कुन्नूर का मौसम अपने पूरे शबाब पर था, हवा में हल्की हल्की ठंड घुलने लगी थी । अस्पताल में मरीज़ कम थे इसलिए अवनि जल्दी घर आ गई थी । वैसे भी आज अस्पताल में उसका मन नहीं लग रहा था । एक अजीब सी बेचैनी और उदासी उसके दिल दिमाग को चारों ओर से घेर रही थी ।
कपड़े बदल कर वह बाहर बरामदे में पड़े बेंत के झूले पर आ बैठी । घर में यह उसकी पसंदीदा जगह थी, जब भी उसका मन उदास होता या अकेलापन काटने को दौड़ता, वह इसी झूले पर आकर बैठ जाती । दूर दूर जहाँ तक नज़र जाए, हरे भरे चाय के बागान और उनके पीछे ऊँची ऊँची नीलगिरि की पर्वत शृंखलाएँ ।
उसके घर के बाहर लगे ऊँचे चिनार के दरख्त हवा के झोंकों संग झूम रहे थे । पत्तों की सरसराहट जैसे धीमे से अवनि के कानों में कुछ फुसफुसाकर आगे बढ़ जाना चाहती थी । तेज़ हवा के मदमस्त झोंके अवनि की खुली लटों संग अठखेलियाँ करने में व्यस्त थे । हल्की सी बूँदाबाँदी भी आरम्भ हो चली थी ।
अवनि ने कमला को आवाज़ लगाई….
“ अम्मा, ज़रा एक प्याली चाय पिला दोगी ?”
कमला, अवनि के साथ तबसे है, जब अवनि ग्यारह साल की थी । अवनि की माँ बचपन में ही उसे छोड़, किसी दूसरी दुनिया में चली गई थी । अवनि के पापा ने अकेले ही पालन पोषण किया था । हाँ, कमला ने नौकरानी होते हुए भी अवनि को माँ का सा प्यार दिया था और इसीलिए वह अवनि के विवाह के पश्चात भी उसके साथ रहने चली आई थी ।
पलाश के साथ अवनि के विवाह को दो वर्ष हो चले थे । भारतीय सेना में मेजर के पद पर कार्यरत पलाश को अक्सर मोर्चे पर ही रहना होता था । आजकल उसकी पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में थी । कश्मीर में चल रही आतंकवादी गतिविधियों के समाचार सुन, अवनि का कलेजा मुँह को आता था । वह फ़ोन पर पलाश से सदा एक ही बात कहती थी,
“ तुम यह सेना की नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते पलाश ? भगवान न करे….यदि कभी तुम्हें कुछ हो गया तो ? मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकूँगी….हम पापा के पास देहरादून चले चलेंगे, वहीं तुम अपना कोई छोटा सा बिज़नेस कर लेना…”
“ एक फ़ौजी की बीवी होकर ऐसी कायरतापूर्ण बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं अवनि….मुझे अपने काम से प्यार है….बचपन से मैंने भारतीय सेना में काम करने का सपना देखा था…तुम चाहती हो, मैं अपना सपना छोड़ दूँ ? सपनों के बिना जीना भी भला कोई जीना है ?“
पलाश उसे सदा यही समझाता ।
“ चाय के साथ कुछ खाने के लिए भी लाऊँ बिटिया ?”
कमला चाय की ट्रे लिए खड़ी थी ।
“नहीं अम्मा, कुछ खाने का मन नहीं “ अवनि ने अनमने ढंग से कहा ।
“क्या हुआ बिटिया ? इतना अच्छा मौसम हो रहा है और तुम उदास हो रही हो…जमाई बाबू की याद आ रही है क्या ?”
कमला ने अवनि को छेड़ते हुए कहा ।
“ कोई पल ऐसा नहीं बीतता अम्मा, जब उनकी याद न आती हो…जब से उनकी पोस्टिंग कश्मीर में हुई है, तब से एक अनजाना सा भय हर समय मुझे घेरे रहता है “
अवनि की आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे ।
“ उदास होने से क्या फ़ायदा है बिटिया….अच्छा आज रात के खाने में मछली और चावल बना रही हूँ…खायेगी न ?”
