एक रिश्ता ऐसा भी – रश्मि प्रकाश

 बेटा दो साल होने को आया तू एक बार घर भी नहीं आया है…. हम दोनों बुढ़ापे में बस तुम सब को देखने को तरसते रहते हैं और तुम हो कि आना ही नहीं चाहते हो।” सुनंदा जी निकुंज से बोली 

“ माँ ऐसे क्यों बोलती हो… आना चाहता हूँ पर एक सप्ताह की छुट्टी मिलती है उसमें लगता ही नहीं मिलना भी होता और वापस आना पड़ जाता…इस बार राशि भी कह रही है बच्चे अब थोड़े समझदार हो रहे … उन्हें इस बार घर की होली दिखाते हैं…. तो देखते हैं छुट्टी मिली तो पक्का आऊँगा ।” निकुंज ने कह कर सुनंदा जी के चेहरे पर मुस्कान ला दिया 

इधर सुनंदा जी बेटे बहू और पोते पोती के आने की बाट जोह रही थी कि एक दिन निकुंज का फ़ोन आया….

“ माँ ऐसा है होली पर मेरा एक दोस्त भी अपनी पत्नी के साथ हमारे घर आने वाला है….. बहुत दिनों से कह रहा था यार मिलना चाहता हूँ…. मैंने कह दिया होली पर आ जा मैं भी आ रहा हूँ …माँ मैं कोशिश करूँगा जल्दी से हम लोग भी उस दिन उसके आने से पहले पहुँच जाए…. अगर नहीं आ पाए तो तुम उनकी ख़ातिरदारी  कर तो लोगी ?” निकुंज ने फ़ोन पर सुनंदा जी से पूछा 

“ हाँ हाँ बेटा क्यों नहीं… बस बता दें वो कब आने वाले हैं और ऐसा करना उन्हें घर का नम्बर दे देना ताकि आने से पहलें वो मुझे फ़ोन करके सूचना दे सके…तू चिन्ता मत कर बस तुम लोग भी जल्दी आ जाओ।” सुनंदा जी ने कहा 

“ हाँ माँ हम भी उसी दिन पहुँचेंगे बस थोड़ा आगे पीछे हुआ तो तुम सँभाल लेना।”माँ की तरफ से आश्वस्त हो  निकुंज ने फोन रख दिया 

होली के दिन सुबह सुबह सुनंदा जी का फोन बजा वो रसोई में पकवान बनाने में व्यस्त थी तो अपने पति राजेश्वर जी से बात करने को कहा ,“हैलो..।”




“ सिंह साहब के घर से बोल रहे हैं?” उधर से आवाज़ आई 

“ जरा आप अपने घर का पता बता देंगे… या लोकेशन शेयर कर दीजिए ….हमें समझ नहीं आ रहा ।”उधर से आवाज़ आई 

फ़ोन पर हाथ रख कर राजेश्वर जी ने सुनंदा जी से पूछा,“ सुनंदा कोई आने वाला है क्या…. हमारे घर का पता पूछ रहा है..।” 

“ हाँ जी वो निकुंज का कोई दोस्त आने वाला है वही पता पूछ रहा होगा…. आप उसको पता बता दो और ये भी पूछ लेना कब तक आएगा?” सुनंदा जी ने कहा 

राजेश्वर जी बात करने के बाद सुनंदा जी से बोले,“एक घंटे में आ रहा है…. लो उसका दोस्त भी आ जाएगा पर हमारा बेटा कब आएगा कुछ बताया है उसने…?” 

“ जी बोला तो है आज आ जाएगा पर कब तक आएगा ये नहीं बताया वैसे भी जानते ही हैं रंगो से दूर ही रहता बस हमसे मिलने ही आएगा… चलिए थोड़ी मदद करवा दीजिए…उसका दोस्त अपनी पत्नी के साथ आने वाला है तो थोड़ा बहुत नाश्ते का प्रबंध कर लेते हैं..  उपर से होली के पकवान रसोई से बाहर कहाँ निकलने देते।”कह  सुनंदा जी तैयारियों में लग गई 

लगभग सवा घंटे बाद एक लड़का सामने खड़ा था… राजेश्वर जी और सुनंदा जी को प्रणाम कर वो घर के अंदर प्रवेश कर गया…

“ बेटा तुम अकेले आए हो… तुम्हारी पत्नी नहीं आई ?”

