स्कूल और वो चवनप्राश का डिब्बा,,,,,,, – मंजू तिवारी

 बात  आज से लगभग 35साल पहले की है।  जब प्रेरणा अपने गांव से  शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने जाती थी प्रेरणा का जन्म अपने माता-पिता के विवाह के 6-7साल बाद बड़ी मन्नत उसे हुआ था वह  संयुक्त परिवार में सब की बहुत लाडली बच्ची थी पापा दादा के सहयोग से व्यापार तथा नौकरी किया करते थे तो पैसे की ठीक ठीक- आमदनी थी जब प्रेरणा स्कूल जाती तो स्कूल जाते वक्त उसे पैसे चाहिए होते चूरन, बिस्किट, मीठी गोली, टॉफी, इत्यादि पापा की कई बैंक वालों से बहुत अच्छी जान पहचान थी तो वह मम्मी को  चमकदार ढेर सारी चवनिया लाकर दे देते मम्मी उन ढेर सारी चवन्नीयो को खाली किए हुए बड़े से चवनप्राश के डिब्बे में भर देती जब प्रेरणा मम्मी से पैसे मांगती तब मम्मी उसी डिब्बे से लेने के लिए बोलती कहती एक मुट्ठी ले लेना  प्रेरणा उस चवनप्राश के डिब्बे को खोलती और उसमें खूब जोर लगाकर एक मुट्ठी चमकीली नई चवनिया भर लेती। और वह बड़ी खुश होती पूरी छूट दे दी  एक मुट्ठी में भर लो तो वह मुट्ठी को बहुत जबरदस्त तरीके से भर्ती और स्कूल चली जाती जब उन चबनियों को गिनती तो दो से ढाई रुपए ही होते थे दो ढाई रुपए में ठीक-ठाक खाने पीने की चीजें आ जाती थी और वह उन पैसों से अपनी मनपसंद चीजें ले थी घर आकर मम्मी से कहती मम्मी वह तो दो ही रुपए निकले थे मम्मी कहती कल ना खूब अच्छे से भरना तो बहुत सारे पैसे मिल जाएंगे जोर से भरने के लिए मना किसने किया था,,, यह बात मम्मी पापा को बताती तो पापा धीरे-धीरे मुस्कुराते रहते जहां तक प्रेरणा को याद है। पापा ने कभी भी उस चमनपरास के डिब्बे को चमकीली  चवन्नीयो से कभी खाली नहीं होने दिया जब तक प्रेरणा छोटी रही  स्कूल में प्रेरणा बड़े गर्व के साथ कहती मेरे पापा मेरे लिए नए नए पैसे लेकर आते बहुत सारे डिब्बे में भरे रखे हैं जिनमें से मैं रोज लेकर आती हूं। पापा की इन चमकीली नई  चबनियों से ही प्रेरणा ने पैसे का हिसाब किताब और मैनेजमेंट सीखा ,,इन पैसों को कैसे मैनेज किया जाता है और बचत भी कैसे की जाती है ।जो आज तक उसके काम आ रहा है ।प्रेरणा अपने पति की भी शुक्रगुजार है ।इन्हीं चवन्नीओ की तरह पूरी आजादी से पति के भी पैसों को  लेती है ।और मैनेजमेंट के साथ खर्च करती है।,,,,,,,

मंजू तिवारी ,गुड़गांव

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