चुलबुली सी गुड़िया जैसी बहू स्नेहा सास ससुर की जान थी। शादी को बामुश्किल 6 महीने ही हुए होंगे कि एक सुबह फोन आया कि उसके पापा को हार्ट अटैक आ गया और वो सीरियस है। सास ससुर और अपने पति करण के साथ वह मायके पहुंची ।तब तक डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया और उसके पापा अशोक जी मिट्टी की ढेरी बन चुके थे।
अचानक उसके पापा की मृत्यु को सुन उसकी मम्मी अपने होश खो गई। ना आंख से आंसू बहे न मुंह से चीख पुकार।
स्नेहा पर तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। पापा जहां मिट्टी हुए वहीं मां पत्थर हो गई। उन्हें रुलाने की बहुत कोशिश की गई मगर सब बेकार।उनकी शुष्क आंखें शून्य में ताकती रहती ।जैसे तैसे तेहरवीं हुई। स्नेहा अपने ससुराल आ गई।ससुर शर्मा जी ने बहू के सिर पर हाथ रखते कहा,” बेटा। अशोक जी का असमय जाना , बेटा शायद उन जैसा न बन पाऊं मगर कोशिश करूंगा कि तुम्हें उनकी कमी भी महसूस न हो, मैं भी तुम्हारा पिता हूं। तुम मेरी बेटी हो।
अपनी मां को संभालने में अब स्नेहा का एक पांव मायके रहता और दूसरा ससुराल। अपनी मां की ऐसी हालत देख स्नेहा ने पापा के खोने के दुख को भुला ही दिया। अपनी छोटी सी गुड़ियां जैसी बहू के दुखों को देख स्नेहा के सास ससुर बस आह भर कर रह जाते। वह भी चाहते थे कि स्नेहा जी भर कर रो ले। एक बोझ जो हरदम लिए वह लिए घूमती है उसे हल्का कर ले।
मगर दुखों ने स्नेहा का चुलबुलापन खत्म कर उसे एक जिम्मेदार मां जैसा बना दिया।जो अपनी मां को एक बच्चे के जैसे संभाल रही थी।
सास के कहने पर वो मां को अपने ससुराल ले आई शायद जगह और माहौल बदलने से और यहां परिवार में उनका मन लग जाए या फिर वो खुद को संभाल लें।
मगर स्थिति जस की तस। आखिर कब तक मां कोअपने पास रखती ।
देखते देखते साल निकल गया। आज फिर वही दिन था जिस दिन उसके पापा छोड़ कर गए थे। स्नेहा टूट चुकी थी आंखे सुबह से भरी थी मगर आंसुओ को रोक के खुद को घर में व्यस्त कर रखा था।
शाम को उसके ससुर जी ऑफिस से आए । शर्मा जी से भी बहू की हालत छिपी नहीं रही।
उन्होंने स्नेहा को देखते ही उसके सर पर हाथ रखते कहा, “बेटा…। पापा हैं..। उनका इतना कहना था कि स्नेहा जो साल भर से सैलाब को रोके हुए थी उनकी गोद में सर रख बिलख पड़ी। शर्मा जी ने भी उसे रोका नहीं। उन्होंने उस बोझ को हल्का होने दिया जो उनकी बेटी जैसी बहू ने उठा रखा था। शर्मा जी भी अपने आंसू रोक नही पाए। सास अगर मां होती है ,ससुर भी पिता ही होते हैं।
शर्मा जी ने स्नेहा को अपनी बेटी जैसा प्यार दिया अपने स्नेह से उन्होंने उसके पापा खोने की कमी को पूरा कर दिया।एक बेटी की इच्छा जो पापा पूरी करते वैसे ही की।शर्मा जी ने स्नेहा के चेहरे पर हर वक्त मुस्कान ही रखी । उन्होंने सही कहा था कि,” बेटा ।
अशोक जी को उपस्थित नहीं कर सकता मगर कोशिश करूंगा कि उनकी कमी भी नही रहने दूंगा।
पूनम भारद्वाज
कहानी -ससुर भी पिता होते हैं