सुनंदा जी ने पूछा 

“ जी वो वो… आगे कुछ कहता तब तक उसका फ़ोन बज उठा और वो फोन पर बात करने लगा,“ हाँ माँ मैं ठीक से पहुँच गया… अंकल आँटी से मिल लिया… बस दो दिन की बात है मैं अपना इन्टरव्यू देकर आ जाऊँगा तुम चिन्ता मत करना।”

वो बातों में लगा इतने में सुनंदा जी उसके लिए चाय नाश्ता ले आई… वो शख़्स बड़े प्रेम से चाय नाश्ता करते करते राजेश्वर जी के साथ बातचीत करने में व्यस्त हो गया ।

उस शख़्स को आए अभी दो घंटे ही बीते होंगे कि सुनंदा जी का फ़ोन फिर बज उठा…

“ हैलो “ सुनंदा जी ने कहा 

“ हैलो आँटी  निकुंज आ गया है क्या जरा उससे मेरी बात करवा देंगे….।” उधर से आवाज़ आई 

“ निकुंज तो अभी तक घर नहीं आया है पर तुम कौन बोल रहे हो..?” सुनंदा जी ने पूछा 




“ वो आंटी  मैं आज अपनी पत्नी के साथ आपके घर आने वाला था पर टायर पंक्चर होने की वजह से थोड़ी देर हो जाएगी… यही बताने को निकुंज के मोबाइल पर फ़ोन कर रहा था पर नॉट रिचेबल बता रहा इसलिए सोचा घर पर फ़ोन कर दूँ ।” निकुंज के दोस्त ने कहा

“ पर घर पर तो कोई आया हुआ है … तुम्हारा नाम क्या है बेटा?” सुनंदा जी ने पूछा 

“जी मैं अभय…निकुंज से बात हो तो कृपया उसे बता दीजिएगा ।“ कह अभय ने फ़ोन रख दिया 

सुनंदा जी रसोई से उस लड़के को देख रहे थी और सोच रही थी ,“ हे भगवान फिर ये कौन आ गया ?”

जल्दी से रसोई में राजेश्वर जी को बुलाया और बोली ,“अजी ये वो लड़का नहीं है जो आने वाला था… ये तो कोई और है… आपने सही से कुछ पूछा नहीं उससे?”

“फोन पर सिंह साहब कर रहा था तो मुझे लगा हमें ही खोज रहा होगा… अब क्या करें… पता नहीं कोई बदमाश हुआ तो …. ।“ राजेश्वर जी बोले

डर के मारे दोनों की घिग्घी बँध चुकी थी । 

निकुंज का फ़ोन नेटवर्क एरिया से बाहर बता रहा था करें तो क्या करें सोचते हुए राजेश्वर जी ने सोचा बात करने से ही कुछ पता चलेगा….

“ अरे बेटा तुम्हारा नाम क्या है….ये तो बताओ तुम कहाँ से आ रहे हो… यहाँ क्या काम है…. और तुम्हारे मम्मी पापा सब कैसे हैं?” राजेश्वर जी डरते डरते आवाज़ को संयत कर पूछे

“ जी मेरा नाम अली है…… हमारा गाँव एक ही है ना नादिरगंज आप भूल गए… हसन जी का बेटा हूँ… दो दिन बाद मेरा एक इन्टरव्यू है तो अब्बा ने कहा शहर में सिंह साहब के घर चले जाना… उनसे हमारी बहुत अच्छी जान पहचान है….वो तुम्हारे इन्टरव्यू में मदद भी कर देंगे… आपका नम्बर भी उन्होंने ही दिया था ।” अली ने कहा 

“ पर बेटा मैं तो किसी हसन जी को नहीं जानता… ना मेरा गाँव नादिरगंज  है… एक बार ज़रा मुझे वो पता दिखा सकते?” घबराते हुए राजेश्वर जी ने पूछा 

