

एक दिन राधिका जैसे ही घर पहुँची तो देखा अवनी रूठ कर बैठी हुई थी । बहुत बार मनाने के बाद उसने कहा कि आप नौकरी छोड़ दो । राधिका को समझ में नहीं आ रहा था कि यह लड़की अचानक मेरी नौकरी छोड़ने के लिए जिद क्यों कर रही है । नमन रात को घर आए थे । सब लोग साथ में बैठकर खाना खाते थे खाते समय राधिका ने कहा कि नमन अवनी मुझे नौकरी छोड़कर घर में बैठने के लिए कह रही है । नमन ने कहा— क्या बात है बेटा आप ऐसा क्यों कह रही हैं । 

उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर हम सबकी हँसी छूट गई थी । 

उसने कहा – आप सुबह खाना बनाकर चली जाती हैं मैं जब कॉलेज से आती हूँ तो मुझे ठंडा खाना खाने को मिलता है । आप घर में रहोगी तो मैं गर्म खाना खा सकती हूँ । उस समय को सबने हँस दिया फिर राधिका सोचने लगी थी कि सच ही तो है बिचारी सुबह की निकली दोपहर को पहुँचती है तो ठंडा खाना खाने के लिए मिलता है । 




राधिका ने उसके लिए एक उपाय सोचा और एक बड़ा सा केसरोल का टिफ़िन ला दिया उसमें खाना शाम तक गर्म रहता था । अवनी अब खुश हो गई थी । 

आज अवनी की शादी हो गई है एक बेटा भी है पर उस घटना को याद करते हुए हमेशा कहती है माँ कैसी मूरख थी न गर्म खाना खाने के लिए आपको नौकरी छोड़ने के लिए कह रही थी । राधिका ने कहा मूरख नहीं बेटा वह तुम्हारा बचपना था जो सच भी था । तुम्हारे कहने पर मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी गलत कर रही थी मेरी बच्ची के साथ है ना । 

दोस्तों हम बच्चों के लिए ही सब करते हैं उन्हें ही सहूलियत नहीं दे पाए तो क्या फ़ायदा होगा । 

स्वरचित 

#5वां बेटियाँ जन्मोत्सव 

के कामेश्वरी 

सुबह से कंचन और उसके बेटे शान के बीच कहा सुनी हो रही थी। शान अपनी जिद पर अड़ा हुआ था कि आप इस घर को मेरे नाम कर दीजिए बस यही एक रट लगाए बैठा था आगे कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं था । हम दोनों तब ही बात करेंगे कहकर पैर पटकते हुए घर से बाहर निकल गया था। कंचन सोच रही थी कि मेरे जीते जी घर बेटे के नाम कैसे कर सकती हूँ । कल को किसने देखा है । मैं उसकी बात हरगिज़ नहीं मानूँगी। 

बहू लता अलग रसोई में खाना बनाते हुए बड़बड़ा रही थी कि यह घर पैसा अपने साथ लेकर चली जाएँगी क्या ? हम उनके अपने ही तो हैं।




यह सब सुनकर कंचन का दिल बहुत दुखी हो उठा। उसने अपना बैग उठाया और अपनी बुआ के पास पहुँच गई । जैसे ही उन्होंने दरवाज़ा खोला अंदर आई और कहा आप मुझसे कुछ नहीं पूछना मैं थोड़ी देर चुपचाप बैठना चाहती हूँ । उन्होंने कहा कि ठीक है उस कमरे में बैठ जा कहकर एक कमरा दिखाया। 

कंचन सोच रही थी कि अपने होते तो इस तरह का बर्ताव कभी नहीं करते थे। एक हफ़्ते से पीछे पड़ा है घर उसके नाम कर दूँ। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे थे । वह सोचने लगी थी कि इससे अच्छा मैं बे औलाद होती थी तो अच्छा था । लड़की सुकन्या वह भी कोई कम नहीं है सब कहते हैं बेटियाँ माता-पिता के दिल के क़रीब होती हैं । मेरे लिए तो दोनों ही एक जैसे निकल गए हैं । 

