मंडप में राजीव और रचना के फेरों की रसम चल रही थी। पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे और सब आसपास कुर्सियों पर या नीचे दरी पर जहां जगह मिली थी बैठे हुए थे।
विनय की नजर रह रहकर सरिता पर पड़ जाती थी। विनय को लग रहा था नज़रें चुराकर सरिता भी उस पर नजरें गड़ाए हुए हैं। सरिता में अब कहीं भी बचपना दिख ही नहीं रहा था। वह अपने दोनों बच्चों को संभालने में ही लगी थी।
रात गहरा रही थी और नीचे गद्दे पर ही दोनों बच्चे उसकी गोद में सर रखे लेटे हुए थे। क्या अब उसे अपनी साड़ी पर सिकुड़न होने का डर नहीं है? सरिता का चेहरा आज भी मासूम तो लग रहा था परंतु वह परेशान भी लग रही थी।
विनय अपने ख्यालों में और भी ज्यादा खोता कि तभी उसके बेटे ने आकर कहा पापा मुझे बाथरूम जाना है। विनय अपने बेटे के साथ उठकर चल दिया। सरिता ने देखा विनय की पत्नी अंदर कमरे में ही पलंग पर सो रही थी। वैसे भी वह इतनी भारी थी कि उससे सोने के अलावा कोई और काम हो सकता है सोचा भी नहीं जा सकता।
विनय के जाने के बाद सरिता भी पुरानी यादों में खो गई, यह वही विनय है ना जो कि हमेशा कुछ भी खाते हुए उसे टोकता था अरे तुम मोटी हो जाओगी। सोचो मोटी होकर कैसी लगोगी? और फिर उसका बिंदास जोर-जोर से हंसना सरिता को गुस्सा दिला देता था।
पाठकगण आपकी जानकारी के लिए बता दूं, विनय और सरिता का तलाक 10 वर्ष पूर्व हो चुका था। विनय सरिता की बूआ की ननद का बेटा था वह दोनों संयोग से एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। दोनों में वहीं प्रेम जागृत हुआ और बुआ के घर में भी अक्सर मिलने से उनके विवाह को भी सहमति दे दी गई। विनय की नौकरी हैदराबाद में लग गई।
हैदराबाद में सरिता के पास बोर होने के सिवाय कोई काम नहीं था और विनय की व्यस्तताएं अपनी नौकरी को बचाने के लिए और भी अधिक बढ़ गई थी। बार-बार हैदराबाद से दिल्ली आने के लिए टिकट का खर्चा और बाकी खर्च भी वहन करना मुश्किल ही होता था यहां से ही दोनों के बीच एक तनातनी की शुरुआत हुई।
छोटी-छोटी बातें तूल पकड़ने लगी और गुस्से में एक दिन सरिता अपने मायके में आकर बैठ गई। फिर शुरू हुए आरोप और प्रत्यारोप। वह दोनों तो उसके बाद कम मिले परंतु एक दूसरे को धमकाने के हिसाब से तलाक का नोटिस सरिता के माता-पिता की तरफ से जब दिया गया तो कमी तो विनय के घर वालों ने भी नहीं छोड़ी।
तलाक के समय वकीलों द्वारा कई बार एक दूसरे पर झूठे इल्जाम लगाते हुए दोनों की नजरे खुद ही शर्म से झुक जाती थी परंतु वकील थोड़े ही कोई रुकते थे। उस दिन जब इन्हें तलाक मिला तो यह दोनों खुद हैरान थे गुस्सा और घर में लोगों के अहंकार के कारण यह क्या हो गया? सच में तो दोनों में प्यार का स्रोत सूखा नहीं था। परंतु सच्चाई केवल और केवल तलाक ही थी।
समय बीता परिस्थितियां बदलीं और अब आज 10 वर्ष बाद दोनों बुआ जी की पोती के विवाह पर उपस्थित हुए थे। दोनों का पुनर्विवाह हो चुका था। विनय ने देखा सरिता अपने मायके में भी साड़ी पहनने के बावजूद भी बार-बार सर ढ़क रही थी यह वही सरिता थी जिसने कि विनय के कहने पर भी उनके मामा के घर साड़ी के स्थान पर सूट ही पहना था।
उसने कहा था कि साड़ी में मुझे सांस भी नहीं आती और आज उसने केवल साड़ी ही नहीं पहनी हुई अपितु सिर ढकते हुए दो बच्चे भी संभाल रही है। विनय को वही पुरानी मीठी यादें परेशान करने लगे और सरिता के मासूम चेहरे पर झलकती बेचारगी को वह चाह कर भी दूर नहीं कर सकता था।
थोड़ी देर में ही उन मंत्रों की आवाज के बीच एक कर्कश सी आवाज गूंजी। इस बिट्टू को संभाल लो मुझे तंग कर रहा है। कभी टॉयलेट जाना है और कभी उल्टी आ रही है, इसे देखो क्या हो रहा है? सरिता ने देखा यह वही विनय है जो कि टीवी पर मैच देखते हुए सरिता के कुछ भी कहने पर भड़क जाता था और आज सबके बीच में वह चुप करके अपने बेटे को गोदी में बिठाकर उसके कपड़े बदल रहा था। सरिता का जरा सा ऊंचा बोलना भी उसे बर्दाश्त नहीं था और अब—– लेकिन फिर भी उसे विनय पर गुस्सा नहीं आया सिर्फ दया आ रही थी।
तभी रमेश भैया ने आकर विनय से कुछ दूर बैठे कुर्सी पर सिगरेट पीते हुए सरिता के पति से कहा जीजा जी आप प्लीज फेरों के समय इधर सिगरेट ना पीजिए पंडित जी ने मना करा है। गुस्से में भुनभुनाता हुआ सरिता का पति सिगरेट को फेंक कर वहां से उठकर ही चला गया। विनय सरिता की और ही देख रहा था। एक दिन विनय ने अपने दोस्त के साथ हैदराबाद में सिगरेट पी ली थी तो सरिता ने घर आसमान पर उठा दिया था कि मुझे तो यह बदबू ही बर्दाश्त नहीं होती और उस रात 10 बार मंजन करने के बावजूद भी सरिता ने उसको एक अलग गिलास में ही चाय दी थी।
फेरों में पंडित जी की आवाज आ रही थी, अब दोनों वचन दो किसी भी परिस्थिति में दोनों एक दूसरे का साथ देंगे और एक दूसरे का मान सम्मान बनाए रखेंगे। अब फेरे संपन्न हुए और बड़े लोग दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद दो। विनय और सरिता दोनों की निगाहें एक बार फिर आपस में टकराई। फेरे संपन्न होने के बाद अपने बच्चों को अंदर लेकर जाते हुए
विनय ने सरिता से पूछा तुम अब खुश हो? फीकी मुस्कान, आंखों में आंसू लिए सरिता ने कुछ भी ना कहते हुए भी सब कुछ कह दिया और विनय समझ भी गया। तुम खुश हो? सरिता के पूछने पर विनय ने कहा एक गलती का पश्चात्ताप करने का परमात्मा ने मुझे मौका दिया है और मैं वही कर रहा हूं।
अब आप सात जन्मों के लिए पति-पत्नी हो गए हुए। उधर फेरों के बीच चुहल जारी थी और एक शुभ विवाह संपन्न हो चुका था।
मधु वशिष्ठ, फरीदाबाद, हरियाणा।
शुभ विवाह विषय के अंतर्गत लिखी गई कहानी