“ जी अंकल जी ये देखिए… ।”कहते हुए अली ने एक पेपर का टुकड़ा सामने रख दिया 

“ पेपर पर नाम देखते राजेश्वर जी हँसते हुए बोले,“ तुम्हें सुरेश सिंह के घर जाना था पर फ़ोन पर तुम सिंह साहब बोले तो मुझे लगा मुझे ही खोज रहे हो… पर बेटा सुरेश जी तो कब का ये शहर छोड़ कर जा चुके हैं अब वो कही और रहते है इसकी जानकारी लगता है तुमलोगों को नहीं होगी।” राजेश्वर जी ने कहा 

“ ओहहह सॉरी अंकल मैंने ही गलती कर दी मुझे फ़ोन पर पूरा नाम पूछना चाहिए था…. कोई बात नहीं मैं अभी कही बाहर रहने का इंतज़ाम कर लेता हूँ ।” कहकर अली अपना बैग लेकर निकलने ही जा रहा था कि निकुंज आ गया 

सवालिया नज़रों से राजेश्वर जी से पूछा,“ ये कौन?” 

राजेश्वर जी ने सारी बात बता दी…. 

“अली आज होली के दिन तुम कहाँ जाओगे… ऐसा करो हमारे घर में ही रह जाओ… हमारे साथ होली खेलो.. अभी मेरा एक दोस्त भी आने वाला है…..ये लोग तुम्हें मेरा वही दोस्त समझ बैठे थे… तुम्हारे फ़ोन कॉल ने इन्हें भ्रमित कर दिया… कोई बात नहीं भाई आज तुम गलती  से हमारे घर आ गए अब आ गए हो तो रूक जाओ।” कह  निकुंज ने अली को रोक लिया 

अली बार बार माफ़ी माँग रहा था उसके एक फ़ोन कॉल ने उसे गलत घर में मेहमान बना दिया था।

अली उनके आग्रह पर रूक गया.. राजेश्वर जी सुरेश जी को अच्छी तरह जानते थे उन्हें फोन कर अली के बारे में भी बता दिया 

“ माफ़ करियेगा सिंह साहब मेरी वजह से आपको परेशानी हुई…. ये लोग बहुत भले लोग है पहली बार उनके घर से कोई नौकरी करने का सोच कर निकला है…आपने उसे पनाह और अपनापन देकर मुझे कृतज्ञ कर दिया ।” सुरेश जी ने कहा 

“ अरे कोई नहीं सुरेश भाई …. आप हमारे पड़ोसी रहे हैं इतना तो हम कर ही सकते हैं ।” राजेश्वर जी ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा 

 निकुंज के दोस्त के आने के बाद घर में रौनक़ आ गई थी… राशि और उसके दोस्त की पत्नी ने मिलकर सुनंदा जी को रसोई से बाहर निकाल बच्चों के साथ लगा दिया ।

सब एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली मनाने में व्यस्त हो गए… तरह तरह के पकवान का आनंद लेते रहे।

अली ने भी सबके साथ बहुत मज़े किए… 

अपने इन्टरव्यू के दिन वो सुनंदा जी और राजेश्वर जी का आशीर्वाद लेकर निकला….जाते जाते उसने उनसे बस इतना ही कहा,“ आपदोनों के आशीर्वाद से ये नौकरी मिलते ही फिर मिलने आऊँगा अचानक ही सही शहर में मुझे एक परिवार जो मिल गया है ।”

अली की नौकरी लगते वो सुनंदा जी और राजेश्वर जी से मिलने आया इस बार अजनबी बन कर नहीं बल्कि उनका बेटा बन कर …अनजाने में ही सही अली ने उनके साथ एक रिश्ता बना लिया था … 

इसी शहर में नौकरी लग गई तो निकुंज ने सलाह दिया उपर एक कमरे का सेट अली के रहने के लिए दे दिया जाए…. मम्मी पापा को भी सहारा रहेगा और हम भी बेफ़िक्र रह सकते है ।

अली अब उनके घर का ही सदस्य बन चुका था ।

दोस्तों कभी कभी कुछ रिश्ते ऐसे भी बन जाते है….अजनबी से डर सबको लगता है पर जब कोई यक़ीन दिलाए तो भरोसा कर लेना चाहिए…इस बारे मे आप क्या कहते हैं?

मेरी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।पसंद आये तो उसे लाइक करे और कमेंट्स करे।

धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

मौलिक रचना 

#एक_रिश्ता

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!