“सुनयना मिताली दीदी ने अपनी तृप्ति के लिए एक रिश्ता बताया है !” विशाल जी घर में आते ही अपनी पत्नी से बोले।
” देखिए अगर आपको लगता है घर परिवार अच्छा है तो आप आगे बात कीजिए शादी तो हमे तृप्ति की करनी ही है ना!” सुनयना जी पानी लाते हुए बोली।
” बाकी सब तो ठीक है सुनयना पर एक तो बड़ा परिवार है लड़के का ऊपर से लड़के की मां, ताई चाची सब घूंघट करती हैं अपनी तृप्ति वहां निभा पाएगी की नही !” विशाल जी ने अपनी शंका जाहिर की।
” तृप्ति भले ही पढ़ी लिखी है पर आप क्यों भुल रहे हैं हमने उसमे संस्कार भी भरे हैं फिर भी एक बार तृप्ति से पूछ लेते हैं अगर उसे मंजूर होगा तभी बात आगे बढ़ाएंगे !” सुनयना जी बोली।
” हां ये सही रहेगा !” विशाल जी ने पत्नी की बात का समर्थन किया।
विशाल जी और सुनयना जी के दो बच्चे हैं बड़ी बेटी तृप्ति जो एक स्कूल में अध्यापिका है और छोटा बेटा तुषार जो इंजीनियरिंग कर रहा है।
सुनयना जी ने तृप्ति को सब बात बता उससे पूछा कि वो क्या चाहती है।
” मां पहले एक बार मिलकर देख लेते है ना सबसे तभी कोई फैसला कर पाऊँगी मैं !” नज़र झुका कर तृप्ति बोली।
” ठीक है बेटा मैं तेरे पापा से उन्हे संदेशा भिजवा देती हूँ !” सुन्यना बोली
विशाल जी ने अपनी बहन के माध्यम से लड़के वालों को घर आने का न्यौता भेजा दिया तय समय पर सब आए।
लड़का पार्थ लड़के की मां – पापा , चाचा – चाची और भाई बहन।
तृप्ति को सबके समक्ष लाया गया।
” बेटा मैं तुमसे ये नहीं पूछूंगी कि तुम्हे खाना बनाना, सिलाई कढ़ाई आती है या नहीं क्योंकि ये काम तो सीखे जा सकते है बस एक बात बताओ क्या तुम्हे रिश्ते निभाने आते हैं ?” लड़के की मां अनीता जी ने तृप्ति से पूछा।
” जी…!” अनीता जी की बात का मतलब ना समझ तृप्ति ने हैरानी से उनकी तरफ देखा। ऐसे सवाल की तो तृप्ति को उम्मीद ही नहीं थी।
” हां बेटा …हमारा संयुक्त परिवार है जहां सभी तीज त्योहार मिलकर मनाए जाते। हमारे सिर पर हमारी सास का साया है जिनकी हम इज्जत करते हैं और उनकी बात को सर्वोपरि मानते हैं। इसके अलावा परिवार में और भी लोग है बच्चे हैं क्या सबके साथ निभा पाओगी तुम?” अनीता जी बोली।
” जी बहनजी हमने अपनी बेटी को रिश्तों को सहेजना ही सिखाया है !” सुनयना जी बोली।
” माफ़ कीजियेगा बहनजी सभी मां बाप अपनी बेटी को अच्छी सीख देते पर कुछ बेटियां बहुएं बनते ही वो सीख भूल जाती हैं। उन्हें लगता है शादी सिर्फ लड़के से हुई है वो परिवार रूपी माला को बिखरा देती हैं। जबकि हमारे घर की अभी बहुएं रिश्ता निभाने में विश्वास रखती हैं इसलिए हम सब बाते पहले ही बता देना चाहते हैं।” लड़के की पिता दर्पण जी बोले।
तृप्ति को लड़के वालों की बातों ने प्रभावित किया कि उन्होंने बिना लाग लपेट के जो कहना था साफ कहा ऐसा ससुराल मिलना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है वरना लड़के वाले तो काम आता या नहीं यही सवाल करते हैं आकर।
“जी आंटी अगर मैं आपके घर की बहु बनती हूं तो मैं कोशिश करूंगी आपके परिवार की माला का एक मोती बनकर रहूं उसे बिखरने ना दूं!” तृप्ति बोली।
दोनों परिवारों की रजामंदी से रिश्ता पक्का हो गया। तृप्ति को बस घूंघट वाली बात थोड़ा परेशान कर रही थी कि क्या वो घूंघट कर पाएगी। ऊपर से उसकी सहेलियों से सुने ससुराल के किस्से भी उसे थोड़ा डरा रहे थे। फिर उसने खुद से ही कहा ” तृप्ति बेटा जब ओखली में सर दे ही दिया तो मूसल से क्या डरना!”
तृप्ति ने दुल्हन बन ससुराल में प्रवेश किया। तीन चार दिन रस्मों और रिश्तेदारों को विदा करने में बीत गए।
” बहू अब यहां कोई ना है फिर इतना लंबा घूंघट काढ़े क्यों बैठी हो !” सबके जाने के बाद तृप्ति की दादी सास शांति जी बोली।
” जी वो …यहां सभी तो घूंघट करते इसलिए मैने भी …!” तृप्ति हड़बड़ा कर बोल गई।
” अरे तेरी सास , ताई , चाची सब जिस वक़्त इस घर में आईं तब घूंघट प्रथा थी उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं आईं और अब तो वो इसकी ही आदि हो गई हैं पर तू नए जमाने की पहली बहू है इस घर की तो हमें भी तो नए जमाने का बनना पड़ेगा !” शांति जी हंसते हुए बोली।
” जी …!” तृप्ति हैरान थी दादी की बात सुन परिवार की बाकी औरतें भी वहां इकट्ठी हो गई और शांति जी को देखने लगी।
” हां तुम सबको इज्जत दो इतना काफी है इस घूंघट की जरूरत नहीं है । वक़्त के साथ बदलाव आना ही चाहिए थोड़ा हम बदले थोड़ा तुम हम तभी तो ये परिवार रूपी माला महकेगी !” शांति जी तृप्ति का घूंघट हटाते हुए बोली।
सभी महिलाओं ने ताली बजा कर दादी की बात का समर्थन किया और तृप्ति खुद को किस्मत वाली समझ रही थी जो उसे ऐसा सुलझा ससुराल मिला।
दोस्तों कोई भी रिश्ता हो दोनो तरफ के सहयोग से चलता और महकता है चाहे वो कोई भी हो तो थोड़ा खुद में बदलाव लाइए थोड़ा दूसरे को बदल दीजिए बस ऐसे सभी रिश्ते निभाइए। वैसे भी कुछ बेहतर के लिए बदलाव हो तो अच्छा है ना !
आशा है आपको मेरी बात सही लगी होगी
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
#संयुक्त परिवार