कमला ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
“ आज फ़िश करी और चावल क्यों ? तुम तो जानती हो अम्मा, ये तो पलाश को बेहद पसंद हैं “
अवनि की आँखों से आँसू बह निकले ।
“ जब किसी की बहुत याद आए तो उसका मनपसंद भोजन करना चाहिये, ऐसा करने से जिसको याद करो उसको दूर बैठे ही भोजन का स्वाद मिल जाता है…ऐसा मैंने किसी से सुना है…..और ये क्या ? तू रो रही है….चाय पीकर हाथ मुँह धो ले “
कमला ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया ।
अवनि हाथ मुँह धोकर निकली ही थी कि उसके मोबाइल की घंटी बजी । फ़ोन उठाते ही पलाश की चहकती हुई सी आवाज़ सुनाई दी,
“ तुम्हारा ये पानी से धुला धुला चेहरा…जैसे लगता है किसी फूल पर ओस की बूँदें चमक रही हों…उफ़ तुम कितनी सुन्दर हो यार…जी चाहता है इन ओस की बूँदों को बस पी जाऊँ “
“तुमने वीडियो कॉल तो की नहीं…. क्या तुम्हारे फ़ोन में स्पेशल कैमरे लगे हैं जो यहाँ की तस्वीरें तुम तक पहुँचा रहे हैं “ अवनि भी हँस पड़ी ।
“ फ़ोन पर स्पेशल कैमरे नहीं, मैं तुम्हें मन की आँखों से हमेशा देख सकता हूँ, वैसे यह पीला सूट तुम पर बहुत जँच रहा है “ पलाश की आवाज़ में हँसी की खनक थी ।
अवनि ने खिड़की से झाँक कर देखा, बाहर लॉन में पलाश खड़ा मुस्कुरा रहा था । अवनि से नज़रें मिलते ही उसने अपनी बाँहें फैला दीं ।
अवनि को अपनी नज़रों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ । वह झट फ़ोन बिस्तर पर फेंक लॉन की ओर भागी । पलाश ने उसे अपनी बाँहों में समेट लिया ।
“ तुम बिना बताए अचानक कैसे आ गये ? मुझे पता होता तो मैं तुम्हारे स्वागत की कितनी तैयारियाँ करती “
अवनि ने उलाहना दी ।
“ यदि बता देता तो तुम्हारा यह फूल सा खिला चेहरा कैसे देखता ? वैसे मैंने अम्मा को बता दिया था, साथ ही यह हिदायत भी दी थी कि वे तुम्हें कुछ न बताएँ….मैं तुम्हें सरप्राइज़ देना चाहता था…अब अगले पंद्रह दिनों तक मैं तुम्हारी सेवा में रहूँगा मैडम…पूरे दो हफ़्तों की छुट्टी लेकर आया हूँ…अच्छा अब भीतर चलें ? लग रहा है बारिश तेज़ होगी अब“
पलाश ने अवनि की आँखों में झाँकते हुए कहा ।
“ अभी नहीं…मुझे तुम्हारे साथ दोनों तरह की बारिश में भींगना है…आसमान वाली भी और तुम्हारे प्यार वाली भी “
कह कर अवनि ने पलाश के सीने में अपना चेहरा छुपा लिया ।
पलाश की बाँहों का घेरा कस गया । बारिश तेज़ हो चुकी थी और दो प्यार भरे दिल साथ साथ धड़कने लगे ।
पंद्रह दिन तो पलक झपकते ही बीत गए जिनमें दिन सिंदूरी थे तो रातें सुरमई। पलाश जाने के लिए तैयार था, अवनि ने भर्राये गले से पूछा,
“अब कब आओगे पलाश ? जब तुम साथ नहीं होते तो मन में हमेशा एक घबराहट सी रहती है, यदि तुम्हें कुछ हो गया तो मैं जी नहीं पाऊँगी..तुम सेना की नौकरी नहीं छोड़ सकते न सही, परन्तु तुम कश्मीर से अपना तबादला तो करवा सकते हो….किसी ऐसी जगह, जहाँ आतंकवादी गतिविधियाँ न हों”
