सरसता – अभिलाषा कक्कड़

सच ही कहते हैं कि सहजता और सरलता में जो रस निखार और सुन्दरता है वो थोपी हुई थोथी बातो में नहीं । कभी-कभी बनावट का लिबास हम इस कदर ओढ़ लेते हैं कि हमारी स्वाभाविकता की चमक भी खो जाती हैं और परिणाम भी हानिकारक ही ज़्यादा साबित होते हैं । अच्छा है जितनी जल्दी हमें इस बात का अहसास हो जाये कुछ ऐसा ही मिला जुला अनुभव मैंने भी अपने जीवन में कभी महसूस किया ।बात कई साल पुरानी है । मेरे पापा ने मेरी शादी अमेरिका में अच्छी नौकरी में कार्यरत भले घर के लड़के से तय कर दी ।

 तीन साल के बाद मुझे वीज़ा मिला तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था । आख़िर अब अपना घर बसाने जा रही थी । वीज़ा की ख़बर मिलते ही ये जल्दी ही मुझे लेने आ गये । इन तीन सालो में कभी माँ के घर तो कभी ससुराल घूमती रही और कुछ ज़्यादा तो नहीं सीखा बसघर के काम अच्छे से सीख लिए, लेकिन जैसे ही मैं अमेरिका आई तो एक अजीब सी मायूसी ने मुझे घेर लिया । क्योंकि यहाँ जिसे देखो वो इंगलिश में बात कर रहा था । और मैं इंगलिश बोलने में ख़ुद को पुरी तरह असमर्थ महसूस कर रही थी ।




एक छोटे से क़स्बे में पुरी शिक्षा हिन्दी माध्यम से मैंने ग्रहण की , इंगलिश तो जैसे परीक्षा देने तक ही सीमित थी और बोलने में थैंक्यू मेनशन नॉट से आगे तो पूर्ण विराम था । और यहाँ तो जिसे देखो फ़र्राटे से बोल रहा था । यहाँ तक कि अपने देशीय के बीच बैठकर भी ज़्यादा इंगलिश ही सुनने को मिलती थी ।

 मैंने धीरे-धीरे इस बात को महसूस कि अपने भारतीय अपने बच्चों से बिलकुल हिन्दी में नहीं बात करते कि कहीं उनके बच्चे पिछड़ ना जाये । ख़ैर कुछ ही सालो में परिवार बना और दो सुन्दर बच्चों के हम माता-पिता बन गए । मैं अपनी गृहस्थी सम्भालने में व्यस्त हो गई , बाक़ी सब बातों की तरफ़ से मेरा ध्यान हट गया । लेकिन जैसे ही बच्चों ने बात करना शुरू किया तो वो हिन्दी में हमसे बात करे ।हिन्दी भाषा वो बड़े अच्छे से बोलने लगे ।

 लेकिन कहते हैं ना जब सब अच्छा चल रहा है तब भी हम ख़ुद को तनाव में रखने का अपने स्वभाव अनुसार कोई ना कोई कारण ढूँढ लेते हैं और बात जब अपने बच्चों की हो तो हम कोई शंका लेकर नहीं चल सकते । मेरी सहेलियों ने मुझे कहना शुरू कर दिया कि तुम्हारे बच्चों को स्कूल में जाकर बहुत मुश्किल आयेगी क्योंकि उन्हें तो ज़रा भी इंगलिश बोलने का ज्ञान नहीं और इसकी ज़िम्मेवार तू ही बनेगी । तू इनके साथ अंग्रेज़ी बोलना शुरू कर दे ।

 मुझे भी लगा कि कहीं ये औरों से पीछे ना रह जाए तो मैंने कुछ कुछ शब्द बोलने शुरू किए फिर वाक्य, मेरे पति जब मुझे इन सबके बीच उलझता देखते तो बहुत समझाते कि तू इनकी इंगलिश की चिन्ता मत कर वो ये बहुत अच्छे से सीख जायेंगें। बस तू जैसा बोल रही है वैसा ही बोल, और एक दिन तू भी अंग्रेज़ी बोलना सीख जायेगी । पढ़ी लिखी है बस एक डर है वो भी एक दिन निकल जायेगा । 




मुझे भी लगा कि ग़लत इंगलिश सिखाने से अच्छा है मैं इन्हें सही हिन्दी सिखाऊँ । वक़्त बीता बच्चों को जरा भी इंगलिश सीखने में मुश्किल नहीं आई। लेकिन वो मुझसे बहुत अच्छे से हिन्दी में बात करते रहे । मेरी बिटिया राशि जब बारहवीं में हुई तो उसने गर्मी की छुट्टियों में पार्ट टाईम नौकरी एक क्लीनिक में शुरू की , एक दिन उसे साथ वाले कमरे से अजीब सी आवाज़ें आई ।

 उसे लगा जो साथ वाले कमरे में महिला मरीज़ डाक्टर से बात कर रही है उसे अपनी बात समझाने में काफ़ी दिक़्क़त आ रही है । बीच बीच में वो काफ़ी हिन्दी के शब्दों का इस्तेमाल कर रही है । डाक्टर जो कि उसके बॉस भी थे उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वो इलाज करे अपनी बात समझाये और उसकी समझे , दोनों को कश्मकश में देख वो उस कमरे में गई । उस महिला को नमस्ते कह कर बोली आंटीजी मुझे हिन्दी आती है अगर आप चाहो तो मैं आपकी बात डाक्टर साहब को बता सकती हूँ । वो महिला तो बहुत खुश हुई , पल में सारी समस्या ही हल हो गई । उस आंटी ने जाते हुए मेरी बिटिया को धन्यवाद ही नहीं बहुत सारा आशीर्वाद भी दिया ।उसके बॉस तो हैरान थे कि जिस प्रवाह से वो हिन्दी बोल रही थी कि यह लड़की यहाँ की जन्मी है ?




उस महिला के जाने के बाद उन्होंने पूछा कि उसने कहाँ से सीखी तो मेरी बिटिया ने बताया कि मेरी माँ ने सिखाई है । उन्होंने कहा कि तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें संस्कार अच्छे दिये ये तो तुम्हारे नौकरी शुरू करने के कुछ दिनों के बाद ही जान गया था लेकिन यह हिन्दी बोलने का जो तुम्हें ख़ज़ाना दिया है इस के लिए मैं ह्रदय से उन्हें प्रणाम करता हूँ । फिर उन्होंने सारे स्टाफ़ के लिए लंच मँगवाया और हमारी बिटिया की इस क़ाबिलियत की सबके सामने बहुत तारीफ़ की … उसने जब घर आकर सारी बात बताई तो मुझे लगा कि आज ये शाबाशी मुझे भी मिली है । जिस सरसता को मैं अपनी कमी समझ कर कोसती थी आज वही मेरी बिटिया के लिए सम्मान लेकर आई । अब तो मेरा भी डर निकल गया । नौकरी करते करते मैं भी काफ़ी अच्छी अंग्रेज़ी बोलना सीख गई हूँ । लेकिन अपने लोगों के बीच में बैठकर मैं आज भी पुरी हिन्दी ही बोलती हूँ और अब तो कभी कभार थोड़ा बहुत लिख भी लेती हूँ ।

स्वरचित कहानी

अभिलाषा कक्कड़

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