पिछले जन्म का रिश्ता – सुषमा यादव

,,उसका पिछले जन्म का है , मुझसे रिश्ता कोई,

,,वो कौन थी,, जो हमेशा के लिए एक दर्द दे गई।।

मेरी दोनों बेटियां बोर्डिंग स्कूल नैनीताल में पढ़ने चली गईं थीं । मैं जब स्कूल से घर आती, तो बच्चों के बिना घर सूना देखकर बस रोने को मन करता,,सात,सात वर्ष की बच्चियों के चले जाने से मन बहुत ही दुःखी रहता,,, इतनी सूनी जिंदगी, इतनी तन्हां कभी नहीं थी मैं,।

मैंने इनसे भी बोलना छोड़ दिया था, एक बेटी को भेजा तो दूसरी को तो नहीं भेजना था,, एकदम ख़ामोश रहने लगी, रोने और याद करने के सिवाय लगता था कि मेरी जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं,आप बताइए,,भला , बच्चों के बिना भी कोई घर होता है ।

ये एक दिन मुझे सांत्वना देते हुए दौरे पर चले गए,,,उस दिन होली दहन था, पूर्णिमा की रात थी,जब होली जलने लगी तो कालोनी की महिलाएं मुझे भी जबरन ले गईं।

मैं ख़ामोश, ग़मगीन होकर जलती हुई होली को अश्रुपूरित नेत्रों से देख रही थी,, क्यों कि मेरी बेटियों को होली खेलना बहुत ही पसंद था,,,,,,,, रात्रि के दस बज रहे थे, ये दौर से लौट आए,जीप घर में खड़ी कर के मेरे पास आए,,, बोले कि चलो घर,,देखो , मैं तुम्हारे लिए क्या ले आया हूं,,

मैं अनमने ढंग से चल पड़ी, जीप में झांकते हुए कहा कि, ये क्या??इसे क्यों ले कर आ गये,, मैं उसे देख कर हैरान रह गई,, ये बोले, तुम्हारा अकेलापन दूर करने के लिए,, तुम्हारे सहारे के लिए,,, मैंने, मुंह बिचकाकर कहा,, बच्चों को तो इतनी‌ दूर भेज दिया, इसे लाये हो मन बहलाने के लिए,, खैर,,

उसे उठा कर घर में लाया गया, वह मासूम सी,डरी हुई निगाहों से हमें देखती हुई एक कोने में दुबक कर बैठ गई,,। मैंने उसे दुलारा, पुचकारा,दूध और बिस्कुट दिया,पर उसने किसी भी चीज को छुआ तक नहीं,, मैंने चिढ़ कर कहा,,ये एक और सिर दर्द ले आये । इसी तरह दो दिन बीत गये, बहुत ही छोटी थी, मुझे बड़ी दया आई, मैंने उसे गोद में उठा लिया और पुचकारा, दूध पिलाया, उसने पी लिया,, मैं बहुत खुश हुई,,दूध पिलाकर मैं जैसे ही मुड़ी,पलट कर देखा तो वो मेरे पीछे पीछे आ रही थी,, मैं जिधर जाती वो उधर ही आती, ये देखकर मैं बहुत ही खुश हो गई,

फिर तो जैसे वो मेरा साया बन गई, हमने उसका नामकरण किया,, जूली,, पहले ही दिन जब उसे जूली कह कर पुकारा तो ऐसे देखने लगी, जैसे इस नाम से पूर्व परिचित हो,, पूरी कालोनी में जूली की धाक जम गई,, बच्चे, बड़े सब उसे देखने आते,,सब तारीफ़ करते,,कितनी सुन्दर और प्यारी है,, कितने बड़े, बड़े बाल है,, क्या नाम है,,पूरे घर में बेखौफ घूमती, और हां, अपने बिस्तर पर बिना तकिया लगाये सोती नहीं थी,, बड़ों के जैसे तकिये पर सिर रखकर ही होती थी,,,,, मेरे साथ सोफे पर आकर धम से बैठ जाती,जब मैं कहती,, जूली, पापा आ गए,तब तेजी से बाहर भागती, उछल कर ऊपर चढ़ कर,कूदती, चिल्लाती, अपने प्यार का इजहार करती,, बेचारी बेजुबान थी ना,, बोलती नहीं थी,पर हमें कभी भी महसूस नहीं हुआ कि वह बोल नहीं सकती,




मैं धीरे से भी कहती , जूली अंदर चलो, मैं दरवाजा बंद कर रही हूं,,उठ कर तुरंत अंदर आ जाती,,