“कैसी बातें कर रही हो अवनि ? यदि हर सैनिक की पत्नी ऐसा ही सोचे जैसा कि तुम सोच रही हो, तो कश्मीर की जनता की रक्षा के लिए कौन आगे आएगा ? मैंने तुमसे हमेशा कहा है कि एक सैनिक की बहादुर पत्नी के मुँह से ऐसी कायरतापूर्ण बातें शोभा नहीं देतीं और फिर तुम तो खुद एक डॉक्टर हो, काम के प्रति ज़िम्मेदारियों को बेहतर तरीके से समझ सकती हो”
पलाश ने अवनि का हाथ आपने हाथों में लेते हुए समझाया ।
पलाश को गए हुए महीना भर बीत चला था । अगस्त में देश के स्वतंत्रता दिवस होने के कारण कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में अचानक ही वृद्धि देखी जा रही थी ।
उस दिन कुन्नूर में ज़ोरों की बरखा हो रही थी । यूँ लग रहा था कि आसमान टूट कर बरसने को तत्पर है । काले घने मेघों ने सूरज की रोशनी को लील लिया था जिससे शाम के चार बजे ही घुप्प अंधकार ने अपने पाँव पसार लिये थे ।
अवनि अस्पताल के अपने केबिन में बैठी मिसेज़ सान्याल को दवाएँ समझा रही थी कि उसके मोबाइल फ़ोन की घंटी बज उठी ।
“वन मिनट मिसेज़ सान्याल”
कहते हुए उसने अपना फ़ोन उठाया । उधर से किसी अजनबी पुरुष की गम्भीर आवाज़ थी,
“मिसेज़ पलाश अवस्थी ?”
“जी, कहिए…मैं मिसेज़ पलाश अवस्थी बोल रही हूँ”
“जी, आप कृपया शांतिपूर्वक ठंडे दिमाग़ से मेरी बात सुनें…मैं पुंछ सेक्टर कश्मीर से ब्रिगेडियर वोहरा बोल रहा हूँ, आपके पति मेजर पलाश पिछले दो दिनों से लापता हैं…वे शनिवार की रात पेट्रोलिंग के लिए सेना की जीप से निकले थे, उनके साथ हमारी सेना के दो जवान और भी हैं…परन्तु उनका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा…हमने उनकी तलाश में खोजी दस्ते लगा रखे हैं, आप परेशान न हों, हमें पूरी उम्मीद है कि वे हमें जल्द ही मिल जाएँगे”
ब्रिगेडियर वोहरा ने संक्षेप में पलाश के लापता होने के बारे में बताया ।
“ये….ये आप क्या कह रहे हैं…ऐसे कैसे पलाश कहीं लापता हो सकता है ? अपने अधिकारियों की सुरक्षा भी तो सेना की ही ज़िम्मेदारी है…आप लोगों से इतनी बड़ी चूक कैसे हो सकती है ?”
कहते हुए अवनि का शरीर थर-थर काँपने लगा । उसके हाथ से मोबाइल फ़ोन गिर गया ।
मिसेज़ सान्याल ने तुरन्त ड्यूटी पर तैनात नर्स को आवाज़ दी । नर्स भागकर डॉक्टर को बुला लाई ।
अवनि को पैनिक अटैक पड़ा था । डॉक्टरों ने उसे नींद का इंजेक्शन दिया जिससे अवनि नींद की आग़ोश में चली गई, वह बीच बीच में पलाश का नाम लेकर बुदबुदा उठती ।
अस्पताल के चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर डॉ॰नागराजू ने अवनि के फ़ोन से वापस कॉल लगाया ताकि वे पलाश के बारे में विस्तार से जान सकें ।
उधर से ब्रिगेडियर वोहरा ने बताया,
“मेजर पलाश अवस्थी यहाँ घाटी में पिछले कई आतंकवादियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे ऑपरेशन्स में इन्वॉल्व थे इसलिए वे आतंकवादियों की आँखों की किरकिरी बन चुके थे…हमें लगता है कि या तो आतंकवादियों ने उन्हें किडनैप कर लिया है या उनकी हत्या कर दी है, अभी तक किसी आतंकवादी संगठन ने इस दुर्घटना की ज़िम्मेदारी नहीं ली है, इसलिए हमें लगता है उन्हें किडनैप ही किया गया है..युद्धस्तर पर उनकी तलाश जारी है, जैसे ही कुछ पता चलता है…हम आपको बताते हैं, आप मिसेज़ पलाश अवस्थी का ख़याल रखें”