कंचन को ससुर की बातें याद आई थी मरने के पहले उन्होंने कहा था कि कंचन बेटा औलाद वही होता है चाहे लड़का हो या लड़की बिना किसी लालच के माता-पिता की देखभाल अंत तक करें । मेरी बात मान कर अपनी संपत्ति किसी को भी मरने से पहले मत दे देना । समझ रही हो ना मैं क्या कह रहा हूँ बच्चों के बहकावे में मत आना तुम अकेली हो वैसे भी तुम्हारे बाद तो सब कुछ उनका ही हो जाएगा । यह मेरी सीख है बेटा गाँठ बाँध कर रख लेना। उसकी आँखें भर आईं । 

उसे वे दिन याद आए जब वह शादी करके इस घर में आई थी । सास उसे पसंद नहीं करती थी क्योंकि वह ससुर की पसंद थी । कंचन के पिता सौरभ और ससुर किशोर दोनों अच्छे दोस्त थे । कंचन की माँ जब वह छोटी थी तब ही गुजर गई थी । सौरभ ने ही अपनी पत्नी के गुजर जाने के बाद कंचन को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया था। अच्छे संस्कार दिए थे । 

एक दिन दोनों दोस्त पार्क में मार्निंग वाक कर रहे थे तो सौरभ को वहीं पर दिल का दौरा पड़ गया था । सभी लोग उन्हें अस्पताल लेकर गए परंतु उनकी जान नहीं बचा सके । मरने से पहले सौरभ ने किशोर से बेटी की ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहा था । वैसे वह पढ़ी लिखी सुंदर सुशील थी । अपने दोस्त की आखरी इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने कंचन को अपने घर की बहू बनाकर अपने घर लेकर आ गए थे । 




सास को यह बात पसंद नहीं आई थी । उन्हें लगता था कि माता-पिता के न होने से वह हमेशा यहीं रह जाएगी और बेटे को ससुराल से मिलने वाले तोहफ़े नहीं मिलेंगे । इसलिए वह कंचन को बहुत ताने देती थी और पूरे घर का काम उसी से कराती थी। किशोर अपनी पत्नी के मुँह नहीं लगना चाहते थे पर कंचन से कहते थे कि अन्याय के खिलाफ लड़ा कर बहू ऐसे ही चुप रहेगी तो तेरी सास तुझे ऐसा ही सताएगी ।

 कंचन को लगता था कि माँ तो बचपन में ही गुजर गई थी कम से कम सास में माँ को देख लूँगी । किशोर का बेटा रोहित बहुत अच्छा था । वह अपनी पत्नी को बहुत प्यार करता था । 

एक दो साल के अंतराल में ही कंचन और रोहित के दो बच्चे हो गए थे । बेटी सुकन्या और बेटा शान । रोहित पढ़े लिखे थे परंतु अपना व्यापार करना चाहते थे। पिता को यह व्यापार वाली बात पसंद नहीं थी । रोहित ने पिता से लड झगड़कर एक किराने की दुकान को खोल लिया था । उसकी दुकान ठीक से नहीं चलती थी लेकिन पिता के साथ मिलकर रहने के कारण उसे अपने परिवार की देखभाल में तकलीफ़ नहीं होती थी । 

कंचन की सास को लगता था कि बेटे को अलग रहने के लिए भेजेंगे तो वह अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छे से समझेगा पर ससुर नहीं चाहते थे। उन्हें मालूम था कि दुकान से होने वाली आमदनी से दो-दो बच्चों की परवरिश करने में बेटे उसे तकलीफ़ होगी। 

सास की जिद के आगे उन्हें घुटने टेकने पड़े और रोहित के परिवार को अलग घर में शिफ़्ट होना पड़ा। 

अब कंचन भी पति के साथ दुकान पर बैठने लगी । दोनों मिलकर इतना तो कमा ही लेते थे कि अपने बच्चों की ज़रूरतों को आसानी से पूरा कर सकें । 

हर रोज़ की तरह उस दिन भी कंचन पहले घर पर आ गई थी क्योंकि बच्चों के स्कूल से घर लौटने के पहले ही वह घर पहुँच कर उनके खाने पीने का इंतज़ाम करती थी । उनका होमवर्क कराना और उनकी पढ़ाई पर ध्यान देना आदि काम कर देती थी। 

