सपनें – Inspiring Story In Hindi 

“दादी माँ! अपनी पसंद बताओ ना, क्या खाओगी”

मेरी बहू की बहू ने मेनू कार्ड मेरी तरफ कर पूछा तो आँखें छलक आईं

जब अपने बाउजी के घर में थी तो चारदीवारी ही मेरी दुनिया थी। सिर्फ मेरी ही नहीं! मेरी माँ, भाभी,चाची और दादी की भी। स्कूल सिर्फ सातवीं तक गई वो भी बड़े भाई के साथ। ललचाई नज़रों से आइसक्रीम के ठेले को देखती। जिसे कभी भाई ने बाहर खाने ना दिया था।

मेरे सपने भी तब चारदीवारी से बाहर के नहीं होते थे। लगता ही नहीं था कि इस चारदीवारी के बाहर की भी कोई दुनिया होती है।

ब्याह दी गई थी मैं सिर्फ पंद्रह साल में। एक नई चारदीवारी में थी जहाँ अब घूँघट भी निकल आये थे।  बाबुजी की चारदीवारी इससे अच्छी थी। कमसे कम वहां खुलकर सांस ले पाती थी बिना रोक टोक किसी के सामने बैठ सकती थी। यहां जेठ,ससुर, सास या बड़ों के सामने बैठ नहीं सकती थी, बोल नहीं सकती थी।


धीरे धीरे मैं इसी में ढलती गई। ये अजीब लगने वाली चीजें अब मुझे अजीब नहीं लगती थीं। मैं इसी चारदीवारी में माँ बनी और फिर सास भी बन गई। मैंने अपनी बहू को भी यही सब सिखाया जो मुझे विरासत में मिली थी। उसे ये सब सहने में मुझसे ज्यादा दिक्कत हुई। मुझे उसके इस दिक्कत से बहुत दिक्कत होती थी। मैंने उसपर सख्ती बरती। बेटे ने कभी उसके पक्ष में आवाज उठानी चाही भी तो उसके पिता ने उसे चुप करा दिया। मैंने उसके संस्कार को भला बुरा कहा। धीरे धीरे वो भी इस चारदीवारी में ढलती चली गई। वो भी माँ बनी और अब वो भी एक सास है। मेरी हड्डियां कमजोर हो चली हैं। मगर मुझसे ज्यादा कमजोर मेरी बहू हो गई है। छूट दे रखा है उसने अपनी बहू को। वो बाहर भी जाती है। घूँघट भी नहीं लेती। और खुलकर हँसती है, गुनगुनाती है। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता। पर मेरे बेटे बहू को ये ठीक लगता है। मैं अतीत की चादर ओढ़े अपने छोटे छोटे सपनों को घर के चारों तरफ़ बिखरे देखा करती हूँ जो कभी पूरे ही नहीं हुए। मेरे वे सारे बिखरे सपने हँसते है मुझपर, मुझे मुँह चिढ़ाते हैं जब इस तीसरी पीढ़ी की बहू को ऊंचे ऊंचे सपनों को जीते देखते हैं। मेरी बूढ़ी हड्डियां ये देख, क्रोध,ईर्ष्या, घुटन से जकड़ जाती हैं।

पर आज मैं चाह कर भी इस उन्मुक्तता को अपने विरासत की जंजीरों से जकड़ नहीं सकती। आज तीसरी पीढ़ी की बहू को ऑफिस में कुछ कामयाबी मिली है। उसकी पार्टी किसी होटल में रखा है उसने। उसके ऑफिस के कुछ लोगों के अलावा मेरे बेटे बहू भी जाने वाले हैं। मैं कभी पैसे की तंगी में नहीं रही पर होटल कैसा होता है मैंने नहीं देखा। उन छोटे सपनों के बीच ये मेरा थोड़ा बड़ा सपना था। जो अब मुझे देख जोर जोर से हँस रहा है। सब तैयार हो रहे थे। मैं अपने अतीत से घिरी अपनी धुंधली आँखों से सब देख रही थी।

“दादी आज आप भी चलोगी हमारे साथ”

पोते के साथ छोटी बहू ने आते ही एक साड़ी मेरे सामने रख दी


“इसे पहन कर जल्दी तैयार हो जाओ दादी आप भी”

उसके इस प्यार भरे मनुहार ने मुझे मजबूर कर दिया। मैंने उनके साथ होटल निकलने से पहले अपने सपनों की तरफ हँसते हुए देखा।

“दादी! ..दादी! कहाँ खो गई आप…बताइए क्या खाना है आपको.?

मैं अपने अतीत से बाहर आ, भरी आँखों से छोटी बहू को देखने लगी। जो होटल के मेनू कार्ड को मेरी तरफ किये देख रही थी। इस दुनिया से जाने में शायद अब चंद साँसे ही बची हैं पर इस नई पीढ़ी के बच्चों ने, उन बची चंद साँसों पर से, मेरे उन चंद सपनों का बोझ कुछ कम कर दिया है।

मैंने आइसक्रीम की फोटो देख अपनी कपकपाती बूढ़ी उंगली उस पर रख दिया

सब बच्चे खुशी से ताली बजा उठे

मेरी आंखों के सपने..आँसू बन कर छलक पड़े..!

विनय कुमार मिश्रा

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