इस दुर्घटना को घटित हुए दो महीने बीत चले थे । पलाश का कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था । अवनि भी अपने पापा के साथ कश्मीर जाकर वापिस आ चुकी थी ।
सेना में सभी का मानना था कि आतंकवादियों ने पलाश की हत्या कर उसकी मृत देह को कहीं नष्ट कर दिया है ।जिससे पलाश की डेड बॉडी भी नहीं मिली थी ।
अवनि की दुनिया पूरी तरह उजड़ चुकी थी । जब इंसान दुखी होता है तो समय कटता नहीं बस उसी दुख के एक पल में ठहर जाता है । अवनि के लिए भी वक़्त थम चुका था, जैसे किसी माँद में दुखों की चादर ओढ़ सो गया हो । अवनि की पलकों पर आँसू सूखकर हमेशा के लिए घर बना चुके थे ।
उसने स्वयं को अपने डॉक्टरी के पेशे में झोंक दिया था । वह सुबह से रात तक अस्पताल में यंत्रवत काम करती रहती और फिर थककर चूर हो घर आकर बिस्तर पर ढेर हो जाती ।
सपनों में अक्सर अवनि की मुलाक़ात पलाश से होती रहती, सपनों में कभी वह अवनि से चुहलबाज़ियाँ करता तो कभी अपने प्रेम से सराबोर कर देता । परन्तु आँख खुलते ही वह अवनि की पहुँच से इतना दूर हो जाता कि अवनि उसे छूने के लिए तड़प उठती ।
अवनि के मन ने कभी यह स्वीकार ही नहीं किया कि पलाश अब इस दुनिया में नहीं है…उसे हमेशा लगता कि किसी दिन पलाश पीछे से आकर अपने हाथों से उसकी आँखें ढँक लेगा और कहेगा,
“देखा…मैंने तुम्हें कितना सताया”
“अब मत सताओ…प्लीज़ वापस आ जाओ”
अवनि बुदबुदा उठती । उसकी आँखें दरवाज़े पर टिक जातीं, पर हमेशा उसे मायूसी ही हाथ लगती ।
पहलगाम, कश्मीर….
एक आठ बाई आठ की अँधेरी कोठरी, जहाँ सूर्य का प्रकाश भी बड़ी मुश्किल से पहुँच पाता था, लोहे की ज़ंजीरों में जकड़े मेजर पलाश और उनके दो साथी ।सभी की आँखों पर पट्टियाँ बँधी थीं ।
तभी पलाश के कानों में जैसे किसी ने पिघला सीसा उँडेल दिया हो, एक कर्कश आवाज़ गूँजी,
“कब तक हम इन इंडियन कुत्तों के सामने बोटी डालते रहेंगे बिरादर….दो महीने हो गये इन्हें बंदी बनाए, आगे क्या करना है इनका ?”
“तसल्ली रख बिरादर…जल्द हुक्म आयेगा कि इनका क्या करना है ?”
किसी दूसरी आवाज़ की ओर से ठंडा सा उत्तर आया ।
रात का दूसरा पहर रहा होगा, किसी ने पलाश को झिंझोड़कर जगाया ।
“साहब….साहब, जल्दी उठिये…जल्दी उठिये, यहाँ से निकलना है”
पलाश हड़बड़ा कर उठ बैठा और बोला,
“कौन हो भाई ?”
“साहब…अब्दुल”
कहते हुए अब्दुल ने पलाश और उसके साथियों की आँखों पर बँधी पट्टियाँ खोल दीं और जल्दी जल्दी उनकी ज़ंजीरें खोलने लगा ।
“हम कश्मीरी हैं साहब…ये अरबाज़ और उसके साथी ज़बरदस्ती चार पाँच महीने पहले हमारे घर में घुस आए हैं…ये कहते हैं कि भारत हमारा मुल्क़ नहीं, भारतीय सेना के जवान हमारे दुश्मन हैं…ये हमारे लड़कों को पत्थरबाज़ी सिखाते हैं साहब…हथियार, असलहे देते हैं…”
“तो तुम हमारी मदद क्यों कर रहे हो अब्दुल ?”
