साँवली सलोनी -लक्ष्मी कुमावत 

“आहा! मेरी बड़ी बहन की बहु तो कितनी गोरी आई है। मैं भी अपने सुमित की जब शादी करूंगी तो ऐसी ही गोरी बहू लेकर आऊंगी, जिसका रंग दूध जैसा उजला हो”

” अरे तुम भी क्या बात लेकर बैठ गई? जब से अपनी बहन के घर से आई हो, तब से बस ‘गोरी बहू, गोरी बहू’ एक ही रट लगा रखी हो”

” क्यों ना लगाऊँ रट? एक ही तो बेटा है मेरा। कम से कम उसकी शादी में तो मन की सारी इच्छा को पूरी करूंगी। देखना ऐसी बहू लेकर आऊंगी कि दुनिया देखती रह जाए”

कौशल्या जी जब से अपनी बड़ी बहन के घर से लौट कर आई है, तब से बस एक ही ख्वाब मन में लिए बैठी है कि जैसे उनकी बड़ी बहन की बहू गोरी और सुंदर आई है, वैसे ही उनकी बहु भी बहुत गोरी और सुंदर हो।

कौशल्या जी श्रवण जी की पत्नी और सुमित और शालिनी की मां है। सुमित भी गोरा, सुंदर, बांका जवान है, जो हाल फिलहाल ही सरकारी नौकरी पर लगा है और जिसके लिए कौशल्या जी जान लगा करके लड़की देखने में लगी हुई है। इकलौता बेटा है इस कारण कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।

आखिर उन्हें सुमित के लिए तनु पसंद आई। तनु बेहद ही खूबसूरत और गोरी चिट्टी लड़की थी। बस यही बात उन्हें भा गई। इसलिए उन्होंने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया कि तनु गांव में रहने वाली लड़की हैं और ज्यादा पढ़ी-लिखी भी नहीं है।

आखिर दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद दोनों की सगाई कर दी गई। सगाई और शादी का फासला सिर्फ इतना था कि पंद्रह दिन में ही शादी हो रही थी। क्योंकि पंद्रह दिन बाद ही वैलेंटाइन डे था। इन पंद्रह दिनों में तनु ने कभी भी सुमित से बात नहीं की। गांव की लड़की है शर्म आती होगी, यही सोचकर किसी के मन में भी कोई शक की बात ना आई।

धीरे धीरे शादी का दिन भी आ गया। सुनहरी शेरवानी पहने, घोड़ी पर सवार सुमित किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था। वैलेंटाइन डे था तो तनु को देने के लिए काफी सारे गिफ्ट भी तैयार किए हुए थे।  हर कोई हंस रहा था,

“अरे! कहाँ गिफ्ट दे पाओगे? गांव में कोई बुरा मान गया तो?”



” फेरों के बाद जब दुल्हन हमारी हो जाएगी, तब दे देंगे”

और बात को हंसकर टाल देते हैं। यूं ही हंसते गाते बारात चल पड़ी तनु के घर की तरफ। गांव में बारात में महिलाओं का निमंत्रण नहीं होता इस कारण सुमित की छोटी बहन और घर की छोटी बेटियाँ ही बरात में गई थी।

बारात वहां पहुंची तो उनका काफी अच्छे से स्वागत किया गया। धीरे-धीरे वरमाला का समय हुआ तो दुल्हन को बुलाया गया। जब काफी देर तक दुल्हन नहीं आई और उसके माता पिता नजर नहीं आए, तो सुमित और उसके पिता तनु के पिताजी के पास गए। अंदर जाकर देखा तो उसके पिता आंखों में आंसू लिए बैठे हुए हैं और तनु की मां रो रही है।

” क्या बात है? आप इस तरह से क्यों बैठे हुए हैं? बहुत दुखी लग रहे हैं? आखिर हुआ क्या है? “

तनु के पिता से कुछ कहते ना बना। आखिरकार उसके भाई ने हिम्मत करके बताया कि तनु किसी लड़के को पसंद करती थी और वह उसके साथ भाग गई।

” इतनी बड़ी बात आपने हमसे छुपाई? यहां हमें क्या बेइज्जत करने के लिए बुलाया था”

” हमें माफ कर दीजिए समधी जी”

“कैसे समधी,कौनसे समधी? आपने तो हमारी इज्जत का तमाशा कर दिया। अब क्या बारात खाली हाथ लेकर जाए”

बात बढ़ती देख कर गांव के पंचों ने और बारात में आए बड़ों ने बीच-बचाव किया और निर्णय यह हुआ कि तनु की छोटी बहन विजेता का विवाह सुमित के साथ कर दिया जाएगा, जिससे बारात खाली हाथ ना लौटे। आखिर अपने परिवार की इज्जत के लिए सुमित ने भी हां कर दी।

