श्रवण कुमार – दीपनारायण सिंह

बिस्तर पर पड़ा हुआ एक लड़का,यही कोई चौदह पंद्रह साल का होगा |उसका बदन बुखार से तप रहा है |वह कई दिनों से बिस्तर पर पड़ा हुआ है |मल मूत्र का त्याग भी बिस्तर पर ही करने लगा है |माँ पूरे मनोयोग से सफाई कर रही है |सफाई कर,दवा आदि खिला,वह किचन में चली जाती है |वह घर में अकेली है |पाँच बरस पहले ही वह विधवा हुई थी |उसका पति किसी बैंक का चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी था |सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गयी थी |तबसे वही अपने लाल को संभाले हुई थी |वह पूरे मनोयोग से अपने पुत्र के कैरियर को बनाने में लगी थी |माँ  माँ  माँ , ये स्वर सुनकर  सब्जी भुनती हुई माँ का ध्यान भंग होता है,सब्जी भुनना छोड़ वह बदहवास सी दौड़ी आती है |लड़का कह रहा है,माँ अब मै नही बचूंगा,मेरा पूरा बदन जल रहा है,कंठ भी सूख रहा है |माँ अश्रुपूरित नेत्रों से ढाढ़स बंधाती है,और कहती है ,बेटा सब ठीक हो जायेगा |डॉक्टर साहब कह रहे थे कि तु थोड़े दिनो में ही ठीक हो जायेगा |वह उसे पानी पिलाती है,फिर माथा सहलाने लगती है |लड़का नींद में चला जाता है |वह फिर से किचन में जाती है,सब्जी जल चुकी होती है |जली हुई सब्जी को फेंक,दुबारा सब्जी काटने लगती है |चेहरे पर कोई शिकन अथवा झूँझलाहट के भाव नही,सिर्फ चिन्ता की लकीरे हैं ,पुत्र की सेहत को लेकर |

कुछ वर्षों बाद दूसरा


दृश्य।शाम का समय है |एक आलीशान बंगले के भीतर,एक शानदार खुशबूदार,कमरे में,एक जवान पुरुष(वही उक्त लड़का)अपनी पत्नी के साथ लूडो खेल रहा है |साथ साथ हँसी ठिठोली भी कर रहा है |पुरुष रेलवे का कोई बहुत बड़ा अधिकारी है |कुछ घंटे पहले ही ऑफिस से आया है |दूसरे कमरें में एक वृद्ध महिला बुढ़ापा और बुखार से पीड़ित बिस्तर पर पड़ी हुई है |कमरे में गंदगी का अंबार है |कमरा दुर्गंध से भरा हुआ है |माँ पानी के लिये बार बार बेटे और बहू को पुकार रही है |घर का नौकर सब्जी खरीदने गया हुआ है |पुरुष पत्नी की ओर देखता है,पत्नी कहती है,नही जी, मै उस कमरे में नहीं जाऊंगी ।बदबू से मुझे उल्टी सी आने लगती है |पुरुष झुंझलाकर एक ग्लास में पानी लेकर उस कमरे में जाता है |उसने मुँह और नाक को रूमाल से दबा रखा है |वह अपनी माँ पर चिल्ला रहा है,एक मिनट भी तुम मुझे घर में चैन से रहने नही देती हो |तुम्हे बिना मतलब मुझे पुकारने की लत लग गई है |इस घर में मै चैन से बैठ भी नही सकता |वह टेबल पर ग्लास लगभग पटकने के अंदाज में रखकर चला जाता है |वृद्ध महिला बहुत देर से प्यासी पड़ी थी ,वह तीव्र गति से पानी गटकने लगी |इस गटकने के क्रम में पानी उसके साँस नली में प्रवेश कर गया |वह छटपटाती हुई बिस्तर पर गिर पड़ी |चंद मिनटो में ही उसके प्राण पखेरू उड़ गये |उस समय भी उसके आसपास कोई नही था |

सुबह सुबह लोगो ने देखा,अर्थी को शानदार तरीके से सजाया जा रहा है |बेटे और बहु रो रहे हैैं |उन दोनो का रोना कितना सच्चा है,ये मै नही बता सकता |दाह संस्कार के बाद शानदार तरीके से श्राद्धकर्म किया गया |लाखो खर्च हुए |ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोज के साथ दान में ढेर सारी कीमती चीजे मिली |अनेक यतीमो और गरीबों को कई दिनों तक भोजन कराया गया |अनाथालयों में मोटी मोटी रकमे दान में दी गई |मूर्तिकार को ऑर्डर देकर माँ की एक मूर्ति बनवाई गई,फिर उस मूर्ति को पूजाघर में स्थापित किया गया |अब वहाँ देवी देवताओं के साथ उस मूर्ति को भी धूप अगरबत्ती दिखायी जाती है |लोगबाग आपस में बतियाते हुए कह रहे थे,बेटा हो तो ऐसा,यह अपनी माँ से कितना प्रेम करता था |ऐसे ही पुत्र को तो श्रवण कुमार कहा जाता है |

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