पलाश ने आश्चर्य से पूछा ।
“अभी बात करने का टैम नहीं है साहब…पहले यहाँ से निकल लें, फिर आपको सारी कहानी सुनाऊँगा…आज मोहल्ले में एक निकाह की दावत है, अरबाज़ और उसके साथी वहीं गये हैं, इसीलिए मौक़ा पाते ही मैं यहाँ आ गया”
जंगलों के बीच अँधेरी, सुनसान पगडंडियों के सहारे पलाश और उसके साथी अब्दुल के पीछे पीछे भाग रहे थे ।
निशा अलविदा कह रही थी और भोर धरा पर उतर रही थी । आकाश ने अपना काला चोंगा उतार दिया था और गुलाबी, नारंगी चुनरी वह अपने इर्द गिर्द लपेट रहा था ।
पहाड़ियों के बीच कल-कल बहती लिड्डर नदी के किनारे अब्दुल ठिठक गया ।
“पानी पी लें साहब…उधर नदी के उस पार आपकी सेना का कैंम्प है…अब आप लोग सुरक्षित हैं..हमें अब इजाज़त दीजिए”
“तुमने हमारी जान बचाई है अब्दुल…पर हम यह जानने को उत्सुक हैं कि तुमने हमारी जान क्यों बचाई ? तुम भी तो हमें यानी कि भारतीय सेना को अपना दुश्मन मानते होगे ?”
पलाश ने प्रश्न किया ।
“हाँ साहब…यह सच है कि हमारे पड़ोसी मुल्क़ ने एक आम कश्मीरी के मन में भारत और भारतीय सेना के ख़िलाफ़ ज़हर घोलने का काम किया है….अरबाज़ भाई अपने साथियों के साथ मेरे घर में ज़बरदस्ती घुस आए और अम्मी अब्बू से बोले कि यदि हम उन्हें अपने घर में नहीं रखेंगे तो वे हमारी बहन हमीदा को बर्बाद कर देंगे…हम डर गये साहब, उन्होंने हम सभी के दिलों में नफ़रत का ज़हर भरा…मैं भी पहले आप लोगों के ख़िलाफ़ था, मैंने तो कई बार सेना पर पत्थरबाज़ी भी की”
“फिर तुम्हारा हृदय परिवर्तन कैसे हो गया भाई ?”
पलाश का एक साथी पूछ बैठा ।
“ये भी एक कहानी है भाई”
अब्दुल ने गहरी साँस ली ।
“हाँ, तो कहानी सुनाओ न भाई”
“पत्थरबाज़ी तक तो ठीक था, एक दिन अरबाज़ भाई ने मुझे बंदूक़ दी और कहा कि मुझे अपने ही दोस्त रियाज़ की जान लेनी है क्योंकि रियाज़ ने इन दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ पुलिस में मुखबिरी की थी, जब मैंने मना किया तो उन्होंने और उनके साथियों ने मेरे सामने ही मेरी छोटी बहन हमीदा के साथ…..मैं चिल्लाता रहा…रोता रहा…मगर…”
अब्दुल की आँखें भीग चली थीं, वह कहता रहा,
“मेरे अब्बू यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए…मैं कुछ नहीं कर पाया क्योंकि मेरी अम्मी भी उनके क़ब्ज़े में थीं और उनके हाथ की कठपुतली बनना मेरी मजबूरी”
“तभी वो लोग आप तीनों को अगवा कर लाए और नीचे बने तहख़ाने में रखा…उनका इरादा आप तीनों के ज़रिये भारत सरकार को ब्लैकमेल करना था, बस वे सही समय और सही मौक़े की तलाश में थे”
“तुमने हमारी जान बचाई है अब्दुल मगर जब उन्हें पता चलेगा तो वे तुम्हारी अम्मी को मार देंगे”
पलाश ने चिन्ता जताते हुए कहा ।
“आप क्या सोचते हैं साहब, हमें अपनी अम्मी का ख़याल नहीं, आप लोगों को निकालने से पहले ही हमने अम्मी को अपनी मौसी के घर भेज दिया था…”