हम दोनों कालोनी का एक साथ चक्कर लगाते,, मेरी दोनों बेटियां कई बार कहने पर भी नहीं सुनतीं थी,पर क्या मजाल, जूली को एक बार से दुबारा कहना पड़ा हो,,इतने आज्ञाकारी अपने बच्चे क्यों नहीं होते हैं,,,

सुबह सुबह जब दूध वाला आता तो तेजी से दौड़ते हुए ऊं, ऊं आवाज करती, कभी दरवाजे को खोलने का‌ प्रयास करती, कभी हमारे ऊपर उछलती , कभी रसोईं

में जाती,कि चलो,दूध लो, और मुझे दो,,अपना कटोरा लेकर सामने खड़ी हो जाती,,उसे दूध दिये बगैर हम रसोईं में नहीं जा सकते थे,, एक बार मेरी काम वाली बाई ने डांटकर कहा,, जूली,चलो बाहर,,जब देखो, घर में घुसी रहती हो, सफाई करने दो, वह चुपचाप जो बाहर जाकर बैठी,, तो दोपहर तक अंदर नहीं आई,, मैंने जब जाकर उसे प्यार से बुलाया तब अंदर आई,बाई को बड़ा आश्चर्य हुआ कि,ये कितना कहना मानती है,,

इन्होंने मुझे उसमें पूरी तरह से रमा हुआ देखा तो बहुत खुश हुए और बोले कि तुम तो अब बहुत खुश रहती हो, यदि कहो तो मैं इसे वापस भेज दूं, जहां से लाया था,,ये सुनकर मैं कांप उठी,, नहीं, नहीं, अब मैं इसके बगैर नहीं रह सकती,, और ना ही ये मेरे बिना रह सकती है,, मैं थोड़ी देर के लिए कहीं चली जाती हूं तो रो रोकर हंगामा कर देती है,

इतना लगाव हो गया था कि मैं अपने बच्चों को भी भूलने लगी थी, बच्चे आये तो उसे देख कर बहुत खुश हुए,, बच्चों के साथ साथ, जूली भी नानी, दादी के गांव प्रतापगढ़ घूम आई,, गंगा जी के दर्शन कर के अपने ऊपर गंगा जल भी छिड़कवा लिया,,,

हम सब उस पर जान छिड़कते थे,, जूली ने दो बच्चों को जन्म दिया था,, हमने नाम रखा,,,टफी,मफी,, बड़े ही प्यारे थे, एक को हमारी स्कूल की एक मैडम ले गईं और एक को कालोनी में ही मेरी सहेली ले गई, वो आता और अपनी मां के साथ खूब खेलता,,

इस तरह हमारे दिन अब बहुत ही बेहतरीन ढंग से गुजर रहे थे,,कि चुपके से काली अमावस्या की रात हमारे खुशियों को निगलने कब दबे पांव आ गई,, हमें पता ही नहीं चला,,,

एक रात वो चुपके से बाहर निकल गई,, हमने बहुत ढूंढा, आवाज लगाई,पर नहीं आई, हमने गुस्से में आकर गेट की सिटकनी लगा दी,,,हम अंदर आ गये और टी, वी , देखते हुए कब सो गए हमें पता ही नहीं चला,,




रात भर बारिश होती रही, सुबह जब हम पांच बजे उठे तो ये बोले कि , जूली को अंदर नहीं किया था क्या,,, मैंने आश्चर्य से कहा कि आपने नहीं किया था क्या ?? मैं तो सो गई थी, नींद ही नहीं खुली,, मैं घबराकर बाहर भागी,वह गेट के बगल में चुपचाप बैठी थी ,, मेरी आवाज़ सुनकर वह उठ कर खड़ी हो गई,, वह पूरी तरह से भीगी , कांपती हुई आई,, मैंने जल्दी से दुखी हो कर उसे नहलाकर , तौलिये से पोंछा।

वह चाहती तो पीछे से आ सकती थी, वह गेट भी खोलना जानती थी,, लेकिन शायद उसका ज़मीर इसकी इजाज़त नहीं दे सका,,वह अपना अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकी,, उसे लगा कि गुस्से में आकर हमने गेट बंद कर दिया,, उसने अपने आप को बेहद अपमानित महसूस किया और उस दिन से एकदम ख़ामोश हो गई,,,उसे तेज बुखार हो गया था, खाना पीना सब छूट गया, मैं बड़े प्यार से ,पुचकार कर खिलाने की कोशिश करती,पर उसने तो रूठ कर मुंह ही फेर लिया था,, हमने डाक्टर से बहुत इलाज करवाया, इंजेक्शन, दवाइयां, टानिक सब आया,पर जूली ने तो जिंदा ना रहने की कसम ही खा ली थी,, हमने दूध, जूस, पानी सब पिलाने की कोशिश की,पर बगल से सब निकाल देती,,बस हम दोनों के बुलाने पर सूनी, सूनी आंखों से देखती और फिर मुंह फेर लेती,,