उस दिन भी बच्चे रात को खाना खाकर सो गए थे और वह रोहित का इंतज़ार कर रही थी। उसी समय फ़ोन पर एक अननोन कॉल आता है उठाया तो वह पुलिस इंन्स्पेक्टर का फ़ोन आया था। उनके फ़ोन कॉल से उसे पता चला था कि रोहित का एक्सीडेंट हो गया है । अपने ससुर की मदद से वह अस्पताल पहुँचती है परंतु तब तक रोहित की मौत हो गई थी। 




सास के मना करने पर भी किशोर कंचन और बच्चों को लेकर अपने घर आ गए थे । कंचन अभी भी दुकान सँभाल रही थी । घर और बाहर की तथा बच्चों और सास ससुर की ज़िम्मेदारियों को निभा रही थी फिर भी कंचन को सास के तानों को सहना पड़ता था । 

इसी तरह साल बीतते गए बच्चे भी बड़े हो गए थे और सास की मृत्यु भी हो गई थी । 

किशोर ने ही अपनी पोती सुकन्या की शादी धूमधाम से कराया था । आज की तारीख़ में वह अमेरिका में अपने पति के साथ मिलकर आराम से रह रही है । 

शान की शादी भी हो गई है।  वह एक बहुत बड़े मलटीनेशनल कंपनी में बहुत बड़े पोस्ट पर है और बहुत ही अच्छी पैकेज भी है । पत्नी ने एम टेक किया था पर वह घर पर रहकर अपने बच्चों की देखभाल करती है। 

शान ने अपने पैसों से एक विला ख़रीद लिया था । उसका दोस्त अपना घर बेच रहा था तो उसे लगा माँ के नाम पर जो घर है उसे बेच कर ख़रीद लूँगा।  माँ है कि इस बात पर राजी नहीं हो रही थी। 

कंचन के ससुर ने उसे यह घर उसके नाम पर करते हुए कहा था कि बेटा तुम नीचे के घर में रहना ऊपर के दो घर किराए पर हैं ना उस किराए से तुम अपना गुज़ारा कर लेना । तुम्हें किसी के आगे हाथ फैलाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी । किसी के बहकावे में मत आना बच्चों के मोह में अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मत मार लेना कहते हुए गुजर गए थे ।

बेटा बहू भी साथ रहते हैं पर मजाल है कि बेटा घर खर्च के लिए आगे बढ़कर पैसा देता हो । 

ऐसे में अगर घर उसके नाम कर दिया तो वह कैसे जिएगी ।यह सोचते हुए उसने एक निर्णय लिया और बुआ से विदा लेकर अपने घर आ गई थी। बहू ने खाना बना दिया अपने बच्चों को खिलाकर खुद भी खा लिया था । किसी ने भी उसे खाने के लिए नहीं पूछा था वैसे भी बुआ के घर में उसने नाश्ता किया था इसलिए सीधे अपने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया । 

रात भर उसे नींद नहीं आई थी अंत में उसने निर्णय लिया कि बेटा साथ में रहे या ना रहे मैं अपना घर उसके नाम पर नहीं करूँगी । मेरे बाद ही उसका इस घर पर अधिकार होगा मेरे जीते जी अब अन्याय नहीं सहूँगी सोच लिया और चैन की नींद सो गई थी। 

सुबह उसने बेटे बहू को बुलाया और अपना निर्णय सुना दिया यह भी कहा कि तुम्हें मेरे साथ रहना है तो बिना झगड़ों के रहो अन्यथा अपने घर में रहने के लिए जा सकते हो । 




सही है दोस्तों दुनिया में आए दिन होने वाले हादसों से हमें यह सीख तो लेनी ही चाहिए कि जो पैसे या घरबार है हमारे बाद ही बच्चों को मिले। बैंक में या एल आई सी में रिटायर होने के बाद वे समझाते हैं कि जो भी पैसा या ज़मीन जायदाद है जीते जी औलाद के मोह में पड़कर अपना सब कुछ उन्हें नहीं देना चाहिए हमारे बाद ही उन्हें मिलेगा ऐसा पहले से ही लिखकर रख देना चाहिए । 

साप्ताहिक विषय (औलाद)

स्वरचित मौलिक 

के कामेश्वरी 

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