विजेता तनु जितनी गोरी नहीं थी, पर सुंदर तो बहुत थी। सांवला सलोना रंग, तीखे नैन नक्श, कमर तक लहराते बाल, विजेता किसी भी मामले में कम नहीं थी।

आखिरकार विजेता की शादी सुमित के साथ कर दी गई और वह विदा होकर ससुराल आई। सुमित की मां जब दुल्हन को लेने के लिए आई तो दुल्हन को देखकर उन्होंने अपने पति से कहा,

” यह मेरी बहू नहीं है। यह किसे ले आए आप? मेरी बहू काली नहीं थी”

तभी सुमित के पिता जी कौशल्या जी को जबरदस्ती खींचते हुए कमरे में लेकर गए।

“भाग गई तुम्हारी वह नालायक गोरी बहू। धोखा हुआ है हमारे साथ। अब बारात को खाली तो ला नहीं सकते थे इसलिए लेकर आए है इसे”

” अरे तो लौटा लाते खाली बारात। ये काली बहु क्यों लाए? मेरे बच्चे की जिंदगी बर्बाद कर दी आप लोगों ने”

” अरे, तुम तमाशा मत करो। घर में इतने मेहमान मौजूद हैं। कह रहा हूं चुपचाप जाकर दुल्हन को अंदर ले कर आ जाओ। इस बच्ची ने हमारी इज्जत रखी है, तो तुम भी इसका कुछ मान रखो”

उस समय तो कौशल्या जी अपने पति की बात मानकर अनमने मन से बहू को अंदर ले आई और जैसे तैसे मन मारकर रस्मो रिवाज पूरी किए। हालांकि मेहमानों ने मुंह दिखाई में विजेता की बहुत तारीफ की, पर कौशल्या जी के लिए तो उनकी बहू काली ही थी। जिसे वे दिल से स्वीकार नहीं कर पा रही थी।



हालांकि कौशल्या जी ही नहीं, सुमित भी विजेता को दिल से स्वीकार नहीं कर पा रहा था। सुहागरात के दिन भी सुमित ने विजेता से कोई बात तक नहीं की और बिस्तर पर दूसरी तरफ मुंह करके सो गया। विजेता भी पूरी रात करवटें बदलती रही कि आखिर वह कैसे इस घर को अपना बना पाएगी?

दो-तीन दिन तो घर में मेहमान रहे, इस कारण किसी ने कुछ नहीं कहा। पर जब मेहमान चले गए तो दूसरे दिन सुबह जब नींद खुली तो जल्दी से तैयार हुई। हरी साड़ी, उस पर मैचिंग की हुई हरे कांच की चूड़ियां, माथे पर हरी बिंदी और खुले हुए लंबे केश, एक बार को तो सुमित भी विजेता को देखता ही रह गया। पर जब उसने गौर किया है कि विजेता उसे देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही है तो एकदम से सकपका कर अपने काम में लग गया।

तैयार होकर विजेता बाहर आई। कौशल्या जी के पैर छुए तो कौशल्या जी ने उसे रोक दिया,

” तुम मेरी बहू नहीं हो इसलिए मेरे पैर छूने की जरूरत नहीं है”

सुनकर विजेता की आंखों में आंसू आ गए पर उसने कुछ नहीं कहा। जब श्रवण जी के पैर छुए तो उन्होंने ढेरों आशीर्वाद दिये। उस घर में श्रवण जी और शालिनी ही थे, जिन्होंने विजेता को दिल से स्वीकार किया था।

कौशल्या जी विजेता को परेशान तो नहीं करती, पर हां स्वीकार भी नहीं कर पाती, वही सुमित विजेता को लेकर अपनी कोई भावनाओं को समझ ही नहीं पाता। जितना विजेता उसके पास आने की कोशिश करती, उतना घबरा करके वह से दूर हो जाता। शादी को एक महीना होने को आया था लेकिन अभी तक दोनों का मिलन भी नहीं हुआ था।

सुमित बोलता भी उतना ही जितनी जरूरत हो अन्यथा किसी ना किसी काम में लगा ही रहता। और कोई काम ना होता तो लैपटॉप चालू करके काम करने का बहाना कर रहा होता। हालांकि सुमित कभी भी विजेता से इस तरह से बात नहीं करता जिससे उसका दिल दुखे। उसे पूरा सम्मान देता। विजेता भी पूरी कोशिश करती, पर जो जगह शायद वो तनु के लिए सोच कर बैठा था, वह विजेता को दे नहीं पा रहा था। पर छुप-छुपकर कई बार विजेता को निहार जरूर लेता था।