“मगर कैसे ? अरबाज़ इतना बड़ा बेवक़ूफ़ तो नहीं होगा कि वो तुम्हें और तुम्हारी अम्मी को अकेला छोड़कर अपने साथियों के साथ निकाह की दावत खाने चला जाए”
पलाश के एक साथी ने आश्चर्य से पूछा ।
“आपको राज़ की बात बताऊँ, अम्मी की चौकीदारी करने वाले मजीद के रात के खाने में मैंने एक दवा मिला दी थी जिससे वह उल्टियाँ कर करके निढाल हो गया”
“अब मेरा जो भी होगा, देखा जाएगा साहब, मैं खुश हूँ कि मैंने अपने वतन के लिए
छोटा सा फ़र्ज़ निभाया”
कहकर अब्दुल मुस्कुराया और पलटकर नदी के पीछे की पहाड़ियों में गुम हो गया ।
सेना के कैम्प में पहुँचते ही पलाश और उसके दोनों साथियों का ज़ोरदार स्वागत हुआ । ब्रिगेडियर वोहरा ने पलाश की दस दिनों की छुट्टी मंज़ूर करते हुए कहा,
“गो यंग मैन, गिव अ वंडरफ़ुल सरप्राइज़ टु योर वाइफ़”
कुन्नूर…
कमला अम्मा रोज़ की तरह अवनि को समझा रही थीं,
“अपना ध्यान रखा करो बिटिया, अब तुम एक नहीं दो जान हो…इतना अधिक मेहनत करने का क्या ज़रूरत ? ऐसे समय में तुम्हें थोड़ा आराम भी करना चाहिए साथ ही अपने खाने पीने का भी ध्यान रखना चाहिए”
“ अम्मा, मरीज़ों में उलझी रहती हूँ तो उनके दुख दर्द में अपना दुख बाँट लेती हूँ, आज मेरी कोख में पलाश की निशानी पल रही है, यदि आज पलाश होता तो कितना ख़ुश होता”
अवनि की आँखों में आँसू झिलमिलाने लगे ।
“यही तो ग़लत बात है बिटिया, ऐसे समय में मन को शांत रखना चाहिए….अच्छा…आज मछली चावल बनाऊँ ? खाएगी ?”
“अम्मा, तुम्हें तो मालूम है…फ़िश करी और चावल…”
अवनि की आँखों से बाँध तोड़कर आँसुओं का सैलाब बह चला ।
“हाँ…हाँ पता है हमें कि पलाश भैया को मछली चावल पसंद रहा, पर जब किसी की बहुत याद आए तो उसका मनपसंद भोजन करना चाहिये, ऐसा करने से जिसको याद करो उसको दूर बैठे ही भोजन का स्वाद मिल जाता है…ऐसा मैंने किसी से सुना है…..और ये क्या ? रोना बंद कर बिटिया, हिम्मत रख..कल को नन्हे से बच्चे की किलकारी से फिर से इस आँगन में ख़ुशियाँ लौटेंगी”
कमला ने अवनि को समझाया ।
अवनि ने उठकर मुँह धोया और बाहर बरामदे में आकर वहीं झूले पर बैठ गई । तभी पीछे से किसी ने पीछे से आकर उसकी आँखें ढँक ली ।
अवनि कुनमुनाते हुए बोली,
“क्या अम्मा, ये क्या बचपना है ?”
“हमारी तो बचपन से ही बचपना करने की आदत है मैडम”
पलाश ने पीछे से ही अवनि को अपनी बाँहों में कस लिया ।
“पलाश…क्या तुम हो ? या मैं सपना देख रही हूँ”
अवनि ख़ुशी से चिल्लाई ।
“सपना नहीं, हक़ीक़त हूँ अवनि”
अवनि तुरन्त पलटकर पलाश के सीने से लिपट गई और पलाश ने उसे अपने भीतर भींच लिया ।
दोनों की आँखों से गंगा जमुना बहने लगी ।
“तुम मुझे छोड़कर कहाँ चले गये थे ?”
“हमारा साथ तो सात जन्मों का है अवनि…अभी तो हमें अगले छ: जन्म साथ-साथ बिताने हैं…हाँ कहाँ चला गया था, यह एक लम्बी कहानी है, कभी फुरसत में सुनाऊँगा…”
रसोईं में मछली चावल की ख़ुशबू बिखर रही थी और पूरा घर पलाश और अवनि के प्रेम की सुगन्ध से गमक रहा था ।
अंशु श्री सक्सेना
मौलिक/स्वरचित