पंडित दीनानाथ जी, बेटी के लिए लड़का ढूंढ- ढूंढ कर परेशान हुए जा रहे थे। लड़का ढूंढते हुए, उन्हें कई वर्ष हो गए, जब बेटी बाईस वर्ष की ही थी, तभी से उन्होंने लड़का देखना आरंभ कर दिया था, सोच रहे थे -समय रहते ही, बेटी का विवाह हो जाए और वो सुरक्षित अपनी ससुराल चली जाए, इससे बेहतर उसके जीवन के लिए और क्या होगा ?
ऐसा नहीं है, पंडित जी, अपने उत्तरदायित्व से मुक्त होकर, अपना” पल्ला झाड़ लेना चाहते थे।” उन्होंने बेटी को पढाया -लिखाया और सोचा -आजकल बेटियों के विषय में, बहुत चर्चाएं चलती रहती हैं।
आजकल की औलाद किसी की सुनती नहीं है, कोई कहता है-‘ आजकल की बहुएं ठीक नहीं आ रही हैं, अपने बड़ों की सेवा नहीं करती हैं। अनेक प्रश्नों से रूबरू होते हुए, उन्होंने सोचा- ‘समय रहते ही, पौधे को उसकी सही जगह रौंप दिया जाए, तो वह अच्छे से वहां फल- फूल जाएगा,अपनी जड़ें जमा पायेगा। ‘
किंतु यहां भी उनकी सोच गलत ही रही, क्योंकि जब वह लड़का देखने जाते , तो लड़के वाले कहते- हमें लड़की नौकरी करने वाली चाहिए।
पंडित जी चाहते थे – कि बेटी को पढ़ा- लिखा दिया अब उसे अपने घर पर, अपनी ससुराल वालों के अनुसार अपना जीवन यापन करना चाहिए। ताकि वह उस परिवार को भी अपना सके। उनका सोचना था -परिवार का पुष्प ,परिवार में ही खिलता अच्छा लगेगा। एक बार कन्या का पैर घर से बाहर हो गया ,बाहर की हवा लग गयी ,उसकी सोच भी परिवर्तित हो जाएगी।
अभी तो यह हमारा कहना मानती है किन्तु जब स्वयं कमाने लगेगी तब स्वतंत्र जीवन जीना चाहेगी ,अपनी इच्छानुसार जियेगी ,तब विवाह के पश्चात अपनी ससुराल में कैसे निबाह पायेगी ?देखा जाये तो, पंडितजी की सोच अपनी जगह सही थी।
जब उनके विचार, उनकी बहन” गौमती” ने सुने तो बोली -भइया ! आपकी जगह आपकी बात सही है किन्तु आजकल जमाना बदल रहा है।आप क्या चाहते हैं ?आपकी बेटी पिछड़ जाये ,हमारी बेटी समझदार है ,अच्छे घर और अच्छे संस्कारों के बीच पली -बढ़ी है। अपने पैरों पर खड़ी होगी तो उसका ‘आत्मविश्वास’ भी बढ़ेगा ,आज के जमाने के साथ चल सकेगी।
जिन्हें बिगड़ना होता है या रिश्ते निबाहने नहीं होते हैं ,वे कम पढ़ी -लिखी भी घर के वातावरण को नर्क बना देती हैं इसीलिए मेरा कहना मानिये और इसे बाहर नौकरी करने भेजिए ! आप पर भी ‘दहेज़’ बोझ नहीं रहेगा ,क्या सही है ,क्या गलत ?ये स्वयं निर्णय लेने लायक़ बन जाएगी।
पंडितजी पर अपनी बहन के विचारों का असर हुआ और बोले -तुम कहती हो तो मैं बेटी को बाहर नौकरी के लिए भेज दूंगा। तब उन्होंने अपनी बेटी छाया को समझाया – बेटी !अपने घर का मान -सम्मान और गौरव होती है। मैं तुम्हें इस तरह यहाँ रोककर तुम्हारे पंख काटना नहीं चाहता ,तुम मेरे आंगन की प्यारी सी चिड़िया हो ,मैं तुम्हें उड़ने की इजाजत देता हूँ ,
मैं चाहता हूँ ,तुम जीवन में बहुत उन्नति करो ! वैसे तो अधिकतर माता -पिता का यही स्वप्न होता है कि उनकी बेटी इस घर से दूसरे घर में सुरक्षित हाथों में जाये किन्तु अब हमें समयानुसार अपनी सोच को बदलना होगा और अपना आसमान स्वयं चुनना होगा। ‘
ये बात हमेशा स्मरण रखना ,दुनिया में अच्छे -बुरे सभी तरह के लोग मिलते हैं ,इस जीवन पर तुम्हारा अधिकार है ,तुम्हें अपनी जीवन को कैसे संवारना है ?एक विश्वास के साथ ,हम तुम्हें इस शहर से ,अपने से दूर भेज रहे हैं कि तुम, कभी हमारा सिर झुकने नहीं दोगी ,मैं उम्मीद करता हूँ ,हमारे निर्णय पर हमें अफ़सोस नहीं होने दोगी।
बेटी ने पिता की बात सुनी और उन्हें विश्वास दिलाते हुए बोली -पापा !आपके दिए संस्कार मेरे अंदर हैं ,जब आपने मुझ पर इतना बड़ा विश्वास दिखाया है तो उसे टूटने नहीं दूंगी किन्तु पापा ,ये बाहर जाने की ही बात नहीं ,
आपके विश्वास की भी है ,आप उन अनजान लोगों पर भी तो विश्वास करके मुझे विदा करते जिनको न ही आप जानते हैं और न ही मैं !तब भी विश्वास ही तो करना पड़ता है ,तब वो विश्वास मुझ पर जतलाइये ,ताकि मेरा मनोबल बढ़े।
बेटी की बात सुनकर पंडितजी भावुक हो गए और बेटी को सफल होने का आशीर्वाद दिया। कुछ दिनों पश्चात छाया के काम को देखकर उसकी उन्नति हुई और शीघ्र ही उसका एक अच्छे लड़के से विवाह तय हो गया। आज उसी बेटी के ”शुभ विवाह ”में उन्होंने सभी पाठकों और लेखकों को आमंत्रित किया है।
स्वरचित् – लक्ष्मी त्यागी