एक दिन लड़खड़ाते हुए इनके पास आई और लिपट गई,, जैसे वह अपना प्यार जता रही हो, कृतज्ञता व्यक्त कर रही हो,, मैं

बहुत दुःखी थी, बिस्तर पर लेटी हुई थी,, उसने मेरे कंधे पर अपना सिर रख दिया, और मुझसे भी प्यार जताने लगी,हम दोनों की आंखों से आंसू बहने लगे,, सोचा कि,आज क्या बात है,,, मैंने इनसे कहा कि,,या तो ये ठीक हो रही है,या अंतिम विदाई लेने आई है,,

हमने उसे पकड़ कर उसके बिस्तर पर लिटा दिया, सचमुच ही वह हमसे जाने की आज्ञा लेने आई थी, फिर वो नहीं उठी,, कोई डॉक्टर उसकी बीमारी नहीं समझ पाये, कहते थे,सब नार्मल है, फिर ये ठीक क्यों नहीं हो रही है, जाने के दो दिन पहले वो बहुत ही तड़प रही थी, मुझसे उसकी ऐसी हालत देखी नहीं जा रही थी, रक्षा बंधन पूर्णिमा के दिन मैंने भगवान से प्रार्थना किया और कहा कि,या तो इसे अच्छा कर दो,या इसे मुक्ति दे दो,,,

शाम होते होते मैंने उसे थोड़ा दूध, पानी पिलाया और सोच में डूब गई,,,कि यह‌ ठीक भी नहीं हो रही है, और इसके प्राण भी क्यों नहीं निकल रहे हैं,,,इतने में ख्याल आया कि ,,मफी, को ले आऊं,, मैंने जूली से कहा,, जूली,देखो, तुम्हारा बेटा मफी आया है, उसने झट से आंखें खोल दी और उसे दुलारने लगी,, उसकी आंखों से आंसू बहने लगे,, और उसकी आंखें बंद होने लगी,, वो हिचकी लेने लगी,, मैं भाग कर आई और

गंगा जल, तुलसी उसके मुंह में डाल दिया और कहा कि,, जूली,जाओ,इस योनि से मुक्त हो जाओ,, उसने हम सबके देखते, देखते दो हिचकी लिया और दम तोड़ दिया,,हम बड़े ही आश्चर्य में थे कि क्या इसके प्राण अपने बेटे में अटके थे, क्या मनुष्यों के समान,मूक जानवरों में भी इतनी ममता होती है,,,

जी हां, सही समझा आपने,, वह हम सबकी प्यारी, चहेती, प्राण प्रिय और कोई नहीं, मेरी डॉगी थी ,,,, रक्षा बंधन सावन पूर्णिमा के दिन शाम 5.30 बजे वह तो हमसे विदा हो गई,,पर मुझे फिर तन्हां कर गई,,वही सूनसान घर,वही डरावनी रातें,,, मुझे वो हमेशा के लिए छोड़ गई और मेरे दिल में कभी ना भरने वाला ज़ख्म दे गई,,,,

हम अक्सर सोचते हैं कि आखिर वह कौन थी,, पिछले जन्म में उसका और मेरा जरूर कोई रिश्ता था,, जन्म, जन्म का बंधन था,, तभी तो उससे मेरा आत्मिक लगाव था, और होली पूर्णिमा पर आकर,राखी सावन पूर्णिमा के पवित्र दिन पर गंगाजल, तुलसी, मुंह में डाल कर, मुझे आत्मिक प्यार देकर अनंत यात्रा पर चली गई,,, हमने बकायदा उसे दफनाया, उसके कब्र पर फूल चढ़ा कर अश्रुपूरित नेत्रों से अंतिम 

विदाई किया,,,, मेरे पिता जी कहते हैं,, ऐसे पर्व पर जूली का देहावसान यह साबित करता है कि,,वह कोई ऊंची आत्मा थी, जिसने प्रारब्धवश एवं कर्म वश पशु योनि में जीवन धारण किया और अब वो मनुष्य योनि में निश्चित ही नया जीवन प्राप्त करेगी,,,

 *** तेरा ,मेरा ,रिश्ता पिछले जन्म का है कोई,,,

यूं ही नहीं दिल में बस जाता कोई,,********

सुषमा यादव,,

 प्रतापगढ़,उ. प्र. 

#एक_रिश्ता 

स्वरचित, मौलिक

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