कुछ दिनों बाद होली का त्यौहार था। रीति रिवाज के मुताबिक पहली होली नई नवेली बहू को अपने मायके में ही मनानी पड़ती है। क्योंकि सास बहू होली पर एक साथ नहीं होती है। तो विजेता भी अपने मायके के लिए रवाना हो गई, पर रवाना होने से पहले सुमित से इतना ही कह पाई,

” सुमित जी होली के बाद आप हमें लेने गाँव आ जाएंगे ना”

“हुम्म”

” हम जा रहे हैं। क्या आज भी आप हमसे बात नहीं करेंगे। जानती हूं कि आपकी और मेरी शादी जिस तरीके से हुई है उसमें तो रिश्ते बनाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। पर है तो हम पति-पत्नी ही ना। मैं आपका इंतजार करूंगी”

सुमित कुछ कह ना पाया। और विजेता अपने पिता के साथ अपने मायके रवाना हो गई। पर इस बार होली को लेकर उसके मन में कोई उल्लास था ही नहीं।

होली के दिन शालिनी ने विजेता को सुबह-सुबह फोन किया,

“भाभी प्रणाम, कैसी हो आप? होली खेलने को तैयार”

“नहीं शालिनी जी, इस बार मेरा होली खेलने का मन नहीं है”

” क्यों? क्या हो गया? तबीयत तो ठीक है ना”

” हां, मेरी तबीयत ठीक है। बस, इस बार ये रंग अच्छे नहीं लग रहे”

” पर मैंने तो सुना है आपको होली बहुत अच्छी लगती है”

” हां, मुझे होली अच्छी लगती है, पर इस बार मन नहीं हो रहा। चलो ठीक है, बाद में बात करती हूं”

विजेता से बात कर शालिनी सुमित के कमरे में गई,

” भैया, जल्दी चलो”

” कहां जा रही है तू?”

” हर साल की तरह होली खेलने चलते हैं दोस्तों के साथ, और कहां?”

” मेरा मन नहीं है”

” अच्छा, अब समझी। इधर आपका मन नहीं है, उधर भाभी का मन नहीं है”

” तुझे कैसे पता”

” अभी अभी भाभी से बात करके आई हूं”



और इधर गांव में विजेता चुपचाप घर के कामों में लगी हुई थी। उसके छोटे भतीजे भतीजी उसके साथ होली खेलने के लिए आते तो उन्हें डांट कर भगा देती। ऐसा करते-करते दोपहर हो गई।

विजेता आंगन में रखे कपड़े लेने के लिए आई तो उसके नौ साल के भतीजे ने उसके ऊपर रंग डाल दिया,

” कितनी देर से कह रही हूं मुझे नहीं खेलना होली। क्यों रंग रहे हो मुझे? नहीं है पसंद मुझे कोई रंग”

वह इतनी जोर से चिल्लाई कि बेचारा बच्चा सहम सा गया। तभी अचानक उसके ऊपर किसी ने बाल्टी भरकर रंग डाल दिया। गुस्से में विजेता पीछे पलटी तो देखकर हैरान रह गयी। सुमित खड़ा मुस्कुरा रहा था,

” किसने कहा कि मेरी पत्नी को होली के रंग पसंद नहीं। मुझे तो मेरी पत्नी हर रंग में पसंद है”

” सुमित जी आप??”

” हां मैं, मुझे अपनी गलती का एहसास है। मेरी साँवली सलोनी हर रंग में खूबसूरत लगती हैं। आइंदा मत कहना कि तुम्हें कोई रंग पसंद नहीं। और कब तक यूं ही बुत बनकर खड़ी रहोगी। अब तो मुस्कुरा दो। बेचारे बच्चे को डरा दिया “

” आपको तो हम पसंद नहीं थे ना” विजेता ने चिड़ते हुए कहा।

” किसने कहा कि तुम मुझे पसंद नहीं थी। बस, समझ नहीं पा रहा था”

“अच्छा! छोटे बच्चे हो क्या?”

” ओह! मैडम नाराज हो गई”

” हां नाराज हूं”

“ठीक है, हक बनता है तुम्हारा। वेलेंटाइन डे पर ना सही, होली पर ही सही। आज पूछता हूं क्या तुम मेरी वैलेंटाइन बनोगी”

” इतनी आसानी से तो नहीं”

” तो फिर कैसे?”

विजेता ने पास रखी रंग की बाल्टी उठाई और सुमित के ऊपर उढेलते हुए कहा,

“ऐसे”

सचमुच वह होली विजेता और सुमित के लिए एक यादगार होली बन गई क्योंकि वह पहली होली प्यार और शरारत के रंगों से रंगी हुई थी।

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